दस्तक-विशेष

आस्था का कांवड़

रामकुमार सिंह

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे देवशयनी या हरिशयनी एकादशी भी कहते हैं, वैदिक मान्यता है कि इस तिथि से चार माह के लिए विष्णुजी विश्राम करते हैं। इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है। कहा जाता है कि विश्राम के दौरान सृष्टि का संचालन का भार महादेव के कंधों पर आ जाता है। तभी तो इसी एकादशी के बाद शिव जी का प्रिय महीना सावन शुरू होता है। इस पूरे महीने में शिव जी के लिए विशेष पूजा-पाठ की जाती है। इन दिनों में शिवजी के 12 ज्योतिर्लिंगों में दर्शन करने की परंपरा है। सावन के महीने भोलेनाथ के भक्त गंगा तट पर जाते हैं। वहां स्नान करने के बाद कलश में गंगा जल भरते हैं। फिर कांवड़ पर उसे बांधकर और कंधे पर लटका कर अपने-अपने इलाके के शिवालय में लाते हैं और शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। कांवड़ बांस या लकड़ी से बना डंडा होता है जिसे रंग-बिरंगे पताकों, झंडे, धागे, चमकीले फूलों से सजाया जाता है और उसके दोनों सिरों पर गंगाजल से भरा कलश लटकाया जाता है। कांवड़ यात्रा के दौरान सात्विक भोजन किया जाता है। इस दौरान आराम करने के लिए कांवड़ को किसी ऊंचे स्थान या पेड़ पर लटका कर रखा जाता है। साथ ही यह पूरी कांवड़ यात्रा नंगे पांव करना होता है। हिन्दू धर्म की मान्यता के मुताबिक श्रावण के महीने में कांवड़ यात्रा का बड़ा महत्व है। माना जाता है कि शिव को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। उन्हें केवल एक लोटा जल चढ़ाकर प्रसन्न किया जा सकता है। वहीं यह भी मान्यता है कि शिव बहुत जल्दी क्रोधित भी होते हैं। लिहाजा ऐसी मान्यता भी है कि इस कांवड़ यात्रा के दौरान मांस, मदिरा, तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए और न ही कांवड़ का अपमान (जमीन पर नहीं रखना चाहिए) किया जाना चाहिए। कांवड़ यात्रा ‘शिवो भूत्वा शिवम जयेत’ यानी ‘शिव की पूजा शिव बन कर करो’ को चरितार्थ करती है। यह समता और भाईचारे की यात्रा भी है। सावन जप, तप और व्रत का महीना है।

भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए भक्त गंगा, नर्मदा, शिप्रा आदि नदियों से जल भरकर एक लंबी पैदल यात्रा कर शिव मंदिर में स्थित शिवलिंग पर उसे चढ़ाते हैं। उत्तराखंड में कांवड़िया हरिद्वार, गोमुख, गंगोत्री से गंगा जल भरकर इसे अपने-अपने इलाके के शिवालयों में स्थित शिवलिंगों पर अर्पित करते हैं। तो वहीं, मध्य प्रदेश के इंदौर, देवास, शुजालपुर आदि जगहों से कांवड़ यात्री वहां की नदियों से जल लेकर उज्जैन में महादेव पर उसे चढ़ाते हैं। बिहार में कांवड़ यात्रा सुल्तानगंज से देवघर और पहलेजा घाट से मुजफ्फरपुर तक होती है। बिहार में श्रद्धालु सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर करीब 108 किलोमीटर पैदल यात्रा कर झारखंड के देवघर में बाबा बैद्यनाथ (बाबाधाम) में जल चढ़ाते हैं। वहीं सोनपुर के पहलेजा घाट से मुजफ्फरपुर के बाबा गरीबनाथ, दूधनाथ, मुक्तिनाथ, खगेश्वर मंदिर, भैरव स्थान मंदिरों पर भक्त गंगा जल चढ़ाते हैं। इतना ही नहीं, इस दौरान यहां ‘डाकबम’ का भी चलन है। जो कांवड़िए गंगाजल भरने के बाद अगले 24 घंटे के अंदर उसे भोलेनाथ पर चढ़ाने के संकल्प लिए दौड़ते हुए इन शिवालयों में पहुंच कर शिवलिंगों पर यह जल अर्पित करते हैं उन्हें ‘डाकबम’ कहते हैं।

