दस्तक ब्यूरो, देहरादून
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भाजपा ने उत्तराखंड में एक बार फिर दिग्गजों पर दांव खेला है। भाजपा ने जीत की गारंटी पर ही टिकट तय किए। प्रदेश की टिहरी, अल्मोड़ा और नैनीताल यूएसनगर सीट पर सिटिंग सांसदों को ही एक बार फिर मौका दिया, जबकि हरिद्वार और पौड़ी संसदीय सीट पर नये चेहरों को मौका दिया गया है। अब प्रदेश में पांचों सीटों पर सभी प्रत्याशी नामांकन भी कर चुके हैं। सबसे पहले भाजपा के प्रत्याशियों पर नजर दौड़ाएं तो पौड़ी संसदीय सीट पर इस बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री के करीबी भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख और राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी को मौका दिया गया। वहीं हरिद्वार सीट से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को उतारा गया है। इसके अलावा अल्मोड़ा संसदीय सीट से अजय टम्टा, नैनीताल सीट पर अजय भट्ट और टिहरी संसदीय सीट से माला राज्यलक्ष्मी शाह पर ही दांव खेला गया है। वहीं कांग्रेस की बात करें तो चुनाव की घोषणा के काफी बाद वह अपने पांचों सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर सकी। नैनीताल, पौड़ी, टिहरी और हरिद्वार में कांग्रेस ने भी नये चेहरों पर दांव खेला है। हरिद्वार में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बेटे बीरेंद्र सिंह रावत तो नैनीताल सीट से प्रकाश जोशी को मैदान में उतारा है। वहीं टिहरी संसदीय सीट से जोत सिंह गुनसोला और पौड़ी सीट से गणेश गोदियाल को टिकट दिया है। हालांकि अल्मोड़ा सीट पर पुराने प्रत्याशी प्रदीप टम्टा पर ही एक बार फिर दांव खेला है। प्रदेश में अब तक सभी प्रत्याशियों ने नामांकन पत्र भी भर दिए हैं।
कुमाऊं की दोनों सीटों पर सियासी बिगुल बजने के साथ ही मंडल के सियासी पंडित दोनों ही प्रमुख पार्टियों के प्रत्याशियों की हार-जीत का गणित लगाने में जुट गए हैं। वर्तमान परिस्थितियों में देखा जाए तो प्रचार से लेकर कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारियां बांटने में भगवा खेमा आगे है। भितरघात से दोनों ही दलों के प्रत्याशियों को जूझना पड़ेगा, लेकिन इस मामले में ज्यादा सावधान कांग्रेस प्रत्याशियों को रहना होगा क्योंकि नैनीताल सीट पर जहां अप्रत्याशित रूप से युवा चेहरे पर दांव खेला गया है, उससे लगता नहीं है कि आसानी से टिकट के दावेदार इस बात को पचा पाएंगे। कांग्रेस के एक पुराने नेता और विकास पुरुष एनडी तिवारी के रिश्तेदार दीपक बल्यूटिया ने तो कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी शैलजा कुमारी को इस्तीफे के साथ लंबा-चौड़ा पत्र भेज दिया। अल्मोड़ा में भी कांग्रेस प्रत्याशी को पार्टी के दो विधायकों की नाराजगी भारी पड़ सकती है। सियासी जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के सामने भाजपा है, जहां मोदी फरमान के आगे सारे बागी बिल के भीतर छिप जाएंगे या पार्टी के उम्मीदवार के समर्थन में प्रचार करते नजर आएंगे। ऐसे हालात में देखना होगा कि कुमाऊं की दोनों सीटों पर भगवा फिर लहराएगा या कांग्रेस के प्रदीप और प्रकाश देश की सबसे पुरानी पार्टी के वैभव को लौटा कर यहां नई लौ जलाने में कामयाब होंगे या नहीं।
राममंदिर निर्माण के बाद भगवा लहर पर सवार अजय टम्टा को भाजपा के मजबूत संगठन और लोकसभा क्षेत्र में वर्तमान में पिछले चुनाव के मुकाबले 11 के बजाय इस बार 9 विधायकों के प्रभाव के साथ सीएम पुष्कर सिंह धामी का समर्थन मिल रहा है। नामांकन के दिन सीएम खुद अल्मोड़ा पहुंचे थे और जनसभा करके मतदाताओं के समक्ष डबल इंजन सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए भाजपा प्रत्याशी को जिताने और मोदी का हाथ मजबूत करने की अपील की थी। टिकट के दावेदारों से यहां भितरघात की आशंका है लेकिन इतनी नहीं है जिसे भाजपा प्रदेश कमान अपने स्तर पर मैनेज न कर सके। अजय टम्टा लगातार दो बार से सांसद हैं, इसके बावजूद मतदाताओं का रुख देखकर सत्ताविरोधी लहर का अहसास नहीं है। वैसे भी मतदाता