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इजराइल-फिलिस्तीन संबंधों पर भारत का क्लियर स्टैंड

विवेक ओझा

हमास के आतंकियों द्वारा इजरायल पर हमले के बाद इजरायल द्वारा गाजा पट्टी में भीषण प्रतिशोध कार्यवाही की गई है। दोनों तरफ से निर्दोष नागरिकों खासकर महिलाओं और बच्चों को अपनी जान गवानी पड़ी है। इजरायल के साथ हमास द्वारा युद्ध छेड़े जाने के बाद अब तक लगभग 6 हजार फिलिस्तीनियों की मौत हो चुकी है जिनमें 2,360 बच्चे शामिल हैं। इस युद्ध के चलते मध्य पूर्व अथवा पश्चिम एशिया की राजनीति में भी नाटकीय बदलाव आया है। एक तरफ ईरान, सीरिया और लेबनान जैसे राष्ट्र हैं जिन्हें फिलिस्तीन के हमास को समर्थन देने के लिए जाना जा रहा है, वहीं अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश इजरायल का साथ दे रहे हैं। ऐसे में सवाल यह भी उठ रहा है कि इजरायल और फिलिस्तीन के हमास के बीच वर्तमान युद्ध पर भारत का पक्ष क्या है और भारत इन दोनों राष्ट्रों के संदर्भ में कौन सी नीति का समर्थन करता आया है। भारत के इन दोनों राष्ट्रों के साथ संबंधों को पृथक पृथक संबंधों के आधार पर समझा जा सकता है।

भारत प्रतिरक्षा तंत्र की मजबूती के लिए इजरायल पर निर्भर
प्रतिरक्षा और सुरक्षा के संबंध में भारत और इजरायल के मध्य मजबूत संबंध हैं। भारत अपनी आंतरिक सुरक्षा और अपनी अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा की दृष्टि से प्रतिरक्षा उपकरणों की आवश्यकता महसूस करता रहा है। इसीलिए वह इजराइल से प्रतिरक्षा प्रौद्योगिकियों का आयात करता है। दोनों देशों के मध्य सशस्त्र बलों के मध्य नियमित सूचना विनिमय संपन्न किया जाता है। भारत के चीफ ऑफ एयर स्टाफ, एयर चीफ मार्शल की इजरायल यात्राएं होती रही हैं। भारत और इजरायल के मध्य प्रतिवर्ष लगभग 1 बिलियन डॉलर का प्रतिरक्षा व्यापार होता है। भारत महत्वपूर्ण रक्षा उपकरणों, हथियारों का आयात इजरायल से करता रहा है। भारत के लिए दक्षिण एशिया में आतंकवाद से निपटने, हिन्द महासागर की सुरक्षा, पाकिस्तान और चीन से सामरिक दृष्टि से निपटने में इजरायल भारत के लिए उपयोगी है। इजरायल ने भारत को फाल्कन अवाक्स रडार, बराक मिसाइल, ग्रीन पाइन रडार, स्पाइस बॉम्ब प्रदान किए हैं। वर्ष 2019 में भारत ने इजरायल से 300 मिलियन डॉलर मूल्य वाले 100 स्पाइस बॉम्ब खरीदने का समझौता भी किया था। भारत ने पाकिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ किए गए बालाकोट स्ट्राइक में स्पाइस बॉम्ब का ही उपयोग किया था। इसके अलावा इजरायल भारत को मानव रहित विमान हेरान और हारूप दे चुका है। 2017 में इजरायल में हुए पहले संयुक्त सैन्याभ्यास ब्लू फ्लैग-17 में भारतीय वायु सेना के गरुण कमांडोज ने भाग लिया था।

