दस्तक-विशेषराजनीतिराष्ट्रीय

लोकतंत्र को धारदार बनाने के लिए जरूरी है शत-प्रतिशत मतदान

विवेक ओझा

किसी भी देश में एक बेहतर राजनीतिक संस्कृति के विकास के लिए और राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया को मजबूती देने के लिए मतदाता जागरूकता एक पूर्व निर्धारित शर्त है। राजनीतिक प्रणाली के प्रति अगर बड़ी आबादी में अरुचि और मतदान के संदर्भ में राजनीतिक उदासीनता बनी हुई हो तो एक गतिशील सरकार का गठन किया जाना मुश्किल होता है। प्रसिद्ध राजनीतिक विचारक जेएस मिल मतदान को इसलिए एक बेहद महत्वपूर्ण प्रक्रिया मानते थे। वह मतदान को एक पवित्र कृत्य मानते थे जिसकी अहमियत के आधार पर उसने अशिक्षित लोगों को मतदान की प्रक्रिया से न जोड़ने तक की सिफारिश कर दी थी। बहुत से देश उनके इस मत से संगति नहीं रखते और अपनी पूरी आबादी को धर्म, भाषा, लिंग, शिक्षा के स्तर के आधार पर बिना किसी भेदभाव के मतदान का अधिकार देते हैं। लोकतांत्रिक देशों में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की धारणा पर ही ध्यान केन्द्रित किया गया है लेकिन इसके साथ ही कई राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि असाक्षर, अशिक्षित लोगों को यह अधिकार नहीं होना चाहिए क्योंकि ऐसे लोग जाति, धर्म, भाषा आदि आधारों पर राजनीतिक उम्मीदवारों को मत देते हैं, इससे राजनीति के अपराधीकरण की प्रक्रिया को भी बढ़ावा मिलता है क्योंकि असाक्षर या कम पढ़े लिखे लोग आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों का भी चयन कर लेते हैं। लेकिन भारत जैसे देश में मतदान का अधिकार देते समय यह नहीं देखा गया कि किसकी बुद्धि, विवेक, निर्णय प्रक्रिया का स्तर क्या है, किसी आम आदमी की राजनीतिक समझ कितनी है।

जब भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली में इतनी उदार सोच के साथ मतदान का अधिकार दिया गया तो मतदाताओं का यह अनिवार्य दायित्व हो जाता है कि सबसे पहले तो वे देश में शत-प्रतिशत मतदान के स्तर को प्राप्त कराने में सहयोग करें और इसके साथ ही ऐसे राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को मत दें जो देश में जनकल्याण की दिशा में काम कर रहे हैं। देश के लिए अच्छा काम कौन कर रहा है, बेहतर पॉलिसी मेकिंग, अच्छे आर्थिक निर्णय लेकर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती की राह पर ले जाने वाले दलों को मतदाताओं का अधिक समर्थन मिलना जरूरी है। राजनीति को जातीय, क्षेत्रीय मुद्दों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हित के चश्मे से देखना जरूरी है और पिछले एक दशक में भारतीय मतदाताओं ने जो परिपक्व राजनीतिक समझ का परिचय दिया है, उससे मतदान का स्तर लगातार बढ़ा है। भारत के सीईसी राजीव कुमार के अनुसार 96.8 करोड़ लोग 12 लाख से अधिक मतदान केन्द्रों पर आगामी चुनावों में वोट डालने के पात्र हैं। इसमें महिला मतदाता की भागीदारी तेजी से बढ़ी है। प्रति हजार पुरुषों पर महिला वोटर की संख्या 2024 में 948 है जो कि 2019 में केवल 928 ही थी। इस बार का लोकसभा चुनाव 7 चरणों में संपन्न होगा और ऐसी उम्मीद की जा रही है कि भारत में राजनीतिक और मतदान साक्षरता का स्तर बढ़ने के चलते व्यापक स्तर पर मतदान होगा।