जैसी कि मान्यता है कि कांवड़ यात्रा के दौरान पूर्णतया सात्विक रहना चाहिए। इसी सोच और मान्यता को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने कांवड़ यात्रा के दौरान रास्तों में पड़ने वाले छोटे-बड़े ढाबों, होटलों, रेस्तरां तथा जलपान गृहों को यह निर्देश दिया कि वे अपने प्रतिष्ठान के सामने इस बात का उल्लेख अवश्य करें कि अमुक ढाबा अथवा होटल किस व्यक्ति का है, यानि उसका नाम क्या है? नाम के साथ ही उस व्यक्ति के धर्म का भी खुलासा हो जाता है। इतना ही नहीं, यह भी निर्देश दिया गया कि होटल अथवा ढाबों को अपने यहां कार्य करने वाले कर्मचारियों का नाम भी बैनर अथवा बोर्ड पर दर्शाना अनिवार्य कर दिया था। इसके पीछे यह सोच थी कि कांवड़ियों को पता चल सके कि वो किससे सामान खरीद रहे हैं। यूपी सरकार की भावना का मर्म समझते हुए बिना देर किए उत्तराखण्ड की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने भी यह व्यवस्था अपने राज्य में भी अनिवार्य कर दी। हरिद्वार के एसएसपी ने अपने साथ आधार कार्ड और पहचान पत्र लिखने के भी निर्देश दिए हैं। सरकार के इस निर्णय की तमाम धर्मगुरुओं ने मुक्तकंठ से प्रशंसा भी की। लेकिन विपक्षी दलों को भाजपा सरकारों का यह फैसला तुगलकी लगा। ऐसे में चौतरफा इसका विरोध होने लगा।

दरअसल कांवड़ यात्रा को देखते हुए यूपी के मुजफ्फरनगर जिले के पुलिस प्रशासन की ओर से सबसे पहले इस तरह के निर्देश जारी किए गए थे, जिसमें पूरे रूट पर दुकानदारों ने उनका नाम लिखने को कहा गया था। पहले माना जा रहा था इस फैसले को वापस लिया जा सकता है लेकिन बाद में सीएम योगी आदित्यनाथ ने इसे और विस्तार दे दिया और पूरे प्रदेश में कांवड़ यात्रा रूट की दुकानों पर पहचान लिखने के आदेश दे दिए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी ने कांवड़ यात्रियों के लिए बड़ा कदम उठाते हुए पूरे प्रदेश में कांवड़ मार्गों पर खाने-पीने की दुकानों पर ‘नेमप्लेट’ लगाने का आदेश जारी कर दिया और सभी दुकानदारों को इसका पालन करने के निर्देश दिए। तर्क के साथ कहा गया कि ऐसा इसलिए किया गया है ताकि कांवड़ यात्रियों की आस्था की पवित्रता बनाए रखा जा सके। यही नहीं, हलाल सर्टिफिकेशन वाले प्रोडक्ट पर भी रोक लगा दी गई है। ऐसा करने वालों पर कार्रवाई की जाएगी। उधर, यूपी की तर्ज उत्तराखंड में भी इसी तरह का आदेश जारी किया। हरिद्वार के डीएम धीरज गरबियाल ने कहा कि हमने नगर निगम को आदेश दिया है कि जो भी लाइसेंस उनके द्वारा जारी किए जाते हैं, उन लाइसेंस को अस्थाई रूप से ठेला, रेहड़ी तथा ढाबा लगाने वाले लोगों को लगाना होगा, क्योंकि हर साल बहुत से अन्य राज्यों से लोग भी यहां पर आते हैं, जिससे यात्रा के दौरान कई प्रकार की घटनाएं देखने को मिली है, इससे बचने के लिए इस प्रकार का फैसला दिया गया है। उल्लेखनीय है कि हरिद्वार में हर हाल करोड़ों की संख्या में कांवड़िए गंगा से जल भरने आते हैं।

