दस्तक-विशेष

प्राचीन ज्ञान का दीप नालंदा विश्वविद्यालय

पटना से दिलीप कुमार

आग की लपटें ज्ञान को नहीं मिटा सकतीं, भले ही पुस्तकों को जला दें। बिहार के राजगीर में नवनिर्मित नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंंद्र मोदी द्वारा कही गई यह बात इस बात को साफ करती है कि विदेशी आक्रांताओं ने किस तरह भारतीय ज्ञान को मिटाने की कोशिश की। संस्कृति का दमन किया, अत्याचार किए। इसके बाद भी भारत अपने वैभव व गौरव के साथ उठ खड़ा हुआ। यह यहां की सांस्कृतिक विरासत के चलते ही संभव हो सका। 19 जून को प्रधानमंत्री ने नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय का उद्घटन किया तो इसके ज्ञान का प्रकाश एक बार फिर पूरी दुनिया में फैलने के लिए तैयार है। वर्ष 1199 में विदेशी आक्रांता बख्तियार खिलजी ने प्राचीन विश्वविद्यालय को जला दिया था। उस विध्वंस के 815 वर्ष बाद उसी प्राचीन विश्वविद्यालय की तर्ज पर इस नए परिसर को बनाया गया है। यहां पहुंचने पर आपको अहसास होगा कि उस दौर में यह कितना वैभवशाली रहा होगा। इसका विशाल परिसर आपको प्राचीन काल के उस दौर में ले जाएगा। आप बख्तियार खिलजी के ध्वंस किए खंडहर व जले पुस्तकालय के अवशेष देखेंगे तो पता चलेगा कि ज्ञान के प्रति बर्बरता किस कदर थी।

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में अपने तीसरे कार्यकाल के शपथ ग्रहण के10 दिनों के अंदर यहां आने को सौभाग्य बताया। उन्होंने इसे देश की विकास यात्रा के लिए शुभ संकेत बताया। हो भी क्यों न, क्योंकि यह विश्वविद्यालय भारतीय विदेश नीति का एक बड़ा माध्यम है। इसके विकास में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के भाग लेने वाले सदस्य देश शामिल हैं। इससे सिर्फ ज्ञान का प्रकाश ही नहीं फैलेगा, बल्कि विदेशी कूटनीति भी साधी जाएगी। पीएम का इशारा भी कुछ उसी ओर था। उन्होंने नालंदा को केवल नाम नहीं पहचान, सम्मान, मूल्य, मंत्र और गौरव गाथा बताया। इसके माध्यम से उन्होंने भारत के प्राचीन गौरव गाथा का बयान किया। उन्होंने कहा कि नालंदा के ध्वंस ने देश को अंधकार से भर दिया था। इसकी पुनस्र्थापना से भारत के स्वर्णिम युग की शुरुआत हो रही है। 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य की प्राप्ति में उन्होंने भारतीय शिक्षा व अध्यात्म को भी महत्वपूर्ण बताया। इसका वैश्विक केन्द्र बनाने का लक्ष्य उन्होंने बताया। अपने संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री ने भारत के योग व आयुर्वेद की भी चर्चा की। उन्होंने नालंदा के गौरवशाली इतिहास का वर्णन करते हुए कहा कि आज दुनियाभर के छात्र और ब्राइट माइंड्स पश्चिमी देशों में जाकर पढ़ना चाहते हैं। कभी नालंदा और विक्रमशिला जैसे शिक्षण संस्थानों में दूसरे देश के छात्र पढ़ने आते थे। उन्होंने यह भी बताया कि जब भारत शिक्षा में आगे था, तब उसका आर्थिक सामथ्र्य नई ऊंचाई पर था। अब ज्ञान के इसी बल पर वे देश को आर्थिक ऊंचाई पर भी ले जाना चाहते थे। प्रधानमंत्री ने नालंदा विश्वविद्यालय एक बार फिर सांस्कृतिक विनिमय का प्रमुख केन्द्र बनाने की भी बात कही।

प्राचीन काल की तरह गांव-गांव जाकर शिक्षक प्रवचन दें, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पूरी योजना इस विश्वविद्यालय को उसी तरह चलाने की है, जैसे यह प्राचीन काल में चलता था। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि वे प्रधानमंत्री से आग्रह करेंगे कि जिस तरह प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय से आसपास के गांव जुड़े थे, फिर उसी परंपरा को कायम किया जाए। यहां के शिक्षक आसपास के गांवों में जाकर प्रवचन करें। वे ज्ञान की परंपरा से लोगों को जोड़ें। इसके लिए उन्होंने आसपास के गांवों तक आवागमन के लिए अच्छी सड़क और साधन की व्यवस्था की भी बात कही। इसके लिए उन्होंने राज्य सरकार की ओर से पूरा सहयोग देने की बात कही। नया कैंपस प्राचीन अवशेषों के समीप (लगभग 20 किलोमीटर दूर) है।