भारत और इजरायल के प्रतिरक्षा संबंधों को मजबूती दोनों के मध्य हुए होमलैंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट से भी मिली है। उल्लेखनीय है कि इस समझौते के तहत सीमा पार आतंकवाद से निपटने, आंतरिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने, अपराध नियंत्रण और निरोध तथा पुलिस आधुनिकीकरण के विषयों पर बल दिया जाता है। भारत द्वारा पाकिस्तानी आतंकियों के खिलाफ किए गए सर्जिकल स्ट्राइक में स्पाइस बॉम्ब का इस्तेमाल किया जाना होमलैंड सिक्योरिटी के लिए दोनों की वचनबद्धता को दर्शाता है। उल्लेखनीय है कि साल 1992 तक भारत और इजरायल के बीच संबंध कुछ खास नहीं थे। इसके बाद शीत युद्ध के दौरान पश्चिमी देश खासकर अमेरिका ने इजरायल का साथ दिया। ऐसे में गुटबाजी में न फंसने के लिए जाना जाने वाला भारत भी सोवियत संघ की ओर झुकाव रखते हुए इजरायल का समर्थन करने लगा। इसके बाद शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने आखिरकार अरब देशों के साथ मतभेदों की परवाह किए बिना इजरायल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने का साहसिक निर्णय लिया। हालांकि इस दौरान राव ने फिलिस्तीनियों के लिए भी मुखर समर्थन दिखाना जारी रखा।

हाल के दिनों में भारत का रुख डी-हाईफेनेशन नीति की ओर देखा जा रहा है। डी-हाईफेनेशन नीति को समझें तो विश्व में सबसे लंबे समय तक चलने वाले इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर भारत की नीति पहले चार दशकों के लिए स्पष्ट रूप से फिलिस्तीन समर्थक होने से लेकर बाद के तीन दशक में इजरायल के साथ अपने मैत्रीपूर्ण संबंधों के साथ संतुलन बनाने वाली रही है। इसके अलावा हाल के वर्षों में भारत की स्थिति को भी इजरायल समर्थक के रूप में देखा जा रहा है। इसके अतिरिक्त भारत इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के संबंध में दो-राज्य समाधान में विश्वास करता है तथा शांतिपूर्ण तरीके से दोनों देशों के लिए आत्मनिर्णय के अधिकार का प्रस्ताव करता है। भारत ने इसराइल और फिलिस्तीन के बीच संतुलन रखने का रुख अपनाया है। यानी जब भी मानवाधिकार की बात होगी तो फिलिस्तीन का समर्थन करेंगे लेकिन जब भी अपने हितों से जुड़ी बात होगी तो हम इजरायल के साथ होंगे। भारत और इजरायल के संबंध इसलिए भी दिखते हैं क्योंकि दोनों देशों में दक्षिणपंथी नेतृत्व है, लेकिन भारत की पॉलिसी इजरायल को लेकर पूरी तरह से यथार्थवादी बनी हुई है और फिलिस्तीन को लेकर वो आगे भी आदर्शवादी बना रहेगा और उसे समर्थन देगा। यही डी-हाईफेनेशन की नीति है। एक तरफ जहां भारत ने 2018 में इजरायल के साथ सामरिक साझेदारी समझौता किया तो वहीं दूसरी तरफ 2020 में यूएन में फिलिस्तीन के आत्मनिर्धारण के अधिकार के पक्ष में मत दिया।

भारत का इजरायल के प्रति जो भी झुकाव है उसकी केवल इस आधार पर व्याख्या नहीं की जानी चाहिए कि इजरायल यूएस ब्लॉक का सदस्य है और अमेरिकी प्रभाव इस मामले में निर्धारक है। भारत को अपने कई हितों को पूरा करने के लिए साफ तौर पर इजरायल से सहयोग समर्थन चाहिए। भारत-इजरायल के बीच का संबंध तीन प्रमुख बातों पर आधारित है। पहला, स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक, इजरायल के लिए भारत शीर्ष हथियार खरीददारों में से एक है। दोनों देशों के बीच सहयोग के शुरुआती संकेत 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान देखने को मिले थे, जब इजरायल ने भारत को सैन्य सहायता प्रदान की थी। इजरायल ने पाकिस्तान के साथ दो युद्धों के दौरान भी भारत की सहायता की थी।