अब यहां सवाल यह उठता है कि कांवड़ यात्रा तो बरसों से चली आ रही है, फिर आज ही इस तरह का फैसला क्यों किया गया? दरअसल, पिछले साल भी इस तरह की मांग उठी थी। जब योग साधना आश्रम के गुरु यशवीर महाराज ने हरिद्वार से पूरे मार्ग पर कई मुस्लिमों द्वारा अपनी दुकानों पर हिन्दू देवी-देवताओं का तस्वीर लगाने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि इन दुकानों पर काम करने वाले लोगों को नाम लिखना चाहिए ताकि कांवड़ियों को पता लग सके कि वो कहां बैठकर खाना खा रहे हैं। इसके बाद कई ढाबों से हिन्दू देवी देवताओं की तस्वीरें भी हटवाई गई थीं, लेकिन इस बार सरकार ने सभी को नाम लिखने का आदेश जारी कर दिया है। सरकार के इस निर्णय के बाद सत्तारुढ़ भाजपा के नेताओं ने इसका स्वागत करते हुए कहा कि इस आदेश में यह नहीं कहा गया है कि किसे कहां से सामान खरीदना है। जो जहां से चाहे वहां से सामान खरीद सकता है, इसमें कोई आपत्ति नहीं है लेकिन जो व्रत, त्योहार, कांवड़ यात्रा के कुछ नियम हैं, उनका उल्लंघन न हो। इसी नीयत से यह फैसला लिया गया है। दूसरी तरफ इस मामले को लेकर सियासत भी तेज हो गई है। विपक्षी दलों समेत कई एनडीए के सहयोगियों ने भी इस पर सवाल उठाए हैं। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस आदेश को सामाजिक अपराध बताया है तो वहीं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने भी बीजेपी पर निशाना साधा और कहा कि इससे हमारे देश में भाईचारे की भावना को खराब करने की कोशिश की जा रही हैं। इस फैसले को तत्काल निरस्त करना चाहिए।

बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसे असंवैधानिक बताया और सरकार से फैसला वापस लेने की मांग की। वहीं दुकानों पर नाम लिखने के आदेश का सिर्फ विपक्षी दल ही नहीं, एनडीए के सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल और जेडीयू ने भी नाराजगी जाहिर की। एक ओर जहां योगी-धामी सरकार के इस निर्णय को लेकर राजनीति शुरु हो गयी थी। वही दूसरी ओर इसके खिलाफ कुछ लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया, जिसके बाद कांवड़ यात्रा रूट की फल-फूल और होटल-रेस्टोरेंट पर दुकानदार का नाम लिखे जाने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी किया है। आदेश के तहत कांवड़ यात्रा रूट पर दुकानदारों को पहचान बताने की जरूरत नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुकानदारों को केवल खाने के प्रकार बताने होंगे। उन्हें बताना होगा कि भोजनालय में शाकाहारी व्यंजन परोसा जा रहा है या मांसाहारी।

दरअसल, यूपी सरकार के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में एनजीओ एसोशिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स ने चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ऋषिकेश राय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच मामले की सुनवाई की। मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस भट्टी ने टिप्पणी की कि मेरा भी अपना अनुभव है। केरल में एक शाकाहारी होटल था जो हिंदू का था, दूसरा मुस्लिम का था। मैं मुस्लिम वाले शाकाहारी होटल में जाता था, क्योंकि उसका मालिक दुबई से आया था। वह साफ-सफाई के मामले में इंटरनेशनल स्टैंडर्ड फॉलो करता था। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि यूपी सरकार की ओर से कोई आदेश जारी किया गया है या फिर कोई बयान है। सीयू सिंह ने कहा कि प्रदेश में प्रशासन दुकानदारों पर दबाव डाल रहा है कि वह अपने नाम और मोबाइल नंबर को प्रदर्शित करें। कोई भी कानून पुलिस को ऐसा करने का अधिकार नहीं देता है। पुलिस के पास केवल यह जांचने का अधिकार है कि किस तरह का खाना परोसा जा रहा है। कर्मचारी या मालिक का नाम अनिवार्य नहीं किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि यह स्वैच्छिक है और अनिवार्य नहीं है। याचिकाकर्ता ने कहा कि हरिद्वार पुलिस ने कैसे इसको लागू किया है। वहां पुलिस की तरफ से चेतावनी जारी की गई है कि अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो कर्रवाई होगी। मध्य प्रदेश में भी इस तरह की कार्रवाई की बात की गई है। याचिकाकर्ता ने कहा कि यह व्यापारियों के लिए आर्थिक मौत के समान है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में जारी नेम प्लेट से संबंधित आदेशों पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने तीनों राज्य की सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा है कि कांवड़ यात्रा रूट पर दुकानों का नाम नही, केवल परोसे जाने वाले भोजन के प्रकार बताने की जरूरत होगी। इस प्रकार, कोर्ट ने सरकार और प्रशासन की ओर से नेम प्लेट अनिवार्य रूप से लगाने के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है।

