रांची: झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन भ्रष्टाचार से जुड़े मामले में जेल में हैं। उनके पिता शिबू सोरेन भी केंद्र में मंत्री और सांसद रहते हुए भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में फंसे थे। 1993 के सांसद घूसकांड में हेमंत सोरेन के पिता और जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन का नाम जोर-शोर से उछला था। शिबू सोरेन समेत जेएमएम के चार सांसदों पर आरोप लगा था कि उन्होंने तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार को बचाने के लिए घूस ली थी। आरोप था कि शिबू सोरेन और उनकी पार्टी के तीन सांसदों – शैलेंद्र माहतो, साइमन मरांडी और सूरज मंडल – के घर सूटकेस भर-भर कर नोटों की गड्डियां पहुंची थीं।
1993 में केंद्र में कांग्रेस की नरसिम्हा राव की सरकार चल रही थी। 28 जुलाई 1993 को बीजेपी नरसिम्हा राव के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई, सरकार का गिरना लगभग तय था, लेकिन जब संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई तो जेएमएम के सांसदों ने सरकार के पक्ष में और अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया और इस तरह कांग्रेस की सरकार बच गई। कांग्रेस की सरकार तो बच गई लेकिन नरसिम्हा राव सरकार पर सरकार बचाने के लिए घूस देने के जो आरोप लगे उसके दाग कभी नहीं धुले।
1995 में भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने इस घूसकांड का संसद के भीतर सनसनीखेज खुलासा किया था। वाजपेयी संसद के सभी सदस्यों के सामने जेएमएम के सांसद शैलेंद्र महतो को लेकर आए।
शैलेंद्र महतो ने स्वीकार किया कि शिबू सोरेन समेत उनकी पार्टी के सांसदों ने कांग्रेस की सरकार को बचाने के लिए 50-50 लाख रुपए की घूस ली थी। इस खुलासे के बाद इस पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराई गई।
सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में खुलासा किया कि एक मारुति जिप्सी में सूटकेस भरकर रुपए लाए गए थे और कांग्रेस नेता सतीश शर्मा के फार्म हाउस पर हुई पार्टी में इन पैसों को जेएमएम सांसदों को बांटा गया।
सीबीआई ने चार्जशीट में बताया था कि कांग्रेस नेता बूटा सिंह ने 26 जुलाई 1993 को नरसिम्हा राव के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव के खिलाफ वोट करने के लिए जेएमएम के चार सांसदों से संपर्क किया था और इसके बाद उन चारों सांसदों को बूटा सिंह तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से मिलवाने के लिए उनके सरकारी आवास 7 रेसकोर्स ले गए। बूटा सिंह ने खुद इस बात को स्वीकार किया था।
हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में रिश्वत लेने वाले सभी नौ सांसदों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगा दी। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत उन्हें अभियोजन से मिली छूट का हवाला देते हुए इस केस को रद्द कर दिया था। 2000 में कोर्ट ने सिर्फ राव व बूटा सिंह को दोषी करार दिया, लेकिन 2002 में इन्हें भी बरी कर दिया गया।
इसी तरह शिबू सोरेन जब 2006 में केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार में कोयला मंत्री थे, तब कोल ब्लॉक आवंटन में भ्रष्टाचार के आरोप उनपर भी लगे। कोयला घोटाले की जांच के सिलसिले में सीबीआई ने सोरेन से लंबी पूछताछ की थी। हालांकि इस मामले में सोरेन के खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज नहीं हुआ था।
पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख ने कुछ साल पहले आई अपनी किताब में दावा किया कि तत्कालीन कोयला मंत्री शिबू सोरेन और दसारी नारायण राव समेत तमाम दलों के कई सांसदों ने कोयला मंत्रालय में सुधार के उपायों को अमल में ही नहीं आने दिया। अगर वक्त रहते सुधार के कदम उठाए जाते तो कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला होने से रोका जा सकता था।
उन्होंने किताब में लिखा कि जब 2004 में यूपीए की सरकार बनी और शिबू सोरेन को कोयला मंत्री बनाया गया, तब मैंने सोरेन को बताया था कि देश में कोयले की गंभीर कमी है। बिना वक्त गंवाएं कोयला आपूर्ति बढ़ाने की जरूरत है। लेकिन सोरेन की प्राथमिकता में केवल कोल ब्लॉक के तेजी से आवंटन, अधिकारियों का तबादला कराने जैसी चीजें थीं।