दस्तक-विशेष

इंडो पैसिफिक रणनीति को धार देती भारत सरकार

विवेक ओझा

हिन्द महासागर क्षेत्र में ब्लू वॉटर नेवी फोर्स के रूप में दम खम रखने की इच्छा रखने वाले और इसके लिए मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस को संस्थागत रूप देने का प्रयास करने वाले देश भारत के प्रधानमंत्री पुन: सत्ता ग्रहण कर चुके हैं। उन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में भारत के पड़ोसी देश खासकर हिन्द महासागर के महत्वपूर्ण देशों मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश, मारीशस को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया और इसके जरिए सागर विजन से जुड़ी कूटनीति को फिर से ऊर्जा देने का प्रयास शुरू किया है। इसके साथ ही एक बार फिर भारत की हिन्द महासागर में द्वीपीय कूटनीति और विस्तारित पड़ोसी (एक्सटेंडेड नेबरहुड) की नीति के औचित्य को यहां देखा जा सकता है। भारत मारीशस को अपना विस्तारित पड़ोसी घोषित कर चुका है। साथ ही भारत व्यापक अर्थों में हिन्द महासागर क्षेत्र को भी अपने एक्सटेंडेड नेबरहुड के रूप में देखता है। इसके अलावा नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल प्रचंड को भी भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया गया। दरअसल, हाल के समय में जिस तरह से नेपाल के साथ काला पानी, लिपुलेख विवाद उभरता रहा है और फिर नेपाल ने अपनी मुद्रा पर इन क्षेत्रों को दर्शाया है, उसके बाद से यह माना जा रहा था कि नेपाल के साथ संबंधों को और सामान्य करने के लिए भारत सरकार कुछ न कुछ सकारात्मक कदम उठाएगी और इसके लिए नेपाल को आमंत्रित किया गया।

उल्लेखनीय है कि हाल के समय में नेपाल और भारत के बीच पहली बार मनी लांड्रिंग से निपटने को लेकर बैठक हुई है जिससे इस बात का संकेत मिलता है कि भारत नेपाल के बीच सहयोग के नए क्षेत्रों का विस्तार हो रहा है। लेकिन इसके साथ ही भारत सरकार यह भी जानती है कि अपनी संबंधों में चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। इसका प्रमाण भी हाल के समय में मिला है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने पहुंचे नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने अपने दिल्ली प्रवास के दौरान विवादित मुद्दों को फिर से उठाया है। नेपाल के विवादित नक्शे वाले 100 रुपये के नोट के बाद अब प्रचंड ने पीएम मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर से कालापानी सीमा विवाद को सुलझाने और सार्क को फिर से आगे बढ़ाने के लिए कहा है। पाकिस्तान की आतंकी चाल को देखते हुए भारत ने सार्क को किनारे कर दिया है जो नेपाल को रास नहीं आ रहा है। नेपाल में ही सार्क का मुख्यालय है और पाकिस्तान लगातार दबाव डाल रहा है कि इस दक्षिण एशियाई संगठन को फिर से आगे बढ़ाया जाए।

अब भारतीय कूटनीति पर निर्भर करता है कि भारत इस मुद्दे से कैसे निपटता है। वहीं मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू को आमंत्रित कर भारत ने मालदीव को भी एक नया अवसर दिया है कि वो भारत से अपने तनावपूर्ण संबंधों को ठीक कर सके। वहीं दूसरी तरफ भारत अपने नए नेतृत्व के जरिए हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा, स्थिरता को बढ़ावा देने की मंशा रखता है। भारत चाहता है कि ऐसे देश उसे विशुद्ध रूप से हिंद महासागर क्षेत्र में नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर के रूप में देखें और ऐसा हो भी रहा है। भारत ने कोविड महामारी के दौरान हिंद महासागर के देशों के मन में उस विश्वास का बीजारोपण करने में प्रभावी बढ़त हासिल कर ली है जिसे चीन जैसे देश नैतिक रूप से हासिल कर पाने में कभी सक्षम नहीं होंगे और यही भारत की उपलब्धि भी है।

