प्रशांत किशोर का पैंतरा
–दस्तक ब्यूरो, पटना
बिहार विधानसभा चुनाव में अभी भले ही डेढ़ साल का समय है, लेकिन इसकी तैयारी में राजनीतिक दल अभी से जुट गए हैं। इससे पहले बिहार में एक नए राजनीतिक दल का जन्म होने वाला है। यह दल निश्चित ही नए समीकरण पैदा करेगा। सिर्फ बिहार ही नहीं आने वाले समय में पूरे देश में इसकी चर्चा जोर-शोर से चल रही है। इसके कर्ता-धर्ता राजनीतिक सलाहकार व जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर (पीके) हैं। वे नई पार्टी का गठन जल्द ही करने वाले हैं। इस नाम जन सुराज होगा या कुछ और, अभी कहा नहीं जा सकता, लेकिन इसकी चर्चा लंबे समय से चल रही है। यह बात वह कई बार इशारों में कह चुके हैं। हाल में मीडिया को दिए इंटरव्यू में वे यह साफ कर चुके हैं कि बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव उनकी ओर से लड़ा जाएगा। यह साफ है कि वे यह चुनाव अपनी पार्टी के बैनर तले लड़ेंगे। बीते वर्ष गांधी जयंती पर पीके ने जन सुराज के तहत पूरे बिहार के लिए पदयात्रा की शुरुआत की थी। इसके एक साल पूरे होने पर पार्टी की घोषणा की संभावना है। पदयात्रा की शुरुआत उन्होंने पश्चिम चंपारण के भितिहरवा गांधी आश्रम से की थी। चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधी जी यहां रुके थे। इसके जरिए वे संदेश देना चाहते हैं कि वे गांधी के आदर्शों पर काम करने वाले हैं। इससे पहले वे राज्य में अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास करा चुके हैं। एमएलसी चुनाव में सारण से समर्थित प्रत्याशी अफाक अहमद को जीत दिला चुके हैं। प्रशांत किशोर के राजनीतिक दल बनाने की घोषणा के बाद से कोई इन्हें भाजपा की बी टीम बता रहा तो कोई कुछ और।
किसको नुकसान, किसे फायदा
प्रशांत किशोर की ओर से पार्टी बनाने से नुकसान किसे होगा, इसे समझना होगा। प्रशांत तो यहां तक दावा कर रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी बहुमत के साथ जीतकर सरकार बनाएगी। क्या यह इतना आसान है? इसे समझने के लिए राज्य की राजनीतिक स्थिति पर गौर करना होगा। यहां वोटर जातिगत खांचों में बंटे हैं। उसी आधार पर वोट करते हैं। लालू, यादव व मुस्लिम की राजनीति से आगे बढ़कर अगड़ों को जोड़ने की मुहिम पर लगे हैं। नीतीश कुमार कुर्मी वोट के साथ पिछड़ा-अति पिछड़ों की राजनीति के बल पर चलते हैं। इसी तरह भाजपा अगड़ों, जीतनराम मांझी दलित, महादलित और पासवान समाज की राजनीति चिराग करते हैं। अधिकतर मतदाता भी इसी आधार पर वोट भी करते हैं। इनसे अलग प्रशांत किशोर क्या कर पाएंगे, यह जानने के लिए अब तक उनकी ओर से उठाए गए कदमों को देखना होगा। उनके बयानों को समझना होगा। वे पूरे समाज की राजनीति की बात कह रहे हैं। गरीब, बेरोजगार, महिला की बात करते हैं। युवाओं व रोजगार की बात कह रहे हैं। लालू के वोटरों को यह बताकर समझा रहे कि नौवीं पास तेजस्वी के पास सिर्फ एक ही मेरिट है कि वे लालू के बेटे हैं। यह भी कहते हैं कि क्या बिहार में पढ़ा-लिखा नया यादव नहीं है, लेकिन लालू ने सिर्फ बेटे को आगे बढ़ाया। इसी के चलते वे उपमुख्यमंत्री बन जाते हैं। मुख्यमंत्री के दावेदार हैं, जबकि उनसे अधिक पढ़े-लिखे लोग बेरोजगार घूम रहे हैं। पीके इसी तरह की बातों के जरिए अपना जनाधार तलाश रहे। दूसरे के जनाधार में सेंध लगाने की तैयारी है।
