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असम में काला जादू के खिलाफ सख्त कानून

संजीव कलिता

असम में अब से जादू-टोना अथवा झाड़-फूंक के जरिए समाज में अंधविश्वास को बढ़ावा देने तथा इसकी मकड़जाल में फांसकर आम नागरिकों से धन ऐंठने वालों की खैर नहीं। हाल ही संपन्न विधानसभा के बजट सत्र में दि आसाम हिलींग (प्रिवेंशन ऑफ इविल) प्रैक्टिसेस बिल, 2024 नामक विधेयक को पारित कर लिया गया है। अब विधानसभा सचिवालय की ओर से इसे राज्यपाल से मंजूरी के लिए भेज दिया जाएगा और उसके बाद सरकार कानून को लागू करेगी। इस आधुनिकता के दौर में भी काला जादू का नाम सुनते ही मन में डर पैदा होने लगता है। तंत्र-मंत्र और काला जादू का चलन सदियों से चलता आ रहा है। आज भी कई ऐसे लोग है जो काला जादू पर विश्वास करते हैं, लेकिन क्या वाकई काला जादू होता है?

काला जादू एक ऐसी कला है जिसके माध्यम से एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को नुकसान पहुंचा सकता है। भारत समेत पूरी दुनिया में कई ऐसे तांत्रिक हैं जो इस विद्या का प्रयोग करते हैं। काला जादू गुप्त तरीके से की जाने वाली कला है जिसका प्रयोग अक्सर किसी को वश में करने के लिए तो कहीं शत्रु पर विजय प्राप्ति के लिए किया जाता है। कहते हैं जिस व्यक्ति पर काला जादू किया जाता है उसका स्वयं पर काबू नहीं रहता। ये व्यक्ति के जीवन को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से प्रभावित करता है। असम का मायंग गांव सदियों से काला जादू के लिए काफी फेमस है।

इस गांव में आने पर मुगलों और अंग्रेजों को भी काफी डर लगा करता था। मायंग गांव में काले जादू से जुड़ी कई कहानियां भी हैं। एक समय ऐसा भी हुआ करता था कि इस गांव में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं था, जिसे काला जादू न आता हो, बल्कि बच्चे-बच्चे तक इस टोने-टोटके जैसी चीजों को जानते थे। गांव के लोगों का मानना था कि उन्हें काले जादू की शक्ति वरदान के रूप में मिली है और सदियों से यह अभ्यास चलता आ रहा है। हालांकि, अब मायंग में कुछ गिने-चुने लोग ही काले-जादू का अभ्यास करते हैं।

विज्ञान के अनुसार काला जादू एक ऊर्जा मात्र है जिसका सकारात्मक और नकारात्मक इस्तेमाल होता है। ये जादू और कुछ नहीं बस एक बंच ऑफ एनर्जी है जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जाता है या यूं कहें कि एक इंसान के द्वारा दूसरे इंसान पर भेजा जाता है। जानकारों के मुताबिक ज्यादातर बार यह सिर्फ मनोवैज्ञानिक होता है। उदाहरण के तौर पर अगर आपको घर से निकलते वक्त एक खोपड़ी, खून दिख जाए तो कई बार व्यक्ति भय की वजह से बीमार होने लगता है। काम में मन नहीं लगता, जिससे उसे आर्थिक तौर पर भी परेशानी झेलनी पड़ती है। जानकार कहते हैं कि ऐसी घटना के बाद सब कुछ नकारात्मक होने लगेगा क्योंकि एक तरह का भय आपको जकड़ लेता है। ये आपके दिमाग पर असर डालता है। ऐसे में काला जादू की कला जानने वाले आपको आसानी से अपने वश में कर लेते हैं।

इस तरह के गैर-विज्ञानसम्मत कुरीतियों को समाज में व्याप्त अंधविश्वास के बहाने जादू-टोना के जरिए समाज के सार्वजनिक स्वास्थ्य के ताने-बाने को नष्ट करने तथा आम नागरिकों को लूटने अथवा यूं कहें कि चिकित्सा के नाम पर उपचार और सम्मोहन की कुप्रथा को खत्म करने के लिए असम सरकार नेदि आसाम हिलींग (प्रिवेंशन ऑफ इविल) प्रैक्टिसेस बिल, 2024 को पारित कर इसे कानूनी रूप देने की पहल की है। मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्व शर्मा की सरकार की इस पहल को समाज के जागरूक वर्ग ने स्वागत किया है। गृह एवं राजनीतिक विभाग की ओर से संसदीय कार्यमंत्री पीयूष हजारिका ने इस नए विधेयक को सदन के पटल पर रखने के दौरान कहा कि अगर यह विधेयक कानून बन गया तो जादू-टोना या काला जादू अपराध माना जाएगा और इस अपराध में शामिल व्यक्ति को 1 लाख रुपए तक का जुर्माना और पांच साल तक की कैद का प्रावधान है। पारित विधेयक में प्रस्ताव रखा गया है कि कोई भी व्यक्ति जादू-टोने के जरिए इलाज कर नहीं सकेगा अथवा गलत प्रचार करके कोई विज्ञापन प्रकाशित कर सकता है।

विधानसभा में यह विधेयक पारित हो गया तो सब-इंस्पेक्टर रैंक से नीचे के अधिकारी ऐसे मामलों की जांच नहीं कर पाएंगे। यह कानून पूरे राज्य में लागू होगा। जादू-टोना, झाड़-फूंक जिसे असम में कबिराजी चिकित्सा नाम से भी जाना जाता है, जैसी कुरीतियों के खिलाफ सरकार जागरूकता कार्यक्रम भी चलाएगी। यह विधेयक एक स्वस्थ और विज्ञान-उन्मुख समाज के निर्माण के हित में है। इस विधेयक से राज्य में तंत्र के बड़े कारोबार पर रोक लगने की उम्मीद है। गौरतलब है कि राज्य में तंत्र-मंत्र और जादू-टोना के कारण आए दिन जघन्य घटनाएं होती रहीं है। अंधविश्वास और रूढ़ियों से मुक्त एक स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए सरकार की यह पहल वाकई प्रशंसनीय है।

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