भारत के असैन्य हवाई वाहनों (यूएवी) का आयात भी अधिकांश इजरायल से होता है। इजरायल से खरीदे गए 176 यूएवी में से 108, खोजी यूएवी हैं और 68 हेरोन यूएवी हैं। अप्रैल 2017 में, भारत और इजरायल ने एक उन्नत मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली के लिए दो अरब डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किए थे, जो भारतीय सेना को 70 किलोमीटर तक की सीमा के भीतर विमान, मिसाइल और ड्रोन को मार गिराने की क्षमता प्रदान करता है। भारत ने उस साल मई में इजरायल निर्मित स्पाइडर त्वरित प्रतिक्रिया युक्त सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया था। भारतीय वायुसेना (आईएएफ) इस प्रणाली को अपनी पश्चिमी सीमा पर तैनात करने की योजना बना रही है। आतंकवाद के खिलाफ एक संयुक्त कार्यसमूह के माध्यम से भारत और इजरायल आतंकवाद के मुद्दों पर भी घनिष्ठ सहयोग करते हैं। कृषि क्षेत्र, जल संसाधन प्रबंधन के मामले में भी भारत को इजरायल से बहुत मदद मिलती है।

भारत और फिलिस्तीन संबंध
भारत अपनी विदेश नीति में आत्मनिर्धारण के अधिकार पर विशेष बल देता है और यही कारण है कि उसने फिलिस्तीन के जायज अधिकारों का समर्थन करने की नीति अपनाई। वर्ष 1974 में भारत पहला गैर अरब देश बना जिसने फिलिस्तीन लिबरेशन संगठन को फिलिस्तीनी लोगों के एकछत्र वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी। इसी क्रम में वर्ष 1988 में भारत उन पहले देशों में से एक था जिसने फिलिस्तीन राज्य को मान्यता प्रदान किया। फिलिस्तीन के साथ कूटनीतिक संबंधों को एक कदम आगे बढ़ाते हुए भारत ने 1996 में गाजा में अपना प्रतिनिधि कार्यालय खोला जिसे 2003 में रमल्ला में स्थानांतरित कर दिया गया था। भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र में फिलिस्तीनी लोगों के निर्धारण के अधिकारों के प्रारूप प्रस्ताव का सह प्रायोजक बनने की भूमिका निभाई और अक्टूबर 2003 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया और समर्थन किया जिसके तहत इजरायल द्वारा पृथकता की दीवार के निर्माण का विरोध किया गया था। वर्ष 2011 में भारत ने फिलिस्तीन को यूनेस्को का पूर्ण सदस्य बनने के पक्ष में मतदान किया और वर्ष 2012 में भारत ने उस संयुक्त राष्ट्र महासभा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया और उसका सह प्रायोजक भी बना जिसमें फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र संघ में मत अधिकारों के बिना उसका गैर सदस्य पर्यवेक्षक देश बनाने का प्रस्ताव किया गया था।

