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‘नेता मुक्त’ होती कांग्रेस

जितेन्द्र शुक्ला

साल 2014 में जब भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में आगे किया था तब उन्होंने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था। हालांकि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी कांग्रेस को लगातार कमजोर करते चले गए। स्थिति यह हुई कि कांग्रेस को बीते 10 साल में 51 चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। खैर, चुनाव में हार-जीत तो लगी रहती है लेकिन कांग्रेस के लिए मुसीबत का सबब यह बात भी है कि उसके कद्दावर नेता एक-एक करके पार्टी को अलविदा करते जा रहे हैं। कुछ नेताओं के पाला बदलने से तो स्वयं कांग्रेस आलाकमान भी हैरान हैं। स्थिति यह है कि कांग्रेस ने अपने जिन दर्जनभर नेताओं को मुख्यमंत्री तक के पद पर आसीन किया, वह भी पार्टी को अलविदा कह गए। इन सभी नेताओं के कांग्रेस छोड़ने की वजह नेतृत्व और पार्टी की कार्यप्रणाली में कमियां बताई जा रही हैं। केन्द्र ही राज्यों और राज्यों ही नहीं जिला स्तर के भी कांग्रेस के नेता और कार्यकताओं का पार्टी से मोहभंग होता दिख रहा है। स्थिति तो यह हो गयी है कि पार्टी ने लोकसभा चुनाव-2024 के लिए दो दिन पहले जिसे अपना प्रत्याशी घोषित किया उसने दो दिन बाद ही भाजपा का दामन थाम लिया।

10 वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2014 से 12 पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत 50 से ज्यादा बड़े नेता कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं। इन सभी नेताओं के कांग्रेस छोड़ने की वजह नेतृत्व और पार्टी की कार्यप्रणाली में कमियां गिनायीं। जाहिर है बड़े और जनाधार वाले नेताओं का कांग्रेस से बाहर जाना पार्टी के लिए परेशानी का सबब है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबियों में शुमार होने वाले ज्योतिरादित्र्य सिंधिया और र्मिंलद देवड़ा जैसे नेता भी पार्टी को अलविदा कह भगवा खेमे में जा चुके हैं। इसी प्रकार लोकसभा चुनाव से ठीक पहले गीता कोड़ा, बाबा सिद्दीकी, राजेश मिश्रा, अंबरीश डेर, जगत बहादुर अन्नू, चांदमल जैन, बसवराज पाटील, नारण राठवा, विजेंदर सिंह, संजय निरूपम और गौरव वल्लभ भी कांग्रेस का ‘हाथ’ झटक चुके हैं। इसी प्रकार हिमंत बिस्व सरमा, चौधरी बीरेंदर सिंह, रंजीत देशमुख, जीके वासन, जयंती नटराजन, रीता बहुगुणा जोशी, एन बीरेर्न सिंह, शंकर सिंह वाघेला, टी. वडक्कन, केपी यादव, प्रियंका चतुर्वेदी, पीसी चाको, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव, ललितेश त्रिपाठी, पंकज मलिक, हरेन्द्र मलिक, इमरान मसूद, अदिर्ति सिंह, सुप्रिया एरन, आरपीएर सिंह, अश्विनी कुमार, रिपुन बोरा, हार्दिक पटेल, सुनील जाखड़, कपिल सिब्बल, कुलदीप बिश्नोई, जयवीर शेरगिल, अनिल एंटनी, सीआर केसवन का भी कांग्रेस से मोहभंग हो चुका है। वहीं, विभिन्न राज्यों में कांग्रेस की सरकारों के दौरान मुख्यमंत्री पद को सुशोभित कर चुके दर्जनभर मुख्यमंत्री भी कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं।

दरअसल, इसकी सबसे बड़ी वजह कांग्रेस पार्टी को 2014 के बाद से लगातार विभिन्न राज्यों में मिल रही हार रही है। पार्टी छोड़ने वाले नेताओं ने देखा कि पार्टी का ‘सक्सेस रेट’ बहुत कम हो गया है। ऐसे में अपना राजनैतिक करियर बनाये और बचाये रखने के लिए अधिकांश ने पाला बदल किया। केन्द्र में दस साल सरकार चलाने के बाद कांग्रेस 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव हार गयी। इसके अलावा पार्टी को विभिन्न राज्यों में भी विधानसभा चुनाव के दौरान हार का मुंह देखना पड़ा। मसलन, 2017 में हिमाचल विधानसभा चुनाव, 2013 व 2023 में मध्यप्रदेश, 2017 व 2022 में उत्तराखंड, 2017 व 2022 में उत्तर प्रदेश, 2013 व 2023 में राजस्थान, 2017 व 2022 में गुजरात, 2013 व 2023 में छत्तीसगढ़, 2015 व 2020 में बिहार, 2014 में झारखंड, 2014 व 2019 में सिक्किम, 2016 व 2021 में असम, 2019 में अरुणाचल प्रदेश, 2013, 2018 व 2023 में नगालैंड, 2022 में मणिपुर, 2018 में मिजोरम, 2013, 2018, 2023 में त्रिपुरा, 2023 में मेघालय, 2016 व 2021 में बंगाल, 2014 व 2019 में महाराष्ट्र, 2014 व 2019 में उड़ीसा, 2017 व 2022 में गोवा, 2018 में कर्नाटक, 2018 में तेलंगाना, 2014, 2019 में आंध्र प्रदेश, 2016 व 2021 में तमिलनाडु, 2016 व 2021 में केरल, 2022 में पंजाब तथा 2014 व 2019 में हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि 2014 के बाद छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक में उसे एक-एक बार सफलता भी मिली लेकिन वह ‘बड़े’ नाम वाले नेताओं को पार्टी के साथ बांधे रखने में नाकाफी रही।

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