महाराष्ट्र की सियासत में खत्म हो रहा शरद पवार युग!
27 साल की उम्र में विधायक बने शरद पवार की राजनीति की विशेषता शुरुआती दौर से ही सूझ-बूझ से भरी रही है। यही वजह रही कि साल 1967 में वो एमएलए चुने गए जब उनकी उम्र महज 27 साल थी। शरद पवार लगातार उसके बाद बुलंदियों को छूते रहे और तत्कालीन दिग्गज नेता यशवंत राव चव्वहाण उनके राजनीतिक संरक्षक के तौर पर उन्हें आगे बढ़ाते रहे।
–दस्तक ब्यूरो, मुंबई
महाराष्ट्र की चुनावी राजनीति में क्या शरद पवार युग का अंत होने वाला है? ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योेंकि पवार ने स्वयं कहा है कि वह 2024 लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन उन्होंने यह नहीं स्पष्ट किया कि यह फैसला उन्होंने बढ़ती उम्र के कारण लिया है या फिर पार्टी में बिखराव ने उनको ‘कमजोर’ कर दिया है। पवार साहब बड़े नेता हैं, वह अपनी बात साफगोई से कहते हैं। इसलिए कहा जा रहा है कि उनको कोई बात छिपाना नहीं चाहिए और चुनाव नहीं लड़ने की वजह खुलकर बताना चाहिए। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि कुछ माह पूर्व भतीजे अजित पवार की बगावत के बाद महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार ने बड़ी-बड़ी बातें और दावे किये थे। पार्टी में बगावत को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खूब खरी-खोटी सुनाई थी, परंतु लगता है कि बड़े पवार साहब अब जमीनी हकीकत समझ गये हैं कि राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता है। एक समय था जब पवार साहब कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी तक को चुनौती देने की ताकत रखते थे, आज स्वयं घर की सियासी लड़ाई नहीं सुलझा पा रहे हैं। एनसीपी चीफ शरद पवार के चुनाव नहीं लड़ने की चर्चा गत दिनों डिंडोरी लोकसभा सीट को लेकर समीक्षा बैठक के दौरान उस समय शुरू हुई जब पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं ने लोकसभा सीटों को लेकर की जा रही समीक्षा बैठक में शरद पवार से महाराष्ट्र के माढा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की गुज़ारिश की। मगर शरद पवार ने चुनाव लड़ने से इनकार करते हुए अपने को चुनावी राजनीति से परे कर लिया, लेकिन चुनावी सभाओं में वह जरूर नजर आयेगें। खासकर पार्टी में हुई बगावत के बाद लोकसभा चुनाव में पार्टी को मजबूत करने के लिए पवार राज्य के साथ देशभर का दौरा करेंगे। शरद पवार अभी राज्यसभा के सदस्य हैं।
गौरतलब है कि इसी साल जुलाई में शरद पवार की पार्टी में दो फाड़ हो गये थे। पवार का राइट हैंड समझे जाने वाले भतीजे अजित पवार ने एक बार फिर पार्टी में बगावत कर दी थी। इस घटना में महाराष्ट्र की सियासत को पूरी तरह से बदल कर रख दिया था। शरद पवार के सामने पार्टी बचाने की बड़ी चुनौती आकर खड़ी हो गई। मामला चुनाव आयोग की दहलीज तक जा पहुंचा, जब अजित पवार ने बगावत के बाद पार्टी और चुनाव चिह्न पर दावा कर दिया। यह मामला आज भी चुनाव आयोग के अधीन है। बताते चलें कि अजित के बगावत के बाद भी महाराष्ट्र में शरद पवार की एनसीपी, उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस का गठबंधन जस का तस चल रहा है। यह गठबंधन शिवसेना में दो फाड़ होने से पूर्व महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज था, लेकिन कलांतर में बागवत करके शिवसेना के कद्दावर नेता शिंदे ने अलग पार्टी का गठन कर लिया और कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना की गठबंधन वाली सरकार को बहुमत के अभाव में सत्ता गवानी पड़ी और शिंदे गुट वाली शिवसेना ने बीजेपी के साथ सरकार बना ली। बाद में शिंदे गुट को असली शिवसेना वाला नाम और चिन्ह भी मिल गए। शिंदे के नेतृत्व को नई सरकार की गठन के कुछ समय बाद एनसीपी से बगावत करके अजित पवार भी इस बीजेपी गठंधन वाली सरकार का हिस्सा बन गये और आज वह डिप्टी सीएम हैं।