अब पहले की तरह बताता नहीं है। लिहाजा अजय टम्टा को इस मामले में अतिरिक्त सतर्कता बरतनी होगी। पंडित गोविंद बल्लभ पंत से लेकर विकास पुरुष की कर्मस्थली रही लोकसभा सीट से इस बार भी अपने काम के सहारे अजय भट्ट लगातार तीसरी बार चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश में है। पार्टी ने पहले ही उन्हें प्रत्याशी घोषित करके इस सीट पर मतदाताओं के बीच माइलेज ले लिया है। यह संसदीय सीट 2014 से भाजपा के पास है तब भगत सिंह कोश्यारी ने हरीश रावत को शिकस्त दी थी, अगले चुनाव में भाजपा ने अजय भट्ट पर दांव लगाया और उन्होंने सबसे ज्यादा अंतर से जीत दर्ज कर हरीश रावत को ऐसे वनवास पर भेजा कि तब से वह हार से ऊबर नहीं पाए हैं।
भट्ट का प्लस प्वाइंट यह है कि साधारण से साधारण कार्यकर्ता से भी वह उसी आत्मीयता से मिलते है जिस तरह वह बड़े नेताओं से मुलाकात करते हैं। पिछले चुनाव के कई वादों को पूरा करने के दावे के बीच उनका जनाधार भी बढ़ा है। हरीश रावत की सियासी शिष्य माने जाने वाले कांग्रेस नेता प्रदीप टम्टा एक बार फिर से इस लोकसभा क्षेत्र में अपने परंपरागत वोटों के सहारे अपनी चुनावी नैया पार करने की जुगत में है। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत इस सीट से लगातर तीन बार सांसद रहे हैं और इसी लोकसभा सीट के निवासी हैं। लिहाजा उनका यहां प्रचार के लिए आना प्रदीप टम्टा के लिए फायदेंमद हो सकता है। अपने परांपरागत वोटों के सहारे कांग्रेस ने सभी कयासों को दरकिनार करते हुए युवा चेहरे पर दांव खेला है। प्रकाश जोशी संगठन के व्यक्ति माने जाते है और राहुल गांधी से उनकी करीबी भी किसी से छिपी नहीं है। अधिकतर समय दिल्ली या राज्य से बाहर होने की वजह से कार्यकर्ताओं से सीधे जुड़ाव के लिए उन्हें सामंजस्य बिठाना होगा।
गढ़वाल संसदीय सीट की बात करें तो राज्य की सबसे बड़ी और विषम भौगोलिक परिस्थिति वाली गढ़वाल संसदीय सीट का क्षेत्रफल 17,820.90 वर्ग किमी है। प्रदेश के पांच जिलों को समेटती इस सीट में जहां तीन पर्वतीय जिले पौड़ी, चमोली व रुद्रप्रयाग पूरी तरह समाहित हैं, वहीं टिहरी जिले के दो विधानसभा क्षेत्र देवप्रयाग व नरेंद्रनगर और नैनीताल जिले का रामनगर विधानसभा क्षेत्र शामिल है। सीट की विषम भौगोलिक परिस्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चुनावी दंगल में उतरने वाले प्रत्याशियों को जहां चीन सीमा से लगे नीती-माणा व केदारघाटी समेत उच्च हिमालयी क्षेत्र की खड़ी चढ़ाई नापनी पड़ती है, वहीं कोटद्वार भाबर के साथ ही रामनगर तक की दौड़ लगानी पड़ती है। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद अब तक हुए लोकसभा के चार चुनाव में इस सीट पर भाजपा का दबदबा रहा। यह सीट तीन बार भाजपा और एक बार कांग्रेस के पास रही। राज्य बनने के बाद वर्ष 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के मेजर जनरल (सेनि.) भुवनचंद्र खंडूड़ी ने इस सीट पर विजय प्राप्त की थी। वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर सतपाल महाराज ने इस सीट पर कब्जा जमाया। वर्ष 2014 में भाजपा के टिकट पर पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल (सेनि.) भुवनचंद्र खंडूड़ी ने जीत दर्ज की। वर्ष 2019 में भाजपा के तीरथ सिंह रावत इस सीट पर विजयी रहे।
तीरथ सिंह रावत को पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूड़ी का राजनीतिक शिष्य माना जाता रहा है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में गढ़वाल संसदीय सीट में मतदाताओं की कुल संख्या 13,55,776 थी। इसमें 6,46,688 महिला और 6,74,632 पुरुष मतदाता थे। वर्तमान में जनवरी 2024 तक प्राप्त मतदाता संख्या के अनंतिम आंकड़ों के अनुसार गढ़वाल संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या 13,58,703 है। वर्ष 2019 में संपूर्ण गढ़वाल संसदीय सीट में पौड़ी जिले में सर्वाधिक 42.41 प्रतिशत से अधिक मतदाता रहे। रुद्रप्रयाग जिले में 14.13 प्रतिशत, चमोली में 22.40 प्रतिशत, टिहरी जिले की दो विधानसभा क्षेत्रों में 12.64 प्रतिशत