कहां किया जाता है जलाभिषेक
हर साल श्रावण मास में हजारों भक्त कांवड़ यात्रा के माध्यम से भगवान शिव की भक्ति में लीन होते हैं। इस पवित्र यात्रा के दौरान, श्रद्धालु गंगा जल लेकर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। यह उनकी अटूट आस्था और समर्पण का प्रतीक है। साफ है कि कांवड़ यात्रा एक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थयात्रा है। यह भगवान शिव की भक्ति और आस्था के लिए समर्पित है। इस पवित्र यात्रा में श्रद्धालु गंगा नदी से जल लेकर पैदल यात्रा करते हैं और इसे शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। यह यात्रा मुख्य रूप से उत्तराखंड के हरिद्वार से शुरू होकर विभिन्न शहरों और गांवों तक होती है। श्रावण मास में होने वाली इस यात्रा में हजारों की संख्या में भक्त भाग लेते हैं और डाक कांवड़ के रूप में इसे बिना रुके पूरा करने की परंपरा भी है। यह यात्रा आस्था, भक्ति और धार्मिक उत्साह का प्रतीक है। कांवड़ यात्रा प्रमुखता से गंगा नदी जुड़ी हुई है। कांवड़ यात्रा मुख्य रूप से उत्तराखण्ड राज्य में होती है। कांवड़ यात्रा के लिए कई प्रमुख मार्ग हैं, जिनमें से प्रमुख तीन स्थानों से शुरू होते हैं- हरिद्वार, गौमुख और गंगोत्री। ये वे स्थान हैं जहां से भक्त पवित्र गंगा जल एकत्र करते हैं और शिव मंदिर तक पहुंचने के लिए अपनी यात्रा शुरू करते हैं।

हरिद्वार मार्ग-यह मार्ग सबसे लोकप्रिय मार्ग है जिसके माध्यम से श्रद्धालु हरिद्वार से ऋषिकेश के नीलकंठ महादेव मंदिर या उत्तर प्रदेश के बागपत के पुरा महादेव मंदिर तक जाते हैं। गौमुख मार्ग- कुछ भक्त गंगा के उद्गम स्थल गौमुख से अपनी यात्रा शुरू करते हैं और अपने-अपने गंतव्य की ओर बढ़ते हैं। गंगोत्री मार्ग-एक अन्य महत्वपूर्ण मार्ग गंगोत्री है, जहां से भक्तजन वाराणसी में काशी विश्वनाथ या झारखंड के देवघर में बैद्यनाथ धाम जैसे मंदिरों तक जल ले जाते हैं। सुल्तानगंज से देवघर रूट- यह वह मार्ग है जहां से भक्तजन सुल्तानगंज में गंगा से जल एकत्र करते हैं और देवघर स्थित बैद्यनाथ मंदिर तक जाते हैं, जो लगभग 105 किलोमीटर दूर है। हरिद्वार से यूपी के शिव मंदिर- यह सबसे लोकप्रिय मार्गों में से एक है। भक्त हरिद्वार की यात्रा करते हैं। गंगा नदी से जल इकट्ठा करते हैं और फिर उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में अपने स्थानीय शिव मंदिरों में वापस जाते हैं। इसके अलावा प्रयागराज जैसे अन्य तीर्थ स्थलों के मार्ग जहां त्रिवेणी संगम का जल एकत्र किया जाता है।