भारत के विदेश मंत्री की मालदीव और मॉरीशस यात्रा के दौरान भारत ने दोनों देशों के उन आवश्यकताओं को पूरा करने की कोशिश पर ध्यान दिया है जो इन दोनों को कुछ जरूरी आर्थिक सामरिक, प्रतिरक्षा मामलों में सशक्त और समर्थ बनाए। भारत और मॉरीशस के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग और सहभागिता समझौता किया गया जो इस बात का प्रतीक है कि भारत हिन्द महासागर के इस देश के साथ अपने द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों को नई ऊंचाई देने की इच्छा रखता है। ऐसे समझौते ही आगे कभी मुक्त व्यापार समझौते में तब्दील हो जाते हैं। भारत ने मॉरीशस के साथ 100 मिलियन डॉलर का एक डिफेंस लाइन ऑफ क्रेडिट समझौता भी संपन्न किया था। इस समझौते के तहत दोनों देश एक दूसरे को सर्जिकल उपकरणों, मेडिसिन और टेक्सटाइल उत्पादों आदि पर वरीयतामूलक पहुंच अपने अपने बाजारों तक देंगे। इसके तहत मॉरीशस भारतीय बाजार तक 40 हजार टन चीनी के निर्यात के लिए वरीयता मूलक पहुंच की सुविधा प्राप्त करेगा। इससे मॉरीशस को भारत से प्रतिरक्षा परिसंपत्तियों और उपकरणों की प्राप्ति करने में मदद मिलेगी। हिंद प्रशांत क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण समुद्री इकाई के रूप में उभर रहे मॉरीशस को ऐसी सुविधा प्राप्त करना औचित्यपूर्ण भी है। मॉरीशस की सुरक्षा भारत की सुरक्षा और मॉरीशस की संपन्नता भारत की संपन्नता है। इस दृष्टिकोण पर काम करते हुए यह तय किया गया है कि मॉरीशस भारत से एक डोर्नियर एयरक्राफ्ट प्राप्त करेगा और साथ ही एक एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर ध्रुव पट्टे पर प्राप्त करेगा जिससे उसकी सामुद्रिक सुरक्षा क्षमता में वृद्धि हो सकेगी।

हिंद महासागर में आत्म निर्धारण के अधिकार पर बल
भारत और मॉरीशस ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चागोस द्वीप विवाद पर भी चर्चा किया। इस विवाद को संयुक्त राष्ट्र एक द्विपीय संप्रभुता और सतत विकास के मुद्दे के रूप में देखता है। वर्ष 2019 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में चागोस द्वीप पर ब्रिटेन की बजाय मॉरीशस के स्वामित्व को मान्यता देने वाले प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था। भारत उन 116 देशों में शामिल था जिन्होंने यह मांग की थी कि ब्रिटेन मॉरीशस के इस द्वीप पर अपना उपनिवेशीय प्रशासन खत्म करे। चूंकि भारत अपनी विदेश नीति के तहत तृतीय विश्व के देशों सहित हिंद महासागर के देशों के आत्मनिर्धारण के अधिकार को मान्यता देता है , अत: हाल के समय में उसने अपनी आइलैंड डिप्लोमेसी के तहत हिंद महासागर के द्विपीय देशों की सुरक्षा, संप्रभुता, विकास के मुद्दे को सर्वाधिक प्राथमिकता देते हुए काम किया है। भारत ने साफ किया है कि चागोस द्वीप के मामले पर भारत मॉरीशस को दृढ सैद्धांतिक समर्थन देना जारी रखेगा। मॉरीशस का कहना है कि चागोस द्वीप 18 वीं शताब्दी से ही उसका भाग रहा है और यह तब तक रहा जब तक कि ब्रिटेन ने अपने इस उपनिवेश से 1965 में चागोस को अपने नियंत्रण में नहीं ले लिया। मॉरीशस के ब्रिटेन से आजाद होने के तीन वर्ष पूर्व ही ब्रिटेन ने मॉरीशस के प्रादेशिक अखंडता से खिलवाड़ करते हुए चागोस द्वीप के सामरिक स्थल डियागो ग्रेसिया को अमेरिका को अपना सैन्य अड्डा खोलने के लिए पट्टे पर दे दिया था। यही नहीं, ब्रिटेन ने सेशेल्स से अल्दाब्रा, फरकुहर और डेशरोचेज द्वीपों को लेकर ब्रिटिश इंडियन ओसियन टेरीटोरी का निर्माण किया था। जून, 1976 में जब सेशल्स को ब्रिटेन से आजादी मिली तब ब्रिटेन ने इन द्वीपों को सेशेल्स को वापस सौंप दिया था। हिन्द महासागर में मालदीव के क्षेत्र में स्थित अंतरराष्ट्रीय समुद्री जहाजी मार्ग मध्य पूर्व के तेल की आपूर्ति भारत जापान और चीन को करते हैं। मात्रात्मक दृष्टि से भारत का 97 प्रतिशत से अधिक और मूल्यात्मक दृष्टि से 75 प्रतिशत से अधिक अंतरराष्ट्रीय व्यापार हिन्द महासागर में बैठे मालदीव के अंतरराष्ट्रीय ट्रेड शिपिंग लेन्स के जरिए होता है। मालदीव भारत के लिए ब्लू इकोनॉमी अथवा सागरीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अंडमान निकोबार द्वीपसमूह, लक्षद्वीप के तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए भी यह जरूरी है।