इस तरह फिर खड़ा हो उठा नालंदा विश्वविद्यालय

नालंदा विश्वविद्यालय के दोबारा खड़ा हो उठने की कहानी पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम से जुड़ी है। इसकी पूरी परिकल्पना उनकी है। मार्च 2006 में बिहार विधानसभा के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने प्राचीन नालंदा के पुनरुद्धार का प्रस्ताव रखा था। संसद में नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 पारित किया गया। इसके बाद इस पर काम शुरू हुआ। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विश्वविद्यालय परिसर के लिए 455 एकड़ जमीन आवंटित की। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की पुनस्र्थापना में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के भाग लेने वाले सदस्य देशों ने सहयोग किया है। इसमें सिंगापुर, थाईलैंड, आस्ट्रेलिया, श्रीलंका, चीन,भूटान, कंबोडिया, वियतनाम सहित अन्य देश शामिल हैं। सितंबर 2014 में छात्रों के पहले बैच का नामांकन हुआ। इसका शिलान्यास 27 अगस्त 2016 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने किया था। अभी यहां 17 देशों के 400 विद्यार्थी पढ़ रहे हैं।

अदभुत व अवर्णनीय था नालंदा विश्वविद्यालय

बिहार का नालंंदा विश्वविद्यालय, जिसकी ख्याति कभी पूरी दुनिया में थी। विभिन्न देशों के लोग यहां शिक्षा ग्रहण करने आते थे। ज्ञान के इस मंदिर को मुस्लिम आक्रांता तुर्क-अफगान सैन्य जनरल बख्तियार खिलजी ने मिटा दिया था। उसने 1199 में नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी थी। कहा जाता है कि वहां इतनी पुस्तकेंं थीं कि आग लगी भी तो तीन माह तक जलती रहीं। उसने हजारों धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु मार डाले। नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक सम्राट कुमार गुप्त ने की थी। 427 ईस्वी में स्थापित इस विश्वविद्यालय को दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय माना जाता है। इसे महान सम्राट हर्षवद्र्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। नालंदा विश्वविद्यालय अपने समय में स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था। इसमें 300 कमरे, सात बड़े-बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए नौमंजिला विशाल पुस्तकालय था। यहां भारत के अलावा कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया समेत कई दूसरे देशों के छात्र पढ़ने आते थे। इस विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों का चयन मेरिट के आधार पर होता था। बिना शुल्क शिक्षा दी जाती थी।

रहना और खाना भी निशुल्क था। एक समय में 10 हजार से ज्यादा विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे। बताया जाता है कि 2700 से ज्यादा शिक्षक पढ़ाते थे। कहा जाता है कि गौतम बुद्ध ने कई बार यहां की यात्रा की थी। यहां चिकित्सा, तर्कशास्त्र, गणित, बौद्ध सिद्धांत, साहित्य, ज्योतिष, मनोविज्ञान, कानून, विज्ञान, इतिहास, अर्थशास्त्र और आयुर्वेद समेत कई विषयों को पढ़ाया जाता था। इस विश्वविद्यालय में कई महान विद्वानों ने पढ़ाई की थी, जिसमें हर्षवर्धन, धर्मपाल, वसुबन्धु, धर्मकीर्ति, आर्यवेद, नागार्जुन सहित अन्य प्रमुख लोगों के नाम शामिल हैं। नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास चीनी यात्री व्हेनसांग और इत्सिंग ने खोजा था। दोनों 7वीं शताब्दी में भारत आए थे। दोनों ने इसे विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बताया और इसके बारे में विस्तार से लिखा। खुदाई के दौरान यहां 1.5 लाख वर्ग फीट में नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष मिले। माना जाता है कि यह सिर्फ 10 प्रतिशत हिस्सा ही है। मान्यता है कि खिलजी से पहले पांंचवीं शताब्दी में मिहिरकुल के नेतृत्व में हूणों ने इस पर हमला किया था। इसके बाद आठवीं शताब्दी में बंगाल के गौड़ राजा ने आक्रमण किया था।

माना जाता है कि छठी शताब्दी में आर्यभट्ट ने इस विश्वविद्यालय का नेतृत्व किया था। उन्हें भारतीय गणित का जनक भी कहा जाता है। विश्वविद्यालय नियमित रूप से अपने सर्वश्रेष्ठ विद्वानों और शिक्षकों चीन, कोरिया, जापान, इंडोनेशिया और श्रीलंका जैसे देशों में बौद्ध शिक्षाओं और दर्शन के प्रचार के लिए भेजता था। माना जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में 90 लाख से ज्यादा हस्तलिखित, ताड़-पत्र पांडुलिपियां थीं। ये बौद्ध ज्ञान का दुनिया का सबसे समृद्ध भंडार था।

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