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में मतदान महज वोट करने के लिए चुनावी बटन को प्रेस करने की प्रक्रिया का ही नाम नहीं है। मतदान एक ऐसी प्रक्रिया है जो देश में जन आकांक्षा को मूर्तमान बनाने का माध्यम है, शासन को सुशासन तक पहुंचाने वाला उपकरण है, प्रतिनिधि मूलक लोकतंत्र को मजबूत करने का आधार है, देश की सत्ता में जन साझेदारी का आयाम है। भारत जैसे देश में शत-प्रतिशत मतदान की आवश्यकता है क्योंकि मतदान का स्तर जितना बढ़ेगा, राजनीतिक अधिकारों के प्रति जागरूक लोगों के द्वारा उतनी ही अच्छी सरकार का चयन किया जाएगा। वोट देकर हम अपने अधिकार का उपयोग कर सकते हैं और देश को चलाने के लिए अच्छे प्रतिनिधि का चुनाव कर सकते हैं। वोट से हम अच्छे सांसद, विधायक, पार्षद, जिला पंचायत सदस्य, जनपद सदस्य चुन सकते हैं। सभी चुनाव महत्वपूर्ण है। ऐसे में अपने मताधिकार का उपयोग करना जरूरी है।

भारत में राष्ट्रीय मतदाता दिवस की प्रासंगिकता

भारत में राष्ट्रीय मतदाता दिवस प्रत्येक वर्ष 25 जनवरी को मनाया जाता है। इसे अधिक युवा मतदाताओं को राजनीतिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए शुरू किया गया था। यह विशेष दिन पहली बार 25 जनवरी 2011 को भारत के चुनाव आयोग के स्थापना दिवस को चिह्नित करने के लिए मनाया गया था, जो देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आयोजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राष्ट्रीय मतदाता दिवस मतदान के महत्व की याद दिलाता है और इसका उद्देश्य नागरिकों को चुनावी प्रक्रिया में शिक्षित और संलग्न करना है। भारत के कई राज्यों में अलग अलग तरीकों से मतदाताओं को जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है। स्कूल, कॉलेज, मीडिया, अखबार, सोशल मीडिया, रेडियो, मेट्रो और अन्य ऐसे ही स्थानों पर मतदाता जागरूकता संबंधी विज्ञापन के स्तर पर कार्यवाही की जा रही है। भारत में कुछ जगहों में वैवाहिक कार्डों में मतदान की अपील करते देखा गया है। आने वाले समय में चुनावों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी प्रभावित करेगा जिस पर चुनाव आयोग को निगाह रखनी भी जरूरी रहेगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर तमिलनाडु के चुनावों में पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की आवाज का इस्तेमाल कर मतदाताओं से मत पाने के भावुक अपील कराने की बात सामने आई है।

इसके अलावा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के तहत डीप फेक का इस्तेमाल कर ऐसे चुनावी मुखौटों को भी तैयार किया जा सकता है जिससे राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को प्रभावित किया जा सके। भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान के चुनाव में डीप फेक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को बदनाम करने के लिए किया जा चुका है। इसकी संभावना को भारत में भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। ऐसे में भारत के चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोगों की जिम्मेदारी बनती है कि इस मुद्दे को संवेदनशीलता के साथ लिया जाय ठीक वैसे ही जैसे मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट, चुनावी प्रचार प्रसार में आवश्यकता से अधिक धन व्यय करना, मतदाताओं को रिझाने के लिए भ्रष्ट उपायों को रोकने के संदर्भ में किया जाता है। वस्तुत: भारत में चुनाव एक पर्व है जिसमें जन संप्रभुता का दीपक प्रज्ज्वलित होता है। भारत में अहिंसक तरीके से इतनी बड़ी आबादी के बीच चुनावों का शांतिपूर्ण तरीके से आयोजन दुनिया की किसी भी बड़ी उपलब्धि से आगे की स्थिति है। भारतीय मतदाताओं की यह जिम्मेदारी है कि वे इस लोकतांत्रिक यात्रा को उसके गंतव्य तक पहुंचने में अपना योगदान करते रहें। चुनावी पापुलिस्ट नारों, वायदों की सीमितता को समझते रहें, और सबसे अधिक आवश्यक कि योग्य, कर्मठ और कुछ बेहतरी का काम करने वाले उम्मीदवारों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों पर तरजीह दें। यह आदर्शवादी तो लग सकता है लेकिन भ्रष्टाचारी, कालाबाजारी, उत्तर प्रदेश में सोशल इंजीनियरिंग की जातीय राजनीति को मतदाताओं ने अस्वीकार कर अपनी धारदार हो रही समझ का परिचय भी दिया है।