इंडो पैसिफिक रणनीति को धार देता भारत
2018 में सिंगापुर में शांगरी-ला संवाद में भारतीय प्रधानमंत्री ने इंडो पैसिफिक की धारणा को स्पष्ट करते हुए बताया था कि इसमें समूचे हिंद महासागर से लेकर पश्चिमी प्रशांत महासागर तक का क्षेत्र शामिल है। इसमें भारतीय दृष्टिकोण से अफ्रीका, अमेरिका और जापान के क्षेत्र शामिल हैं। भारत का इंडो पैसिफिक रणनीति इन सब भौगोलिक आयामों को शामिल करते हुए आसियान केन्द्रीयता को भारतीय इंडो पैसिफिक रणनीति का आधार स्तंभ मानती है। समावेशिता और खुलापन भारत की इस नीति के अनिवार्य अंग हैं। हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारतीय हितों की रक्षा के लिए अब एक्ट ईस्ट पॉलिसी एक्ट इंडो पैसिफिक पॉलिसी में बदलती नजर आ रही है। दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया, पूर्वी एशिया के देशों के साथ चलते हुए इंडो पैसिफिक क्षेत्र में भारत अपने हितों के क्रम में चीन को प्रतिसंतुलित करने का प्रयास करता रहा है और इसके साथ ही अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों को इंडो पैसिफिक की सुरक्षा रणनीति का भाग बनाने में भारत काफी हद तक सफल भी रहा है लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि फ्री एंड ओपेन इंडो पैसिफिक रणनीति को आज यूरोपीय देशों द्वारा मान्यता मिलने लगी है। वर्ष 2018 में फ्रांस ने अपनी इंडो पैसिफिक रणनीति की रूपरेखा प्रस्तुत की थी जबकि अमेरिका की इंडो पैसिफिक स्ट्रेटजी और क्वाड सुरक्षा समूह से अपने गठजोड़ के चलते भारत आज भारतीय प्रधानमंत्री के नेतृत्व में महासागरीय संप्रभुता की सुरक्षा को एक वैश्विक महत्व का मुद्दा बनाने में लगा है और इसका परिणाम यह मिला है कि जर्मनी ने हिंद प्रशांत क्षेत्र के लोकतांत्रिक देशों के साथ भागीदारी मजबूत करने के लिए नई इंडो पैसिफिक पॉलिसी बनाई है जिसका समर्थन भारत, जापान और आसियान देशों ने कर दिया है। भारत ने सागरों और महासागरों की सुरक्षा को विश्व और क्षेत्रीय राजनीति में एक नया आयाम दिया है।

भारत ने हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर में नौ गमन की स्वतंत्रता, महत्वपूर्ण वाणिज्यिक समुद्री मार्गों से अबाधित आवाजाही को एक नया वैश्विक आंदोलन बना दिया है जिसमें उसे अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया समेत आसियान, पूर्वी एशियाई और अफ्रीकी देशों का सहयोग मिला है। यही कारण है कि भारत ने 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा एक्ट ईस्ट पॉलिसी की शुरुआत की गई जिसका उद्देश्य एशिया प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देना था। इस पॉलिसी में दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ सहयोग के अलावा एशिया पैसिफिक के अन्य देशों के साथ सहयोग, समन्वय पर बल दिया गया। इस पॉलिसी के एक अपरिहार्य हिस्से के रूप में भारत ने जापान की पहचान की और यही कारण है कि वर्ष 2015 में दोनों देशों ने ‘जापान भारत विजन 2025 विशेष सामरिक और वैश्विक साझेदारी’ की घोषणा की जिसका मुख्य उद्देश्य हिन्द प्रशांत क्षेत्र और विश्व में शांति और समृद्धि के लिए काम करना है। हाल ही में कनाडा ने भी जापान के साथ मिलकर मुक्त और स्वतंत्र इंडो पैसिफिक क्षेत्र की आवश्यकता पर बल देते हुए अपनी इंडो पेसिफिक पॉलिसी बनाने का संकेत दिया है। ब्रिटेन ने भी इंडो पैसिफिक रणनीति में रुचि लेनी शुरू कर दी है। इस प्रकार चीन द्वारा वैश्विक विधियों के अतिक्रमण को रोकने के लिए यूरोप के कई देश लगातार इंडो पैसिफिक के मुद्दे पर लामबंद हो रहे हैं।

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