देहरादून: स्कूली शिक्षा किसी भी देश के विकास का बैकबोन है। जितनी बेहतर, बोझमुक्त स्कूली शिक्षा उतना ही बेहतर ह्यूमन कैपिटल भविष्य के लिए तैयार होता है। कहते हैं Education is a better safeguard of liberty than a standing army. उत्तराखंड की धामी सरकार ने राज्य में स्कूली शिक्षा की जर्नी को रोचक और लर्निंग स्किल को मजबूत करने के लिए नेशनल एजुकेशन पॉलिसी की बातों का ध्यान रखते हुए स्कूली शिक्षा से जुड़ी एक अहम और सकारात्मक फैसला लिया है। उत्तराखंड के सभी स्कूलों में प्रत्येक एकेडमिक सेशन में 10 बैग फ्री डेज पहल की शुरुआत की जा रही है। जिससे बच्चों पर किताबों का भार कम हो और उनके व्यक्तित्व के विकास का बेहतर वातावरण तैयार हो सके।
उत्तराखंड सरकार ने प्रत्येक माह के अंतिम शनिवार को स्कूली बच्चों के लिए ” बैग फ्री डे” घोषित किया है।
इस पहल का मुख्य उद्देश्य 6 वीं से 12 वीं क्लास तक के बच्चों पर भारी टेक्स्टबुक का बोझ घटाना है। अपर प्राइमरी और सेकेंडरी स्कूल स्टूडेंट्स को विशेष तौर पर ध्यान में रखते हुए इस पहल को अंजाम दिया जायेगा। बैग फ्री डे के दिन इन स्कूल स्टूडेंट्स को विभिन्न कलात्मक, इनोवेटिव, स्किल डेवलपमेंट गतिविधियों में एंगेज किया जायेगा जिससे मानसिक विकास के साथ साथ शारीरिक विकास का मार्ग भी प्रशस्त हो सके। इन बच्चों को सॉइल मैनेजमेंट ( soil management) , मशीन लर्निंग, पॉटरी ( pottery) , वुडवर्क, कैलीग्राफी ( calligraphy) , हेल्थ एजुकेशन, कम्युनिकेशन स्किल्स, नेचर कंजरवेशन, वेल्डिंग, कास्टिंग, स्टिचिंग और रोबोटिक्स जैसी गतिविधियों से जोड़ा जाएगा।
उत्तराखंड सरकार के इस निर्णय से उत्तराखंड के महान कवि गिरीश तिवारी गिर्दा की एक कविता जीवंत हो उठती है। गिर्दा ने स्कूली शिक्षा पर जो सपना देखा था और जिसे कलमबद्ध किया था, उसे धामी सरकार ने मूर्त रूप दिया है। कविता है :
जहाँ न बस्ता कंधा तोड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ न पटरी माथा फोड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ न अक्षर कान उखाड़ें, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ न भाषा जख़्म उभारे, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ अंक सच-सच बतलाएँ, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ प्रश्न हल तक पहुँचाएँ, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ न हो झूठ का दिखव्वा, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ न सूट-बूट का हव्वा, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ किताबें निर्भय बोलें, ऐसा हो स्कूल हमारा
मन के पन्ने-पन्ने खोलें, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ न कोई बात छुपाए, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ न कोई दर्द दुखाए, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ फूल स्वाभाविक महकें, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ बालपन जी भर चहकें, ऐसा हो स्कूल हमारा
विवेक ओझा, दस्तक टाइम्स, उत्तराखंड संपादक