उपलब्धि : यूनेस्को की सूची में शामिल हुआ चराइदेव मैदाम
संजीव कलिता
आखिरकार जुलाई महीने के अंत आते-आते असम के लिए बड़ी खुशखबरी आ ही गई। यूनेस्को की विश्व धरोहर (वल्र्ड हैरिटेज) स्थलों की सूची में असम के चराईदेव मैदाम क्षेत्र का नाम भी दर्ज हो ही गया। यूनेस्को की ओर से 26 जुलाई को की जाने वाली इस घोषणा के लिए असमवासी बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। विश्व धरोहर समिति की 21 जुलाई से दिल्ली में हो रही बैठक में इस बार ‘चराइदेव मैदाम क्षेत्र’ (आहोम राजवंश के शाही कब्र स्थल) को विश्व धरोहर का दर्जा मिल गया है। चराईदेव मैदाम भारत का 43वां विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध हो गया। माना जा रहा है कि इसे विश्व धरोहर का तमगा मिल जाने पर पर्यटन के लिहाज से भी देश तथा प्रदेश को बहुत लाभ मिलेगा। राज्य के पर्यटन उद्योग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा मिलेगा। मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्व शर्मा की मानें तो असम और पूर्वोत्तर को अष्टलक्ष्मी का देश मानने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वजह से ही यह संभव हो पाया है। डॉ. शर्मा ने केन्द्रीय सांस्कृतिक मामलों के मंत्री गजेंद्र शेखावत का भी शुक्रिया अदा किया। मुख्यमंत्री कहते हैं कि चराइदेव मैदाम को आधिकारिक तौर पर यूनेस्को विरासत स्थल के रूप में मिले सम्मान के लिए प्रदेशवासी हमेशा केन्द्र सरकार के प्रति आभारी रहेगा। वे कहते हैं कि यह उपलब्धि केवल असम के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए सम्मान का विषय है।
‘चराइदेव मैदाम’ प्रदेश के टाई-आहोम समुदाय की गहरी आध्यात्मिक आस्था, समृद्ध सभ्यतागत विरासत और स्थापत्य कला का प्रतीक हैं। भारत की धरती से इसकी प्रविष्टि दो और कारणों से भी उल्लेखनीय है। यह पहली बार है जब पूर्वोत्तर से किसी स्थल ने सांस्कृतिक श्रेणी के तहत यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में जगह बनाई है और प्राकृतिक रूप से काजीरंगा और मानस राष्ट्रीय उद्यानों के बाद यह असम का तीसरा विश्व धरोहर स्थल है। ऐतिहासिक चराइदेव मैदाम क्षेत्र में 578 बीघा भूमि पर 42 आहोम राजाओं का कब्रिस्तान है। इसके अलावा चराइदेव मैदाम के पास कई छोटे मैदाम हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि वहां राजा के परिवार के सदस्यों को दफनाया गया था। चराइदेव मैदाम क्षेत्र के अंदर अधिक जानकारी एकत्र करने के लिए पुरातत्व विभाग द्वारा कई बार खुदाई की गई है। खुदाई के दौरान पुरातत्व विभाग आहोम राज शासन के दौरान इस्तेमाल की गई विभिन्न सामग्री बरामद करने में सफल रहा। शिवसागर जिले के चराइदेव स्थित इन मैदामों को विश्व धरोहर घोषित कराने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार ने 15 अप्रैल 2014 को यूनेस्को के पास भेजा था और उसी साल यूनेस्को विश्व धरोहर की अस्थाई सूची में शामिल हो गया था। अस्थाई स्थिति से नामांकन की स्थिति तक पहुंचने में नौ साल लग गए और जनवरी 2023 में इसका भारत की तरफ से आधिकारिक नामांकन किया गया। यह केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल के कारण ही संभव हो सका।