उत्तराखंड में मतदान सबसे बड़ा नैतिक दायित्व

उत्तराखंड केमुख्यमंत्री धामी का मानना है कि इस बार लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तराखंड में मतदान सबसे बड़ा नैतिक दायित्व है। देवभूमि के हर नागरिक को यह ठानना होगा कि उसे एक स्थिर, नैतिक संवेदनाओं से भरपूर जनकल्याणकारी सरकार चाहिए और इसके लिए मतदान के स्तर को शत प्रतिशत ले जाने का काम करना होगा। देवभूमि उत्तराखंड में इस बार लोकसभा चुनाव में 75 प्रतिशत मतदान के लिए योजना तैयार की गई है। संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी नमामि बंसल ने बताया है कि इसके लिए बूथ स्तर तक का मैनेजमेंट प्लान तैयार किया गया है। दरअसल, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी मतदाता जागरूकता को एक परिपक्व लोकतंत्र की जरूरी शर्त मानते हैं। उनका मानना है कि अगर मतदाता का व्यवहार और आचरण सुशासन को आधार बनाके होने लगे तो पूरे पॉलिटिकल सिस्टम में एक अभूतपूर्व ट्रांसफॉर्मेशन दिखने लगेगा। मतदान के लिए हर व्यक्ति नैतिक रूप से बाध्य हो जाए, इसकेलिए सरकारों को बड़ी जिम्मेदारी से कार्य करना पड़ता है। सरकार की कोई भी छोटी बड़ी भूल को आधार बनाकर लोग पूरे पॉलिटिकल सिस्टम के बारे में नकारात्मक बातें फैलाते हैं जिसका प्रभाव मतदाता के व्यवहार में दिखाई देता है। बहुत से लोग इसलिए भी मतदान करने से बचते हैं कि अलग-अलग दलों ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को उम्मीदवार बना रखा है। इसलिए यह जरूरी है कि स्वस्थ ईमानदार छवि वाले लोगों को ही टिकट दिया जाय। ऐसा काम करके राजनीतिक व्यवस्था में होने वाले भ्रष्टाचार को भी पहले से रोका जा सकता है। इन सब कार्यों के लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति चाहिए और धामी सरकार में वो इच्छा शक्ति दिखाई देती है। कुशल राजनेताओं का चयन और उन्हें जनता के हित में हर समय जवाबदेह बनाए रखना धामी सरकार की यूएसपी मानी जाने लगी है।

मतदाता जागरूकता के लिए प्रयास

उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव शांतिपूर्ण कराने व मतदाता जागरूकता को लेकर अनेक गतिविधियां आयोजित की जा रही हैं। 83 लाख 21 हजार 207 मतदाताओं को मतदान के लिए विभिन्न माध्यमों से जागरूक किया जा रहा है। राज्य में अब तक 34 लाख 94 हजार मतदाता मतदान की शपथ ले चुके हैं। राष्ट्रीय मतदाता दिवस 25 जनवरी से मतदाता जागरूकता अभियान की शुरुआत की गई। उत्तराखंड की संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने कहा है कि मतदाता जागरूकता से संबंधित विभिन्न गतिविधियों के लिए 13 फरवरी 2024 से एक कैलेंडर भी तैयार किया गया है। इसके लिए मेहंदी प्रतियोगिता, रंगोली, स्लोगन लेखन में अब तक 16 हजार गतिविधियां आयोजित की जा चुकी हैं जिसमें अभी तक छह लाख 55 हजार मतदाताओं ने हिस्सा लिया है। लगभग 5700 मैराथन और रैली का आयोजन भी मतदाता जागरूकता के लिए किया गया है, जिसमें लगभग 72 हजार मतदाताओं ने हिस्सा लिया। भाषण और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं के लिए भी मतदाता जागरूकता के लिए प्रदेश में 25 हजार आयोजन किए जा चुके हैं।

Related Articles

Back to top button