भारत ‘कार्बन उत्सर्जन शून्य’ लक्ष्य के करीब, पश्चिमी देशों को करारा जवाब
देहरादून। विश्व में बढ़ते जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के बीच भारत ने कार्बन उत्सर्जन को रोकने की दिशा में शानदार प्रदर्शन किया है। भारत ने 33 फीसदी कार्बन उत्सर्जन को कम किया है, अब 2030 तक 45 फीसदी कम करने के लक्ष्य के बेहद करीब है। एक तरफ भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, वहीं भारत में कार्बन उत्सर्जन में कमी हो रही है। नवीनीकरणीय ऊर्जा को अपनाने की दिशा में तेजी से बढ़ रहे भारत का यह प्रदर्शन अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे पश्चिमी देशों के लिए किसी झटके से कम नहीं है।
‘द थर्ड नेशनल कम्युनिकेशन टू द यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन आफ क्लाइमेट चेंज’ रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई हैं, अब इस रिपोर्ट को यूएई में चल रहे कॉप-28 सम्मेलन में प्रस्तुत किया जायेगा। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जीडीपी लगभग 7 प्रतिशत सालाना गति से बढ़ रही है, लेकिन ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन महज 4 प्रतिशत ही बढ़ रहा है। 2016 से 2019 तक भारत ने ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 3 प्रतिशत की कमी की है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि इसका कारण भारत द्वारा अक्षय ऊर्जा को तेजी से अपनाया जाना है, साथ ही भारत वनीकरण में वृध्दि करते हुए कार्बन उत्सर्जन के प्रभाव को कम करने में सफल हो रहा है।
पश्चिम देश क्यों करते हैं भारत व अन्य विकासशील देशों की आलोचना ?
दरअसल, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देश पवन, सौर व तापीय ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा को अपनाने की दिशा में काफी आगे पहुंच गये हैं। ये विकसित देश कोयले जैसे पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों का उपयोग बहुत ही सीमित मात्रा में करते हैं। इसलिए ये देश अभी भी कोयले से बिजली उत्पादन पर निर्भर भारत व अन्य विकासशील देशों की वैश्विक मंच पर आलोचना करते दिखाई देते हैं। ये पश्चिमी देश चाहते हैं कि भारत व अन्य विकासशील देश जल्द से जल्द कोयले का प्रयोग बंद करें, और पूरी तरह से अक्षय ऊर्जा को अपनायें, ताकि पर्यावरण को नुकसान होने से बचाया जा सके। आपको जानकर हैरानी भी होगी कि जो पश्चिमी देश आज विकासशील देशों को नसीहत दे रहे हैं, शुरू से अब तक कार्बन उत्सर्जन की बात आती है तो यही देश सबसे आगे नजर आते हैं। इनमें अमेरिका टॉप पर है। इसके बाद क्रमशः रूस व चीन भी शीर्ष पर है।
इन सबके बीच भारत, पश्चिमी देशों को कोसने के बजाय, अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ते प्रगति की ओर अग्रसर है, साथ ही अपने पर्यावरणीय दायित्वों का भी बखूबी निर्वहन कर रहा है। इसे भारत द्वारा पश्चिमी देशों को दिया करारा जवाब भी माना जा सकता है।