आईपीसी-सीआरपीसी अब इतिहास
-जितेन्द्र शुक्ला
देश की आजादी के समय से चले आ रहे कानून यानि ब्रितानिया हुकूमत द्वारा लाये गए कानून अब इतिहास का हिस्सा हो गए हैं। देश में एक जुलाई से आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह तीन नये कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनिमय लागू हो गए हैं। तीन नये कानूनों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए एफआइआर से लेकर फैसले तक को समय सीमा में बांधा गया है। आपराधिक ट्रायल को गति देने के लिए नये कानून में 35 जगह टाइम लाइन जोड़ी गई है। शिकायत मिलने पर एफआइआर दर्ज करने, जांच पूरी करने, अदालत के संज्ञान लेने, दस्तावेज दाखिल करने और ट्रायल पूरा होने के बाद फैसला सुनाने तक की समय सीमा तय है। साथ ही आधुनिक तकनीक का भरपूर इस्तेमाल और इलेक्ट्रानिक साक्ष्यों को कानून का हिस्सा बनाने से मुकदमों के जल्दी निपटारे का रास्ता आसान हुआ है। शिकायत, सम्मन और गवाही की प्रक्रिया में इलेक्ट्रानिक माध्यमों के इस्तेमाल से न्याय की रफ्तार तेज होगी। अगर कानून में तय समय सीमा को ठीक उसी मंशा से लागू किया गया, जैसा कि कानून लाने का उद्देश्य है तो अब अदालतों में मामले बहुत अधिक दिनों तक लंबित नहीं रहेंगे। जहां इन कानूनों से अदालतों का बोझ कम होगा, वहीं वादी को अब तारीख पर तारीख मिलने से भी मुक्ति मिलेगी।
इन तीनों नए कानूनों को पिछले साल दिसंबर में संसद में पारित किया गया था। अंग्रेजों के जमाने से चल रहे तीन मुख्य आपराधिक कानूनों की जगह अब नए कानून देशभर में प्रभावी हो गए। बढ़ते तकनीकी के दखल को देखते हुए इन कानूनों में भी तकनीकी के अधिकतम इस्तेमाल पर जोर दिया गया है। ज्यादातर कानूनी प्रक्रियाओं को डिजिटलाइज करने का प्रावधान इन कानूनों में किया गया है। यह सर्वविदित है कि आपराधिक मुकदमे की शुरुआत एफआईआर से होती है। नये कानून में तय समय सीमा में एफआईआर दर्ज करना और उसे अदालत तक पहुंचाना सुनिश्चित किया गया है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) में व्यवस्था है कि शिकायत मिलने पर तीन दिन के अंदर एफआइआर दर्ज करनी होगी। तीन से सात साल की सजा के केस में 14 दिन में प्रारंभिक जांच पूरी करके एफआईआर दर्ज की जाएगी। 24 घंटे में तलाशी रिपोर्ट के बाद उसे न्यायालय के सामने रख दिया जाएगा। बानगी के तौर पर यदि दुष्कर्म के मामले लें तो ऐसे मामले में सात दिन के भीतर पीड़िता की चिकित्सा रिपोर्ट पुलिस थाने और कोर्ट भेजी जाएगी। अभी तक लागू सीआरपीसी में इसकी कोई समय सीमा तय नहीं थी। नया कानून आने के बाद समय में पहली कटौती यही होगी। नये कानून में आरोपपत्र की भी टाइम लाइन तय है। आरोपपत्र दाखिल करने के लिए पहले की तरह 60 और 90 दिन का समय तो है लेकिन 90 दिन के बाद जांच जारी रखने के लिए कोर्ट से इजाजत लेनी होगी और जांच को 180 दिन से ज्यादा लंबित नहीं रखा जा सकता। 180 दिन में आरोपपत्र दाखिल करना होगा। ऐसे में जांच चालू रहने के नाम पर आरोपपत्र को अनिश्चितकाल के लिए नहीं लटकाया जा सकता।
नयी व्यवस्था के तहत जहां पुलिस के लिए टाइमलाइन तय की गयी तो वहीं अदालत के लिए भी समय सीमा तय की गई है। मजिस्ट्रेट 14 दिन के भीतर केस का संज्ञान लेंगे। केस ज्यादा से ज्यादा 120 दिनों में ट्रायल पर आ जाए इसके लिए कई काम किये गए हैं। प्ली बार्र्गेंनग का भी समय तय है। प्ली बार्र्गेंनग पर नया कानून कहता है कि अगर आरोप तय होने के 30 दिन के भीतर आरोपी गुनाह स्वीकार कर लेगा तो सजा कम होगी। अभी सीआरपीसी में ‘प्ली बार्र्गेंनग’ के लिए कोई समय सीमा तय नहीं थी। नये कानून में केस में दस्तावेजों की प्रक्रिया भी 30 दिन में पूरी करने की बात है। फैसला देने की भी समय सीमा तय है। ट्रायल पूरा होने के बाद अदालत को 30 दिन में फैसला सुनाना होगा, जबकि लिखित कारण दर्ज करने पर फैसले की अवधि 45 दिन तक हो सकती है लेकिन इससे ज्यादा नहीं। नये कानून में दया याचिका के लिए भी समय सीमा तय है। सुप्रीम कोर्ट से अपील खारिज होने के 30 दिन के भीतर दया याचिका दाखिल करनी होगी। नयी व्यवस्था के तहत इन कानूनों में अत्याधुनिकतम तकनीकों को शामिल किया गया है। दस्तावेजों की परिभाषा का विस्तार कर इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉड्र्स, ई-मेल, सर्वर लॉग्स, कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन, लैपटॉप्स, एसएमएस, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य, डिवाइस पर उपलब्ध मेल और मैसेजेस को कानूनी वैधता दी गई है।
