सुप्रीम कोर्ट की दो टूक, इमेज अच्छी होने से डबल मर्डर जैसे केस वापस नहीं लिए जा सकते
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने यूपी से बीएसपी के पूर्व विधायक छोटे सिंह के खिलाफ डबल मर्डर के तीन दशक पुराने मामले को फिर शुरू किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुकदमा वापस लेने की अनुमति देने में निचली अदालत ने लापरवाह रुख अपनाया। डबल मर्डर जैसे अपराध के मामलों में केवल इस आधार पर मुकदमा वापस नहीं लिया जा सकता कि नामजद आरोपी की सार्वजनिक छवि अच्छी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश की न्यायिक प्रणाली अक्सर खुद को लंबे विलंब और संदिग्ध राजनीतिक प्रभाव के व्यापक मुद्दों से जूझते हुए पाती है।
जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा, ‘हम यह भी स्वीकार करते हैं कि 19 मई 2012 के निचली अदालत के आदेश से यह स्पष्ट है कि आरोपी छोटे सिंह के खिलाफ मुकदमा वापस लेने के लिए राजनीतिक शक्ति का इस्तेमाल किया गया है।’ पीठ ने कहा कि 19 मई 2012 के आदेश को आरोपियों और पीड़ितों दोनों ने चुनौती दी थी, लेकिन मामला 12 साल से इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित है, जिससे मुकदमे की कार्यवाही में रुकावट आ गई, जो बेहद परेशान करने वाली बात है।
पीठ ने कहा कि यह मामला चिंताजनक परिस्थितियों को बताया है, जिसमें दिनदहाड़े दोहरे हत्याकांड के आरोपी राजनीतिक रूप से प्रभावशाली व्यक्ति लगभग तीन दशकों से मुकदमे से बचते रहे हैं। अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री, आरोपी छोटे सिंह का राजनीतिक प्रभाव और उसके खिलाफ मुकदमा वापस लेने की अनुमति देने में निचली अदालत के लापरवाह रुख पर विचार करते हुए इस अदालत की राय है कि केवल आरोपी व्यक्ति का विधानसभा के लिए चुना जाना आम जनता में उसकी छवि का प्रमाण नहीं हो सकता है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि दोहरे हत्याकांड जैसे जघन्य अपराध के मामलों में केवल इस आधार पर केस वापस नहीं लिया जाता कि पूरी जांच के बाद आरोपपत्र में नामजद आरोपी की सार्वजनिक छवि अच्छी है। सुप्रीम कोर्ट ने 15 जुलाई के आदेश में कहा कि जनहित में इस तरह से मुकदमा वापसी की अनुमति नहीं दी जा सकती और इस तर्क को स्वीकार नहीं किया जा सकता, खासकर प्रभावशाली लोगों की संलिप्तता वाले मामलों में।
बीएसपी के पूर्व विधायक छोटे सिंह पर नौ अन्य लोगों के साथ मिलकर 30 मई 1994 को राजकुमार और जगदीश शरण पर अंधाधुंध गोलीबारी करने का आरोप है। बाद में दोनों की मृत्यु हो गई थी। मुकदमा लंबित रहने के दौरान ही सिंह 2007 में बीएसपी के टिकट पर उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए थे। वर्ष 2007 में उत्तर प्रदेश में सत्ता में आई बीएसपी ने 2008 में सिंह और अन्य के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 321 के तहत मुकदमा वापस लेने का निर्णय लिया था।