प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रूस दौरा: भारत-रूस संबंधों की नई दिशा, पुराने दोस्त से मिलकर क्या कहेंगे मोदी
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8 जुलाई से दो दिन के रूस दौरे पर हैं। यह दौरा वार्षिक द्विपक्षीय शिखर बैठक का हिस्सा है, जो भारत और रूस के बीच बारी-बारी से आयोजित होती है। 2020 में कोविड-19 और 2022-2023 में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यह बैठक आयोजित नहीं हो सकी थी। मौजूदा भू-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए यह बैठक विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
भारत-रूस संबंधों का महत्व
पश्चिमी दुनिया के रूस के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण के बीच, भारत का यह दौरा यह दिखाता है कि भारत अपने रूस संबंधों को कितना महत्व देता है। हाल ही में 3 और 4 जुलाई को अस्ताना में हुई SCO बैठक में पीएम मोदी की अनुपस्थिति का संदेश साफ था कि भारत अपने हितों की प्राथमिकता को उच्च रखता है। भारत मध्य एशिया और रूस के साथ मजबूत द्विपक्षीय संबंध चाहता है, जिसमें चीन और पाकिस्तान की सहभागिता नहीं चाहिए।
नीतियों में समानता
रूस ने प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा का स्वागत किया है। दोनों देशों की विदेश नीति में कई स्तरों पर समानता है। दोनों बहुध्रुवीयता को प्राथमिकता देते हैं और पश्चिमी अधिपत्य का विरोध करते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि रूस के साथ सहयोग भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखने में सहायक है और ग्लोबल साउथ के हितों को आगे बढ़ाने में मदद करता है।
रूस विरोध से दूरी
भारत यूक्रेन युद्ध का विरोध करता है, लेकिन उसने रूस की निंदा करने से परहेज किया है। संयुक्त राष्ट्र में आने वाले रूस विरोधी प्रस्तावों से भी दूरी बनाई है। भारत ने हाल ही में स्विट्जरलैंड में हुए ‘शांति सम्मेलन’ में शामिल होने से भी इंकार किया क्योंकि इसमें रूस शामिल नहीं था।
भारत-रूस की गहरी दोस्ती
भारत और रूस ने हमेशा एक-दूसरे का समर्थन किया है। रूस पिछले 50 वर्षों से भारत के लिए रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा है। वर्तमान में भी भारत की रक्षा जरूरतों का लगभग 50% हिस्सा रूस से ही आता है।
गलतफहमी दूर करने का प्रयास
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद रूस के महत्व में वृद्धि हुई है। अगर चीन और पाकिस्तान रूस के करीब आते हैं, तो यह भारत के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इस यात्रा का उद्देश्य इस गलतफहमी को दूर करना है कि दोनों देश उन देशों के करीब जा रहे हैं जो उनके हित में नहीं हैं।
यात्रा का उद्देश्य
इस यात्रा का आधिकारिक एजेंडा घोषित नहीं किया गया है, लेकिन आर्थिक मुद्दे प्राथमिक होंगे। स्थानीय मुद्रा में पेमेंट ट्रांसफर, टूरिस्ट एक्सचेंज, और छात्रों के खर्चों में रुपये और रूबल के इस्तेमाल की संभावनाएं तलाशी जाएंगी। Chennai-Vladivostok समुद्री मार्ग, खेती, फार्मास्यूटिकल्स और सेवाओं पर समझौतों का आदान-प्रदान हो सकता है।
रक्षा आपूर्ति में देरी का मुद्दा
प्रधानमंत्री मोदी रक्षा आपूर्ति में देरी का मुद्दा उठाएंगे, विशेष रूप से एस-400 Triumf’ एयर डिफेंस सिस्टम की सप्लाई में देरी का। ऐसी अटकलें हैं कि भारत की दिलचस्पी रूस से SU-70 स्टील्थ बॉम्बर खरीदने में है। प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा वैश्विक नजरिए से महत्वपूर्ण है और इसका प्रभाव भारत-रूस संबंधों पर दूरगामी हो सकता है। भारत का मुख्य लक्ष्य अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा और उन्हें बढ़ावा देना होना चाहिए।