और रामनगर विधानसभा क्षेत्र में 8.39 प्रतिशत मतदाता हैं। संसदीय सीट के अंतर्गत कुल 14 विधानसभा क्षेत्रों में सबसे कम 79,061 मतदाता लैंसडौन में हैं। इस सीट पर करीब 84 प्रतिशत हिंदू, दस प्रतिशत मुस्लिम, चार प्रतिशत सिख और दो प्रतिशत इसाई मतदाता हैं। हिंदुओं के दो प्रमुख तीर्थधाम बदरीनाथ और केदारनाथ के साथ पंचबदरी व पंचकेदार के अलावा सिखों के प्रसिद्ध तीर्थ हेमकुंड साहिब समेत कई प्रमुख धार्मिक एवं पर्यटन स्थल इस क्षेत्र में हैं। गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंटल सेंटर का मुख्यालय भी इसी सीट के अंतर्गत है। गढ़वाल संसदीय सीट में सैन्य पृष्ठभूमि से जुड़े परिवारों की संख्या काफी अधिक है और यही मतदाता चुनाव में निर्णायक भूमिका का निर्वहन भी करते हैं। वहीं कांग्रेस ने पूर्व विधायक और बदरीकेदार मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष रहे गणेश गोदियाल को मैदान में उतारा है। वह श्रीनगर विधानसभा सीट से विधायक भी रह चुके हैं और पिछले विधानसभा चुनाव में काफी कम वोटों के अंतर से हारे थे। हालांकि कांग्रेस से बदरीनाथ विधानसभा सीट से विधायक राजेंद्र भंडारी के भाजपा में शामिल होने से भी कांग्रेस की चुनौतियां बढ़ गई हैं।
वहीं हरिद्वार लोकसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के उतरने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है। बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत पर भरोसा जताया है तो कांग्रेस ने पूर्व सीएम हरीश रावत के बेटे वीरेंद्र रावत को टिकट दिया है। इस सीट पर अब तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों हरीश रावत, रमेश पोखरियाल निशंक और त्रिवेंद्र सिंह रावत की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। वर्ष 2014 और 2019 के आम चुनावों में हरिद्वार से भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक जीते थे, जिनका टिकट इस बार काट दिया है। 2019 में निशंक को 69 प्रतिशत वोट मिले थे। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार अंबरीश कुमार को हराया था। 2014 में निशंक ने रेणुका रावत को हराया था। उस समय भी बीजेपी को 69 प्रतिशत वोट मिले थे। साल 2009 में यह सीट कांग्रेस के पास थी। हरीश रावत ने बीजेपी को हराया था। उन्हें 60.89 प्रतिशत वोट मिले थे। 2004 में यह सीट समाजवादी पार्टी जीती थी। सपा के राजेंद्र कुमार ने बसपा को हराया था। पूर्व सीएम हरीश रावत के अनुसार, वीरेंद्र रावत साल 1998 से ही कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहे हैं और 2009 से हरिद्वार में सक्रिय हैं। इस क्षेत्र के हर गांव में लोगों के साथ खड़े हैं। हरीश रावत ने पोस्ट में अपने बेटे के बारे में कहा कि वीरेंद्र 1996 में दयाल सिंह डिग्री कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष, दिल्ली एनएसयूआई के महासचिव और उत्तराखंड में युवा कांग्रेस के उपाध्यक्ष थे और अब उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष हैं।
हरिद्वार संसदीय सीट पर कांग्रेस और बीजेपी का कब्जा रहा है। पूर्व सीएम हरीश रावत यहां से सांसद रह चुके हैं और केन्द्र में मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री भी रहे। इस बार वह खुद न लड़कर बेटे को टिकट दिलवा दिए हैं। बेटा बेशक लड़ रहा है लेकिन साख हरीश रावत की दांव पर लगी है। वहीं, बीजेपी यहां से एक बार फिर जीतकर जीत की हैट्रिक लगाने की कोशिश में है। बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को मैदान में खड़ा कर एक मजबूत प्रत्याशी दिया है। यहां से पूर्व सीएम निशंक भी चुनाव प्रचार करेंगे क्योंकि वो मौजूदा समय में यहां के सांसद हैं। इस हिसाब से तीन पूर्व सीएम की साख दांव पर लगी है। टिहरी सीट की बात करें तो यहां पर कांग्रेस ने जोत सिंह गुनसोला पर दांव खेला तो वहीं भाजपा ने लगातार जीत रही माला राज्यलक्ष्मी शाह को मैदान में उतारा है। टिहरी संसदीय सीट पर कांग्रेस केवल एक बार ही जीती है। यह सीट महाराजा परिवार के पास ही रही है।