वाराणसी के मार्ग जहां पवित्र गंगा जल एकत्र किया जाता है। यूपी में काशी विश्वनाथ मंदिर (वाराणसी) सबसे प्रतिष्ठित शिव मंदिरों में से एक है, जहां कई कांवड़िए अपनी यात्रा समाप्त करते हैं। वहीं बाबा बैद्यनाथ धाम (देवघर) जो कि झारखंड राज्य में है, वह भी यूपी के कांवड़ियों का प्रमुख गंतव्य है। पुरा महादेवा (मेरठ) भी यूपी का एक महत्वपूर्ण स्थानीय शिव मंदिर जहां कई कांवड़िए जल चढ़ाते हैं। वहीं कालेश्वर महादेव मंदिर (गोरखपुर), एक अन्य प्रमुख मंदिर है जहां जल चढ़ाया जाता है। वाराणसी में ही महामृत्युंजय मंदिर भी एक प्रमुख शिव मंदिर है जहां कांवड़िये जलाभिषेक करते हैं। मेरठ के औघड़नाथ मंदिर- एक स्थानीय शिव मंदिर जहां कई भक्त अपनी यात्रा समाप्त करते हैं।

कैसे शुरु हुई कांवड़ यात्रा की परंपरा
सावन का महीना शुरू होते ही कांवड़ यात्रा भी शुरू हो चुकी है। सावन माह में शिव भक्त गंगातट पर कलश में गंगाजल भरते हैं और उसको कांवड़ पर बांध कर कंधों पर लटका कर अपने-अपने इलाके के शिवालय में लाते हैं और शिवलिंग पर गंगाजल अर्पित करते हैं। कांवड़ यात्रा को लेकर शिवभक्तों में खासा उत्साह देखने को मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा करने से भगवान शिव सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं और जीवन के सभी संकटों को दूर करते हैं। पुराणों में बताया गया है कि कांवड़ यात्रा भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे सहज रास्ता है।

कांवड़ यात्रा को लेकर मान्यता

कांवड़ यात्रा को लेकर पहली मान्यता
मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। परशुराम गढ़मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लेकर आए थे और यूपी के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’ का गंगाजल से अभिषेक किया था। उस समय सावन मास ही चल रहा था, इसी के बाद से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई। आज भी इस परंपरा का पालन किया जा रहा है। लाखों भक्त गढ़मुक्तेश्पर धाम से गंगाजल लेकर जाते हैं और पुरा महादेव पर जल अर्पित करते हैं।

कांवड़ यात्रा को लेकर दूसरी मान्यता
आनंद रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि भगवान राम पहले कांवड़िया थे। भगवान राम ने बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था। उस समय सावन मास चल रहा था।

कांवड़ यात्रा को लेकर तीसरी मान्यता
प्राचीन ग्रंथों में रावण को पहला कांवड़िया बताया है। समुद्र मंथन के दौरान जब भगवान शिव ने हलाहल विष का पान किया था, तब भगवान शिव का कंठ नीला हो गया था और वे तभी से नीलकंठ कहलाए थे। लेकिन हलाहल विष के पान करने के बाद नकारात्मक शक्तियों ने भगवान नीलकंठ को घेर लिया था। तब रावण ने महादेव को नकारात्मक शक्तियों से मुक्त के लिए रावन ने ध्यान किया और गंगाजल भरकर ‘पुरा महादेव’ का अभिषेक किया, जिससे महादेव नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्त हो गए थे। तभी से कांवड़ यात्रा की परंपरा भी प्रारंभ हो गई।

कांवड़ यात्रा को लेकर चौथी मान्यता
कुछ विद्वानों का मानना है कि सबसे पहले त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा शुरू की थी। श्रवण कुमार ने अंधे माता-पिता को तीर्थ यात्रा पर ले जाने के लिए कांवड़ बैठया था। श्रवण कुमार के माता पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की थी, माता पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार कांवड़ में ही हरिद्वार ले गए और उनको गंगा स्नान करवाया। वापसी में वे गंगाजल भी साथ लेकर आए थे। बताया जाता है कि तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी।