सरकार का कहना है कि इससे अदालतों में लगने वाले कागजों के अंबार से मुक्ति मिलेगी। एफआईआर से केस डायरी, केस डायरी से चार्जशीट और चार्जशीट से जजमेंट तक की सारी प्रक्रिया को डिजिटलाइज करने का प्रावधान इस कानून में किया गया है। अभी सिर्फ आरोपी की पेशी वीडियो कॉन्फ्र्रेंंसग से हो सकती है, लेकिन अब पूरा ट्रायल, क्रॉस क्वेश्र्चंनग सहित, वीडियो कॉन्फ्र्रेंंसग से होगा। शिकायतकर्ता और गवाहों का परीक्षण, जांच-पड़ताल और मुकदमे में साक्ष्यों की रिकॉर्डिंग और उच्च न्यायालय के मुकदमे और पूरी अपीलीय कार्यवाही भी अब डिजिटली संभव होगी। केंद्र सरकार के अनुसार, नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी और इस विषय के देशभर के विद्वानों और तकनीकी एक्सपट्र्स के साथ चर्चा कर इसे बनाया गया है। सर्च और जब्ती के वक्त वीडियोग्राफी को आवश्यक कर दिया गया है जो केस का हिस्सा होगी और इससे निर्दाेष नागरिकों को फंसाया नहीं जा सकेगा। पुलिस द्वारा ऐसी रिकॉर्डिंग के बिना कोई भी चार्जशीट वैध नहीं होगी। वहीं, यौर्न ंहसा के मामले में पीड़ित का बयान आवश्यक कर दिया गया है और यौन उत्पीड़न के मामले में बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग भी अब आवश्यक कर दी गई है। पुलिस को 90 दिनों में शिकायत का स्टेटस और उसके बाद हर 15 दिनों में फरियादी को स्टेटस देना आवश्यक होगा। पीड़ित को सुने बिना कोई भी सरकार 7 वर्ष या उससे अधिक के कारावास का केस वापस नहीं ले सकेगी, इससे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा होगी।
समय पर न्याय
- समय-सीमा निर्धारित : 3 साल में मिल जायेगा न्याय
- तारीख पर तारीख से मिलेगी मुक्ति
- 35 सेक्शनों में टाइमलाइन जोड़ी गयी
- ल्ल इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से शिकायत देने पर 2 दिन में एफआईआर दर्ज
- ल्ल यौन उत्पीड़न में जांच रिपोर्ट 7 दिन के भीतर भेजनी होगी।
- ल्ल नए आपराधिक कानून ‘दंड नहीं, न्याय केन्द्रित’
- ल्ल सामुदायिक सजा : छोटे अपराधों में
- ल्ल भारतीय न्याय दर्शन के अनुरूप
- ल्ल 5000 रुपए से कम मूल्य की चोरी पर कम्युनिटी सर्विसेज का प्रावधान
- ल्ल 4 अपराधों में कम्युनिटी सर्विसेज को समाहित किया गया
महिलाओं और बच्चों के अपराध
- प्राथमिकता : महिलाओं व बच्चों के खिलाफ अपराध
- (पहने खजाने की लूट थी)
- बीएनएस में महिलाओं व बच्चों के प्रति अपराध पर नया अध्याय
- महिलाओं व बच्चों के अपराध से संबंधित 35 धाराएं हैं जिनमें लगभग 13
- नए प्रावधान हैं और बाकी में कुछ संशोधन
- गैंगरेप : 20 साल की सजा / आजीवन कारावास
- नाबालिग के साथ सामूहिक बलात्कार : मौत की सजा / आजीवन कारावास
- झूठा वादा / पहचान छिपाकर यौन संबंध बनाना अब अपराध है
- पीड़िता का बयान उसके आवास पर महिला अधिकारी के सामने ही रिकॉर्ड
- पीड़िता के अभिभावक की उपस्थिति में होगा बयान दर्ज
मॉब लिंचिंग
- पहली बार मॉब लिंचिंग को परिभाषित किया गया
- नस्ल/जाति/समुदाय, लिंग, जन्मस्थान, भाषा आदि से प्रेरित हत्या / गंभीर
- चोट मॉब लिंचिंग
- ल्ल 7 वर्ष की कैद का प्रावधान
- ल्ल स्थायी विकलांगता : 10 वर्ष की सजा / आजीवन कारावास
विक्टिम सेंट्रिक कानून
- विक्टिम सेंट्रिक कानूनों के 3 प्रमुख फीचर्स
- 1. विक्टिक को अपनी बात रखने का मौका
- 2. इन्फार्मेशन का अधिकार और
- 3. नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति का अधिकार
- जीरो एफआईआर दर्ज करने को किया संस्थागत
- अब एफआईआर कहीं भी दर्ज कर सकते हैं
- विक्टिम को एफआईआर की एक प्रति नि:शुल्क प्राप्त करने का अधिकार
- 90 दिनों के भीतर जांच में प्रगति की जानकारी