स्तम्भ

शेखचिल्ली वाले मंसूबे राहुल के !

के. विक्रम राव

स्तंभ: लोकसभा की 543 सीटों में 272 चाहिए बहुमत हेतु। कांग्रेस की 99 सीटें हैं, अर्थात 173 कम। उनके इंडी गठबंधन के पास 235 हैं, 37 कम। फिर भी कांग्रेस ने सरकार बनाने का दावा ठोकने का ऐलान कर दिया। उधर भाजपा अपने 240 सांसदों और उसके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के करीब 290 हैं। बहुमत से अधिक। सीधा गणित है कि राष्ट्रपति किसका दावा मानें ? पर राहुल हैं कि पिले पड़े हैं प्रधानमंत्री बनने के लिए। आगे बढ़ें। घटना 1999 वाली याद करें। उनकी अम्मा सोनिया गांधी ने भी सरकार बनाने के दावे के साथ प्रतिबद्ध राष्ट्रपति दलित के.आर. नारायण को लंबी समर्थकों की सूची भेजी थी। प्रधानमंत्री की शपथ की तैयारी हो गई थी। रोम से राहुल की नानी और अन्य कुनबा 10 जनपथ आ पहुंचे थे। तभी अखिलेश यादव के स्वर्गीय पिताश्री मुलायम सिंह यादव ने अपने दल का समर्थन देने से इंकार कर दिया। सोनिया का सत्ता वाला सपना चूर-चूर हो गया। फिर भी राहुल को वह हादसा याद नहीं रहा। क्या विद्रूप है कि आज उन्हीं लोहियावादी का बेटा सोनियापुत्र के साथ हैं।

एक तत्व पर और गौर करें। कांग्रेस के कभी गढ़ रहे क्षेत्र राजधानी दिल्ली, कश्मीर, आंध्र-प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, अरुणाचल, त्रिपुरा, सिक्किम आदि में कांग्रेस का नामलेवा कोई नहीं मिला। सूपड़ा साफ हो गया। जहां कांग्रेस का राज रहा गत वर्षो तक वहां क्या दशा थी ? मसलन यूपी के 80 में से मात्र छः मिले। हिमाचल में पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री के पुत्र को एक फिल्मी भाजपाई अभिनेत्री (कंगना रानावत) ने मंडी से पराजित कर दिया। राजस्थान में 10 साल से पेशेवर जादूगर अशोक गहलोत सीएम रहे। उनके 25 में से केवल 8 जीते। असम में 14 में केवल तीन कांग्रेसी पाये। भारत सरकार बनाने वाले राहुल की पार्टी एक चौथाई लोकसभाई क्षेत्र में ही सिकुड़ गई। ताड़ के पेड़ पर चढ़ने चले थे। खजूर पर अटक गए। पश्चिम बंगाल में 42 में से कांग्रेस सिर्फ एक ही जीत पाई। मगर यहां के बरहरामपुर लोकसभा क्षेत्र में लोकसभा में नेता कांग्रेस विपक्ष के बड़बोले अधीर रंजन चौधरी को ममता बनर्जी ने गच्चा दे दिया। सुदूर बड़ौदा से क्रिकेटर यूसुफ पठान को बंगाल आयात कर ममता ने अधीर बाबू के सामने खड़ा कर दिया। कांग्रेस नेता पराजित हो गए। जब कि इंडिया गठजोड़ के ही दोनों ही साथ हैं। केरल में ही इंडिया के खास अंग है मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भाकपा। दोनों राहुल गांधी से मिन्नतें करते रह गए। गठबंधन धर्म का पालन करें और भाकपा राष्ट्रीय सचिव डी. राजा की पत्नी डी. राजा के विरोध में प्रत्याशी न बनें। रायबरेली में ही रहें। राहुल ने गठबंधन के साथी भाकपा की महिला को हरा दिया। इंडिया के दोनों घटक टकरा गए। ऐसा गठबंधन ?

पार्टी मुखिया, दलित नेता 81-वर्षीय मापन्ना मल्लिकार्जुन खड़गे के पुत्र रत्न राधाकृष्ण दोड्डमणि खुद कांग्रेस-शासित कर्नाटक में सत्ताइस हजार वोटो से पराजित हो गए। सरकार बनाने को उतावले कांग्रेस प्रमुख अपने लकतेजिगर को संसद नहीं पहुंचा पाए। बड़बोले शशि थरूर (जो खड़गे के विरोध में पार्टी मुखिया का चुनाव लड़े थे) सागरतटीय तिरुअनंतपुरम से मात्र पंद्रह हजार वोटो से सिसकते हुए जीते। कांग्रेस के दबंग सचिव और सोनिया-राहुल के संग हर फोटो में नजर आने वाले के.सी. वेणुगोपाल ने इंडिया गठबंधन के घटक माकपा के एम.थम. आरिफ़ को केरल में शिकस्त दी। दो हमगठबंधन वाले हैं। बात हो उड़ीसा की। यहां डेढ़ दशक से बीजू पटनायक के पुत्र नवीन मुख्यमंत्री बने रहे। आज वहां भाजपा की राज्य सरकार बन गई।

हां, अयोध्या में भाजपा की हार बड़ी शोचनीय रही। मुहावरी भाषा में यह हादसा चिराग तले अंधेरा सरीखा हो गया। देश में रामलला के नाम पर वोट पड़े। पर जन्म स्थान अयोध्या में रामजी की कृपा से भाजपा वंचित रही। लल्लू सिंह ने नाम को सार्थक साबित कर दिया। लल्लू निकले। मगर भाजपा को संतोष मिलेगा कि बालाजी (तिरुपति) और जगन्नाथ (पुरी) की उस पर अनुकम्पा रही। ओम नमो नारायण के नाम पर दोनों राज्यों से कांग्रेस बुरी तरह हार गई। भाजपा ने भुवनेश्वर में भी सरकार बना दी। भगवान विष्णु ने शायद कृपा आधी ही दिखाई थी। शायद अर्चना में तनिक कमी रह गई हो। अब उल्लेख हो परिवर्तनशील अर्थात श्रीमान पलटू कुमार का। राहुल की बचकानी सोच है कि केवल बारह लोकसभाई सांसद वाले नीतीश मोदी के रथ का चक्का जाम कर सकते हैं। तुर्रा यह कि केवल दो लोकसभाई (बेटी सुप्रिया को मिलाकर) पार्टी के पुराने दलबदलू शरदचंद्र गोविंदराव पवार ने नीतीश और नायडू से संपर्क साधा था। कांग्रेस के जाने-माने पलटू पवार ने इंदिरा गांधी की हार के बाद समय कांग्रेस पार्टी को धोखा देकर महाराष्ट्र में जनता पार्टी की मदद से मुख्यमंत्री बने थे। चल नहीं पाए। पुरानी आदत छूट्ती नहीं है। मगर वक्त बदलता है।

यदि मान भी लें कि नायडू और नीतीश प्रधानमंत्री पद की लालच में राहुल के बहलाने-फुसलाने में आ भी जायें, तो सभी को याद रहे कैसे राहुल के पिता ने बलिया के ठाकुर चंद्रशेखर सिंह को प्रधानमंत्री बनवाकर चंद सप्ताह में बेदखल कर दिया था। दादी इंदिरा गांधी ने चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनवा कर, तख्त पर चढ़ा दिया। पानी भी नहीं पी पाये बेचारे चौधरी साहब। राहुल की हरकत बाप-दादी की परंपरा से जुदा नहीं है। पर अब पात्र सावधान हो गए हैं। भूल बार बार नहीं होती।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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