झारखंड में गिद्धों को बचाने की अनूठी पहल , खुला वल्चर रेस्त्रां , गिद्ध भोजनालय
नई दिल्ली ( विवेक ओझा) : भारत में गिद्ध विलुप्ति के कगार पर हैं। भारत की कुल 9 गिद्ध प्रजातियों में से कुछ तो विलुप्त हो चुकी हैं और कुछ बची हुई जो हैं वो आईयूसीएन के अनुसार अति संकटापन्न ( critically endangered) स्थिति में हैं। अब इन गिद्धों के संरक्षण की दिशा में झारखंड ने एक विशेष कार्य किया है। झारखंड में गिद्धों को बचाने की अनूठी पहल शुरू की गई है। इस पहल के तहत झारखंड के कोडरमा जिले में गिद्ध रेस्तरां ( Vulture Restaurant) की शुरुआत की गई है जिसमें गिद्धों को खाना मुहैया कराया जाएगा।
दरअसल तेजी से कम हो रहे गिद्धों को बचाने के लिए यह पहल की गई है। कोडरमा में यह गिद्ध रेस्तरां का निर्माण हो चुका है और जल्द ही इसका संचालन शुरू हो जाएगा। गिद्ध भोजनालय में पक्षियों को भोजन के रूप में पशुधन के शवों को परोसा जाएगा। गौशालाओं एवं नगर पालिकाओं के लिए डाइक्लोफेनाक मुक्त मवेशियों के शव प्रदान करने के लिए एक प्रोटोकॉल तैयार होने के बाद इसे शुरू कर दिया जाएगा।गौशालाओं और नगर पालिकाओं से मिलने वाले मवेशियों के शव एक सीमांकित स्थल ‘गिद्ध भोजनालय’ में गिद्धों के लिए डाले जाएंगे। कोडरमा ‘गिद्ध भोजनालय’ की स्थापना तिलैया नगर परिषद अंतर्गत गुमो में एक हेक्टेयर भूमि पर की गई है क्योंकि इसे पक्षियों के लिए भोजन स्थल माना जाता है।
गिद्ध संरक्षण के लिए जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केन्द्र है सक्रिय: जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केन्द्र (जेसीबीसी) की स्थापना गिद्धों की तीन भारतीय गिप्स प्रजातियों- ओरिएंटल व्हाइट-बैक्ड, लॉन्ग-बिल्ड और स्लेंडर-बिल्ड गिद्धों की आबादी में नाटकीय रूप से आई गिरावट की जांच के लिए की गई थी। यह हरियाणा वन विभाग और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के बीच एक सहयोगी पहल है। इस केंद्र का मुख्य उद्देश्य 15 वर्षों में गिद्धों की 3 प्रजातियों में से प्रत्येक के 25 जोड़ों की एक संस्थापक आबादी स्थापित करना और कम से कम 200 पक्षियों की आबादी का उत्पादन करना और उनका वन्य जीवन में पुन: प्रवेश कराना है।वर्ष 2023-24 के दौरान जंगल में ओरिएंटल सफेद पीठ वाले गिद्धों को छोड़ने का प्रस्ताव किया गया है। छोड़े गए गिद्धों की कम से कम एक वर्ष तक उपग्रह ट्रांसमीटरों की सहायता से कड़ी निगरानी रखी जाएगी। यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे जंगली परिस्थितियों में अच्छी तरह से समायोजित हो जाएं और डाइक्लोफेनाक विषाक्तता के कारण कोई मृत्यु दर न हो, उनकी किसी भी व्यवहार संबंधी समस्या का पता लगाया जाएगा। इसके बाद गिद्धों को हर साल नियमित रूप से जंगल में छोड़ा जाएगा।