दूसरों दलों में हलचल
यही कारण है कि पार्टी बनाने की उनकी घोषणा के बाद से राजद, जदयू और भाजपा समेत अन्य दलों में अभी से हलचल है। वे जान रहे हैं कि इसका नुकसान उन्हें होगा। इसका प्रभाव अभी से दिखना शुरू हो गया है। राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह की ओर से लिखा एक पत्र पिछले दिनों सामने आया, जिससे यह साफ हो गया कि किस तरह से अन्य दलों में इसे लेकर हलचल है। पत्र में कहा गया है कि राजद के कई नेता पार्टी छोड़ जन सुराज की सदस्यता ले रहे हैं। ऐसा करने वाले इससे बचें अन्यथा उन पर कार्रवाई की जाएगी। राजद प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि लोग बहकावे में न आएं। उनकी मंशा राजद को कमजोर करने और भाजपा की शक्ति को बढ़ावा देने की है। उन्होंने जन सुराज को भाजपा की बी टीम भी बताया। कहा कि जन सुराज एक राजनीतिक पार्टी है। यह भाजपा और देश के धर्मावलंबी लोगों द्वारा संचालित, पोषित है। जन सुराज बनाने के बाद पीके ने बिहार के गांव-गांव जाकर लोगों से मिले। पदयात्रा के दौरान लोगों की भीड़ भी जुटती रही। इससे उन्हें जनता के मिले समर्थन को समझा जा सकता है। पदयात्रा में उन्होंने गरीबों को सीख दी कि वे बच्चों को पढ़ाएं।
राजनीतिक सलाहकार से नेता तक
पीके राजनीतिक सलाहकार के रूप में जाने जाते हैं, हालांकि राजनेता के रूप में जदयू में रहे, लेकिन बहुत दिनों तक नीतीश कुमार के साथ नहीं चल सके। नीतीश ने पीके को जदयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था। तब उनकी पार्टी में नंबर दो की हैसियत थी। बाद में जदयू से किनारे लगा दिए गए। अब वे पूरी तरह से एक राजनेता के रूप में लोगों के सामने आने को तैयार हैं। उनकी विधानसभा चुनाव को लेकर जो रणनीति सामने आ रही है, उसके अनुसार प्रत्याशी चयन में ब्लाक व जिला स्तर की कमेटी के सदस्यों की राय को तरजीह दी जाएगी। प्रत्याशी चयन में नए लोगों को मौका दिया जा सकता है। इसका कारण परिवारवाद को बढ़ावा नहीं देना है। साथ ही नया विकल्प लोगों के सामने लाना है। पीके जानते हैं कि नीतीश कुमार का अब अवसान है। बूढ़े हो चुके नीतीश कुमार के बाद पार्टी बिखर जाएगी। ऐसे में उनकी पार्टी के लिए स्पेस खाली होगा। जदयू की जगह वे अपनी पार्टी से इसे भर देंगे। यही कारण है कि पीके कई बार नीतीश कुमार को मरा हुआ सांप बता चुके हैं।
पीके की घोषणा से पहले ही उन पर तीखे सवाल होने लगे हैं। तेजस्वी यादव पहले ही कहते रहे हैं कि पीके शुरू से भाजपा के साथ रहे हैं। वह उनकी विचारधारा का पालन करते हैं। दूसरी ओर भाजपा नेता कह रहे कि राजनीति में नौसिखिया पीके ने अभी तक दूसरे के कंधे पर रखकर बंदूक चलाई है। जन सुराज के मुख्य प्रदेश प्रवक्ता संजय ठाकुर कहते हैं कि जन सुराज शुद्ध रूप से डेमोक्रेटिक पार्टी होगी। संस्थापक सदस्य विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार तय करेंगे। वे आगामी विधानसभा चुनाव में राज्य में सत्तारूढ़ व विपक्षियों का सूपड़ा साफ होने की बात कहते हैं। वे सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कहते हैं। भाजपा, जदयू व राजद ने बिहार को रसातल में ले गए हैं। जनता तीसरा विकल्प खोज रही है, जो जनसुराज बनने को तैयार है।