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मासिक धर्म अवकाश का मुद्दा फिर से चर्चा में, केंद्र सरकार को अब बनानी हो पॉलिसी

नई दिल्ली: भारत में अनिवार्य मासिक धर्म अवकाश का मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में है। चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने एक आदेश में केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह राज्यों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श कर महिला कर्मचारियों के लिए मासिक धर्म अवकाश पर एक मॉडल नीति तैयार करे। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा नीति से संबंधित है और अदालतों के विचार करने के लिए नहीं है। बहरहाल यह मुद्दा अब नीति निर्धारण के लिए अदालत में विचाराधीन है।

छात्राओं को भी पेश आती है समस्याएं
जामिया मिलिया इस्लामिया की मास्टर्स की एक छात्रा हर महीने मासिक धर्म अवकाश की वकालत करने वाली महिलाओं में से एक हैं। वह बताती है कि उन्हें हर महीने मासिक धर्म यानी पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पी.सी.ओ.एस.) की चुनौती से कैसे जूझना पड़ता है। वह बताती हैं पी.सी.ओ.एस. से होने वाला दर्द और तकलीफ बहुत ज्यादा हो सकती है। ऐसे दिन भी आते हैं जब क्लास में जाना और अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना लगभग असंभव हो जाता है।

73% महिलाएं चाहती हैं मासिक धर्म अवकाश
पिछले साल मासिक धर्म स्वच्छता ब्रांड एवरटीन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 73% महिलाएं चाहती हैं कि कंपनियां मासिक धर्म अवकाश की अनुमति दें। एक मार्केटिंग पेशेवर महिला के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे दिन भी आते हैं जब दर्द और तकलीफ़ इतनी गंभीर होती है कि काम पर ध्यान केंद्रित करना असंभव हो जाता है। वह कहती हैं कि मासिक धर्म अवकाश का विकल्प होने से न केवल मेरी उत्पादकता में सुधार होगा बल्कि मेरी समग्र भलाई भी होगी।

स्विगी अपनी महिला कर्मचारियों को देता है अवकाश
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कुछ कंपनियों ने इस मुद्दे को हल करने के लिए कदम उठाए हैं। एक प्रमुख खाद्य वितरण सेवा स्विगी ने बिना किसी सवाल के महीने में दो दिन मासिक धर्म अवकाश नीति लागू की है।
स्विगी के अनुसार मासिक धर्म अवकाश या भुगतान किया गया अवकाश प्रदान करना उनके महिला कर्मचारियों की अनूठी स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करता है, विशेष रूप से वे जो भोजन की डिलीवरी जैसी शारीरिक रूप से कठिन भूमिकाओं में लगी हुई हैं। स्विगी के एक प्रवक्ता ने कहा कि जब हमने पहली बार मासिक धर्म अवकाश लागू किया तो सकारात्मक प्रतिक्रिया में अचानक वृद्धि हुई। यह न केवल समावेशिता को बढ़ावा देता है बल्कि अधिक महिलाओं की डिलीवरी करने की भूमिकाओं को प्रोत्साहित करता है। हालांकि सभी संगठनों ने ऐसे उपायों को नहीं अपनाया है।

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