भोपाल : पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में न सिर्फ कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है बल्कि क्षेत्रीय दलों के लिए भी यह ऐसा मौका है जहां वह आगामी लोकसभा चुनाव से पहले अपनी मजबूत मौजदूगी का एहसास करा सकते हैं.
नवंबर में दिसंबर में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव हैं. 3 दिसंबर को इन पांचों राज्यों के परिणाम आ जाएंगे. इस बीच क्षेत्रीय दलों ने भी कमर कस ली है. इसी क्रम में बहुजन समाज पार्टी ने भी पूरी ताकत झोंक दी है.
बसपा ने मध्य प्रदेश और राजस्थान में अपने प्रत्याशी उतारे हैं. आगामी चुनावों में बसपा प्रमुख और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती 9 जनसभाएं करेंगी. मायावती अशोकनगर, निवाड़ी, सागर दमोह, छतरपुर, सतना, दतिया और भिंड, मुरैना में रैलियां करेंगी. मायावती 6, 7, 8, 10 और 14 नवंबर को 5 दिन में 9 सभाएं करेंगी.
इन रैलियों के जरिए बसपा की कोशिश होगी कि वह एमपी में साल 2018 के मुकाबले इस बार ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करे या अपना वोट शेयर बढ़ाए ताकि बीजेपी या कांग्रेस के पूर्ण बहुमत हासिल न करने की परिस्थिति में किंग मेकर की भूमिका में रहे. बसपा का यही प्लान राजस्थान में भी है.
साल 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में बसपा के 6 विधायक जीते थे लेकिन बाद में सभी कांग्रेस के साथ चले गए थे. चुनाव परिणाम के बाद बसपा ने बिना शर्त कांग्रेस को अपना समर्थन दिया था. लेकिन इस बार पार्टी की राज्य इकाई को स्पष्ट तौर पर यह निर्देश दिया गया है कि अगर किसी को भी समर्थन देने की परिस्थिति बनती है तो वह बिना मंत्रिमंडल में शामिल हुए इस पर फैसला नहीं करेगी.
यूं तो बसपा फिलहाल I.N.D.I.A. अलायंस का हिस्सा नहीं है लेकिन राजनीति में किसी भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. मायावती खुद ये स्पष्ट कर चुकी हैं कि वह किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं होंगी. हालांकि जानकारों का मानना है कि अगर ऐसा होने के आसार बने तो मायावती सीटों पर वार्ता के लिए अपनी पार्टी को इस स्थिति में लाना चाहती हैं कि उस पर कोई दबाव न हो. मायावती राज्यों के विधानसभा चुनाव को इसके लिए सबसे मुफीद मौका मान रही हैं. यूपी में भी मायावती ने सभी 80 सीटों पर लड़ने का प्लान बनाया है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी लोकसभा चुनाव में मायावती की मौजूदा रणनीतियां कितना फिट बैठती हैं.