कांवड़ यात्रा को लेकर पांचवी मान्यता
मान्यताओं में बताया गया है कि समुद्र मंथन के दौरान जब महादेव ने हलाहल विष का पान कर लिया था, तब विष के प्रभावों को दूर करने के लिए भगवान शिव पर पवित्र नदियों का जल चढ़ाया गया था ताकि विष के प्रभाव को जल्दी से जल्दी कम किया जा सके। सभी देवता मिलकर गंगाजी से जल लेकर आए और भगवान शिव पर अर्पित कर दिया। उस समय सावन मास चल रहा था। मान्यता है कि तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हो गई थी।

चार तरह की होती है कांवड़ यात्रा

सावन के महीने में कांवड़ यात्रा क्यों इतनी खास है, इसके पीछे भी एक वजह है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा की शुरुआत भगवान शिव के परम भक्त परशुराम ने की थी। एक मान्यता यह भी है कि श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता-पिता की इच्छा पूरा करने के लिए कांवड़ में बैठाकर उन्हें हरिद्वार लाए थे। लौटते वक्त वे गंगाजल लेकर आए थे। इसी जल से उन्होंने भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था। कांवड़ यात्रा एक नहीं, बल्कि चार तरह की होती है। अलग-अलग कांवड़ यात्रा के अलग-अलग नियम है। आप जिस नियम का पालन अच्छे से कर सकते हैं, उसी कांवड़ यात्रा को चुनना चाहिए।

सामान्य कांवड़ यात्रा
सामान्य कांवड़ यात्रा हम सभी ने देखी है। इसके नियम बेहद सहज और सरल है। इसकी सबसे अच्छी बात है कि कांवड़ियां बीच रास्ते में कभी भी आराम कर सकता है और फिर यात्रा शुरू कर सकता है। वैसे तो कांवड़ यात्रा पैदल की जाती है, लेकिन आजकल लोग गाड़ियों पर जल लेकर जाते हैं और शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। बिहार और झारखंड में इस तरह की कांवड़ यात्रा प्रचलित है, जिसे बोल बम कहा जाता है।

खड़ी कांवड़ यात्रा
खड़ी कांवड़ यात्रा सामान्य यात्रा से थोड़ी मुश्किल होती है। इसलिए इसका चुनाव सोच-समझकर ही करना चाहिए क्योंकि इस कांवड़ यात्रा में लगातार चलना होता है। इसमें एक कांवड़ के साथ दो से तीन कांवड़ियां होते हैं। जब कोई एक थक जाता है, तो दूसरा कांवड़ लेकर चलता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यात्रा में कांवड़ को नीचे जमीन पर नहीं रखते। इसी कारण इसे खड़ी कांवड़ यात्रा कहते हैं।

डाक कांवड़
डाक कांवड़ यात्रा तो और भी मुश्किल है। इसके नियमों का पालन करने के लिए शिव भक्त को बहुत मजबूत बनना पड़ता है क्योंकि इस यात्रा में कांवड़ को पीठ पर ढोकर लगातार चलना पड़ता है। जो डाक कावड़ बिहार के सुल्तानगंज से देवघर जाते हैं, उन्हें 24 घंटे के अंदर देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम के शिवलिंग का अभिषेक करना होता है। ऐसा न करने पर यह यात्रा अधूरी मानी जाती है। इसलिए इस यात्रा के लिए रास्ते खाली करा दिए जाते हैं।

दांडी कांवड़ यात्रा
इस यात्रा का दृश्य आपने बड़े-बड़े शिव मंदिरों में देखा होगा। इसे दंड प्रणाम कांवड़ यात्रा भी कहते हैं। यह एक ऐसी कठिन यात्रा है, जिसे पूरा करने में कहो हफ्ता लग जाए और कहो तो महीनाभर। इस यात्रा में शिव भक्त गंगा घाट से शिव मंदिर तक दंडवत प्रणाम करते हुए जाते हैं। यानी भक्त जमीन पर लेटकर अपनी हाथों सहित कुल लंबाई को मापते हुए आगे बढ़ता है। इसमें चाहे, तो यात्री आराम कर सकते हैं और चाहें तो लगातार चल सकते हैं। उनकी मदद के लिए एक व्यक्ति साथ जरूर रहता है।

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