राजनीति

पहले मतभेद सामने आया, अब ‘चाणक्यों’ ने बुरा फंसाया, मुश्किल में ‘इंडिया’!

देहरादून (गौरव ममगाई): विपक्ष का गठबंधन ‘इंडिया’ अस्तित्व में आया तो विपक्षी दलों को ऐसा लगा मानों 2014 के बाद से छाया अंधेरा अब छंटने की उम्मीद जग गई हो। कई बड़ी पार्टियों के क्षत्रप एक मंच पर आए, नीतीश कुमार और शरद पवार को इंडिया का सूत्रधार बताते हुए चाणक्य की संज्ञा दी गई, लेकिन किसे पता था कि ये दोनों चाणक्य ही आने वाले दिनों में इंडिया के लिए मुसीबत पैदा कर देंगे।

पहले शरद पवार की बात करते हैं। शरद पवार के भतीजे अजीत पवार पहले ही एनसीपी को तोड़कर भाजपा के एनडीए गठबंधन में शामिल होकर इंडिया गठबंधन को झटका दे चुके हैं, अब आये दिन शरद पवार की अजीत पवार के साथ होने वाली मुलाकातें इंडिया गठबंधन की न सिर्फ मुसीबत बढ़ा रही हैं, बल्कि गठबंधन के चाणक्य की ही विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करने लगी है।

शुक्रवार (10 नवंबर) को शरद पवार, उनकी भतीजी सुप्रिया सुले ने एक पारिवारिक कार्यक्रम में हिस्सा लिया, जिसमें भतीजे अजीत पवार भी पहुंचे। बताया जा रहा है कि शरद पवार व अजीत पवार ने लंबा समय साथ बिताया। दरअसल, यह कार्यक्रम शरद पवार के छोटे भाई प्रताप राव पवार ने रखा था, जिसमें उन्होंने अपने भाई व उनके बच्चों को आमंत्रित किया था। इससे पहले भी शरद पवार व भतीजे अजीत पवार कई बार मुलाकात कर चुके हैं। हालांकि, शरद पवार व उनकी भतीजी एवं कार्यवाहक अध्यक्ष सुप्रिया सुले कहते रहे हैं कि एनसीपी इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनी रहेगी। उन्होंने अजीत पवार के भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन में जाने पर नाराजगी जतायी है।

वहीं, अब तक भाजपा को घेरने के लिए विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने वाले बिहार के सीएम एवं जेडीयू नेता नीतीश कुमार भी पिछले दिनों विधानसभा में आपत्तिजनक भाषण देकर आलोचना का शिकार हो रहे हैं। पिछले तीन बार से मुख्यमंत्री का कार्यकाल देख रहे नीतीश कुमार जैसे अनुभवी नेता से ऐसे अमर्यादित शब्दों की अपेक्षा नहीं की जा सकती। इनके इस बयान की हर तरफ निंदा हो रही है, नीतीश को भी सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या माफी मांग लेने से राजनीति में वरिष्ठ नेताओं से इस तरह के व्यवहार पर रोक लग जाएगी?

यही नहीं, ऐसे कई विषय हैं, जिनमें इंडिया गठबंधन की सहयोगी पार्टियों के बीच गहरे मनभेद हैं। इनमें भी एकमत होना आसान नहीं है।

कारण 1:
राज्यों में अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहती हैः

केंद्र में लोकसभा चुनावों में विपक्षी दलों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगे बुरी हार का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में विपक्षी पार्टियों के पास फिलहाल एकमात्र विकल्प यही है कि वे राज्यों में चुनाव जीतकर अपने अस्तित्व को बचाए रखें। इसी कारण कांग्रेस-आप, कांग्रेस-सपा व अन्य पार्टियों के बीच समय-समय पर मतभेद व मनभेद उबरकर सामने आते रहे हैं, इसे रोक पाना आसान नहीं है।

कारण-2
भले ही इंडिया गठबंधन में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन गठबंधन में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (जेडीयू), पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी (टीएमसी) एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ऐसे बड़े नेता हैं, जिन्होंने अपने काम के जरिए राष्ट्रीय स्तर पर खास पहचान बनाई है। इन नेताओं की महत्वाकांक्षा है कि वे पीएम बनकर राजनीति से संन्यास लें, इससे बेहतर कुछ नहीं होगा, लेकिन कांग्रेस अपने नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करना चाहती है। कांग्रेस का यह तर्क भी है कि सबसे ज्यादा राज्यों में उसकी ही सरकार व लोकसभा में सांसद हैं।

कारण- 3

आर्टिकल 370 को खत्म करनाः

नरेंद्र मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से आर्टिकल-370 को हटाकर ऐतिहासिक काम किया। इस फैसले ने मोदी की हिंदुत्व एवं राष्ट्रवाद की छवि को और मजबूत बनाया। सरकार के इस फैसले को शिवसेना ने भी सराहा। उस समय एनडीए गठबंधन में भाजपा की साथ रही शिवसेना आज इंडिया गठबंधन में शामिल है।

शिवसेना आज भी 370 हटाने का समर्थन करती है, जबकि जम्मू व कश्मीर के कई पार्टी इसका विरोध करती है। गठबंधन में बिखराव की आशंका के चलते कांग्रेस भी इस फैसले पर खुलकर राय रखने से बचती है। इन सबके बीच कई राज्यों में विपक्षी पार्टियों के बीच राजनीतिक समीकरण बताते हैं कि सहयोगी दलों के बीच सबकुछ ठीक नहीं है, मगर केंद्र में मन जुदा होने के बावजूद सभी पार्टियां एकसाथ दिख रही हैं।

इन मुद्दों पर कांग्रेस के साथ क्षेत्रीय पार्टियां किस तरह से मनभेदों को दूर करते हुए बीच का रास्ता निकालती हैं, यह देखाना दिलचस्प होगा, लेकिन इतना जरूर है कि शुरुआती दिनों में ही जब इंडिया गठबंधन में अनेक विवाद एवं मनभेद सुनने को मिलने लगे हैं, तब इंडिया की दीर्घकालिक प्रासंगिकता पर प्रश्नचिह्न लगना भी स्वाभाविक है।

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