बहरहाल, बीजेपी, शिवसेना शिंदे गुट और अजित पवार एक छतरी के नीचे एकत्र होकर लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस, शरद पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। तीनों दल साथ में लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। बात शरद पवार की कि जाए तो भले ही उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर लिया हो, लेकिन प्रत्याशी के चयन से लेकर पार्टी के लिए रणनीति बनाने में उनका पूरा योगदान रहेगा। एनसीपी का दावा है कि लोकसभा चुनाव को लेकर सीटों के बंटवारे को जल्द ही अंतिम रूप दे दिया जाएगा। बात शरद पवार की तेजी की की जाये तो जहां अन्य दल पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में जुटे हैं, वहीं शरद पवार आगामी लोकसभा चुनाव के लिए महाविकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन के सहयोगियों के बीच सीट बंटवारे को अंतिम रूप देने के लिए बैठकें कर रहे हैं। ये तीनों दल विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का भी हिस्सा हैं।
ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन शरद पवार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगा। महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा क्षत्रप शरद गोविंद राव पवार एक ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जिन्होंने पचास साल से लगातार राजनीति में अपनी अहमियत और महत्व को बरकरार रखा है। नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और राज्यसभा में पार्टी के नेता शरद पवार की शख्सियत महाराष्ट्र की राजनीति उनके इर्द-गिर्द घूमती रही है। चाहे वो सत्ता में हों या फिर उससे बाहर लेकिन पवार की ‘पावर’ पॉलिटिक्स हर पार्टी समझती है। पवार सूबे की सियासत के साथ क्रिकेट की सियासी पिच के भी धुरंधर हैं। मुंबई क्रिकेट काउंसिल के अध्यक्ष पद पर वो दस साल से भी ज्यादा समय तक बने रहे तो साल 2005 से 2008 तक भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और साल 2010 से 2012 तक अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल के मुखिया भी रहे। पिछले पचास साल से लगातार प्रदेश की राजनीति में अंगद की तरह पैर जमाए शरद पवार राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर तीन बार शपथ ले चुके हैं। साल 2004 से लेकर 2014 तक वो मनमोहन सिंह की कैबिनेट में कृषि मंत्री रहे। इसके अलावा पवार केंद्र में रक्षामंत्री के तौर पर भी काम कर चुके हैं। शरद पवार के राजनीतिक और व्यवहारिक आचरण की ही वजह से सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष में उनके संबंध हमेशा अच्छे रहे। मौजूदा मोदी सरकार ने उन्हें साल 2017 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया, जो देश का दूसरा सबसे बड़ा सम्मानित सिविलियन पुरस्कार माना जाता है।
शरद पवार के राजनीति में एंट्री की बात की जाए तो उनकी राजनीति की विशेषता शुरुआती दौर से ही सूझ-बूझ से भरी रही है। यही वजह रही कि साल 1967 में वो एमएलए चुने गए जब उनकी उम्र महज 27 साल थी। शरद पवार लगातार उसके बाद बुलंदियों को छूते रहे और तत्कालीन दिग्गज नेता यशवंत राव चव्वहाण उनके राजनीतिक संरक्षक के तौर पर उन्हें आगे बढ़ाते रहे। एक समय तो शरद पवार का आत्मविश्वास इस कदर बढ़ गया था कि इमरजेंसी के बाद उन्होंने कांग्रेस की सबसे कद्दावर नेता लेडी आयरन इंदिरा गांधी से बगावत कर कांग्रेस छोड़ दी, जबकि सब जानते थे कि शरद पवार को इस मुकाम तक पहुंचाने में इंदिरा गांधी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पवार उनके विश्वास पात्र हुआ करते थे। पवार ने कांग्रेस छोड़ने के बाद साल 1978 में जनता पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार का गठन किया और राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर पदभार ग्रहण किया।