भारत ने फिलिस्तीन के हितों के सच्चे समर्थक के रूप में उसे अनवरत अपना समर्थन दिया है। वर्ष 2015 में भारत ने एशियाई अफ्रीकी कमेमोरेटिव कॉन्फ्रेंस में फिलिस्तीन पर जारी बंगडुंग उद्घोषणा का समर्थन किया और इसी वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ के परिसर में फिलिस्तीनी झंडे को लगाए जाने का समर्थन किया। भारत और फिलिस्तीन के मध्य द्विपक्षीय राजनीतिक यात्राओं के जरिए संबंधों को मजबूती दी जाती रही है। फरवरी 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री ने फिलिस्तीन की पहली यात्रा की और संबंधों को मजबूत बनाया गया। इब्सा के सदस्य के रूप में भारत ने सदस्य देशों के साथ मिलकर फिलिस्तीन में 5 परियोजनाओं को वित्त पोषित कर रहा है जिसमें इंडोर मल्टीपरपज स्पोट्र्स कॉम्प्लेक्स बनाना, चिकित्सालय और मानसिक रूप से विकलांग लोगों के लिए पुनर्वास केन्द्र खोलने का निर्णय भी शामिल है। वर्ष 2015 में भारत ने सॉफ्ट पावर और सॉफ्ट डिप्लोमेसी के आधार पर रमल्ला में पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस और 2017 में बेथलहम में दूसरे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को मनाने के लिए स्वस्थ वातावरण का निर्माण किया। पुन: वर्ष 2017 में भी रमल्ला में इस दिवस को मनाया गया और 2018 में फिर से बेथलहम में योग दिवस मनाया गया। इसी के साथ भारत ने फिलिस्तीन के साथ यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम 2017 में शुरू किया और विभिन्न छात्रवृत्ति शैक्षणिक अंतर संपर्कों के जरिए मानव पूंजी के निर्माण पर बल दिया है। भारत ने 166 देशों के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र महासभा की तीसरी समिति में फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्धारण के अधिकार के पक्ष में मतदान किया जबकि अमेरिका इजरायल, नौरू, माइक्रोनेशिया और मार्शल द्वीप ने विपक्ष में मतदान किया। गौरतलब है कि इस प्रस्ताव का प्रायोजक उत्तर कोरिया, मिस्र, निकारागुआ, जिम्बाम्बे और फिलिस्तीन हैं और इस प्रस्ताव पर 19 नवंबर 2019 को मतदान हुआ था जिसमें भारत ने फिलीस्तीन के आत्मनिर्धारण के अधिकार के पक्ष में अपना मतदान किया था।

18 नवंबर 2019 को अमेरिका ने फिलिस्तीनी अधिकृत क्षेत्र में इजराइली अधिवासों पर अपने नीति में बदलाव की घोषणा की और इसमें कहा गया कि यहूदी नागरिक अधिवासों को अंतरराष्ट्रीय कानून से असंगत कहने का कोई लाभ नहीं मिला है और न ही इसने शांति प्रक्रिया को बढ़ावा दिया है। जबकि संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता का कहना है कि यूएन का स्थाई मत है कि फिलिस्तीनी अधिकृत क्षेत्रों में इजराइली अधिवासों का होना अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि इजरायली अधिग्रहण जो कि 1967 में शुरू हुआ था उसका खात्मा होना चाहिए और इजराइल फिलिस्तीन समस्या का समाधान यूएन के प्रस्तावों पर आधारित होना चाहिए। इस क्रम में मेड्रिड टर्म ऑफ रेफरेंस, लैंड फॉर पीस सिद्धांत, अरब पीस इनिसियेटिव आदि के मूल भावों के अनुरूप अरब इजरायल समस्या का समाधान होना चाहिए। इसमें एक स्थाई द्विराज्य समाधान के लिए प्रयास करने पर बल दिया गया है, साथ ही संयुक्त राष्ट्र के सभी विशेषज्ञों और संगठनों तथा सभी राज्यों को फिलिस्तीन के लोगों के आत्म निर्धारण के अधिकार को अनवरत समर्थन देने का निवेदन किया गया है। भारत में फिलिस्तीन में विकासात्मक परियोजनाओं को चलाने, क्षमता निर्माण के लिए हाल के समय में 72.1 मिलियन डॉलर की बजटीय सहायता और समर्थन प्रदान किया है और इन परियोजनाओं में मुख्य रूप से शामिल हैं, इंस्टिट्यूट ऑफ डिप्लोमेसी का निर्माण, भारत फिलिस्तीन टेक्नोलॉजी पार्क, प्रिंटिंग प्रेस , स्कूल और हॉस्पिटल का गठन शामिल है।

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