देहरादून (गौरव ममगाईं)। आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय और सुशासन के बाद अब धामी सरकार ने लोक संस्कृति के संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। सीएम मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश के स्कूलों के पाठ्यक्रम में गढ़वाली, कुमाऊंनी व जौनसारी जैसी प्रमुख स्थानीय बोलियों को भी शामिल करने का फैसला लिया है। सरकार पाठ्यक्रम तैयार होने के बाद इसे जल्द लागू करने की तैयारी में है।
सीएम पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर शिक्षा विभाग पाठ्यक्रम को उत्तराखंड की स्थानीय बोलियों में तैयार करने में जुट गया है। इसके लिए लेखन मंडल का गठन किया गया है, जिसमें लोक संस्कृति एवं बोली विशेषज्ञों को शामिल किया गया है। बता दें कि नई शिक्षा नीति में प्रारंभिक शिक्षा के पाठ्यक्रम को राज्य की स्थानीय भाषा व बोलियों में उपलब्ध कराने का विकल्प है। इसी के तहत सीएम धामी ने कक्षा 1 से पांचवीं तक पाठ्यक्रम में गढ़वाली, कुमाऊंनी व जौनसारी जैसी प्रमुख बोलियों को शामिल करने का फैसला लिया है। दरअसल, उत्तराखंड में नई शिक्षा नीति लागू तो हो गई थी, लेकिन पाठ्यक्रम में स्थानीय बोलियों को लागू नहीं किया गया था। इस पर सीएम धामी ने स्वतः संज्ञान लेकर लोक बोली एवं संस्कृति के संरक्षण को अधिक महत्व देते हुए इसे जल्द लागू करने का निर्देश दिया है।
बता दें कि 2021 में पुष्कर सिंह धामी ने सीएम बनने के बाद पहाड़ी दिवाली बग्वाल को मनाने की परंपरा शुरू की थी। तब से अब तक हर साल सीएम धामी बड़े ही उल्लास के साथ लोक पर्व बग्वाल को मनाते आ रहे हैं। सीएम धामी कई मौकों पर लोक कला एवं संस्कृति के प्रति असीम प्रेम व लगाव को दर्शा चुके हैं।
लोक बोली व संस्कृति के संरक्षण में बड़ा कदम-
दरअसल, आज हमारे समाज में पश्चिमी संस्कृति का अधिक प्रभाव है। आज पर्वतीय क्षेत्रों से लोग मैदानी क्षेत्रों का रूख कर रहे हैं, जिससे युवा पीढ़ी अपनी गढ़वाली, कुमाऊंनी, जौनसारी, रंवाई जैसी राज्य की प्रमुख लोक-बोली को प्रयोग में नहीं लाती हैं। इससे युवा पीढ़ी का लोक बोली व संस्कृति से जुड़ाव लगातार कम होता जा रहा है। निश्चित रूप से धामी सरकार के इस कदम से युवा पीढ़ी अब अपनी लोक बोली व संस्कृति से जुड़ सकेंगी। जाहिर है कि इस तरह लोक-बोली व संस्कृति के जरिये उत्तराखंडियत के संरक्षण की दिशा में इसे सीएम पुष्कर सिंह धामी का बड़ा कदम माना जा सकता है।