असम में 1228 से 1826 तक शासन करने वाले आहोम राजवंश के शाही दफन स्थल चराईदेव मैदाम असम के शिवसागर शहर से लगभग 30 किमी दूरी पर स्थित है। आज भी, चराईदेव में टीलों (टाई भाषा में जिसे ‘मैदाम’ कहा जाता है) को स्थानीय लोग पवित्र मानते हैं। मैदाम एक टीला है, आहोम राजघराने और अभिजात वर्ग का कब्र के ऊपर बना मिट्टी का टीला। जबकि चराईदेव में विशेष रूप से आहोम राजघरानों के मैदाम हैं, अभिजात वर्ग और प्रमुखों के अन्य मैदाम ऊपरी असम के जोरहाट और डिब्रूगढ़ के शहरों के बीच के क्षेत्र में बिखरे हुए पाए जाते हैं। चराईदेव स्थित मैदाम में एक तिजोरी में एक या अधिक कक्ष होते हैं। इनके ऊपर एक अर्धगोलाकार मिट्टी का टीला है, जो जमीन से बहुत ऊपर है और घास से ढका हुआ है। इस टीले के ऊपर एक मंडप है, जिसे चाउ चाली के नाम से जाना जाता है। टीले के चारों ओर एक छोटी अष्टकोणीय दीवार हौती है, जिसमें एक प्रवेश द्वार है। आहोम राजाओं और रानियों को इन मैदामों के अंदर दफनाया जाता था। टाई-आहोम समुदाय के लोगों में मृतकों को दफनाने की परंपरा रही है। मैदाम की ऊंचाई आमतौर पर अंदर दफन व्यक्ति की शक्ति और कद का संकेत देती है। हालांकि, गधाधर सिंह और रुद्र सिंह को छोड़कर अधिकांश मैदाम अज्ञात हैं। मैदाम के कक्षों के अंदर मृत राजा को मृत्यु के बाद के लिए आवश्यक वस्तुओं के साथ-साथ नौकरों, घोड़ों, पशुओं और यहां तक कि उनकी पत्नियों के साथ दफनाया जाता था। आहोम के दफन संस्कारों की प्राचीन मिस्रवासियों के दफन संस्कारों से समानता के कारण ही चराईदेव मैदाम को असम के पिरामिड का नाम दिया गया है।
चराईदेव शब्द तीन टाई-आहोम शब्द, चे-राई-दोई से लिया गया है। चे का अर्थ है शहर या कस्बा, राई का अर्थ है चमकना और दोई का अर्थ है पहाड़ी। संक्षेप में चराईदेव का अर्थ है, पहाड़ी की चोटी पर स्थित एक चमकता हुआ शहर। जबकि आहोम राजाओं ने असम में अपने 600 साल के शासन इतिहास में कई बार राजधानियां बदलीं। लेकिन, चराईदेव को उनका पहला राजधानी शहर माना जाता है जिसे 1253 ई. में राजा चुकाफा ने स्थापित किया था। आहोम शासन के दौरान यह राजवंश की स्थापना में अपनी प्रमुखता के कारण शक्ति का एक प्रतीकात्मक और अनुष्ठान केन्द्र बना रहा। 1856 में चुकाफा को चराईदेव में दफनाए जाने के बाद के राजघरानों ने भी इसे अपने विश्राम स्थल के रूप में चुना। आज, यह मैदाम असम में प्रमुख पर्यटक आकर्षण हैं, जबकि इस क्षेत्र में 150 से अधिक मैदाम हैं, केवल 30 पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित हैं और कई जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं।
चराईदेव मैदाम पर डोजियर के अनुसार, इस तरह के दफन स्थल पूरे पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में देखे गए हैं, लेकिन चराईदेव में मैदाम का समूह अपने पैमाने, एकाग्रता और टाई-आहोम की सबसे पवित्र भूमि में स्थित होने के कारण खुद को अलग करता है। मालूम हो कि आहोम भारत के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले राजवंशों में से एक थे। अपने चरम पर उनका साम्राज्य आधुनिक बांग्लादेश से लेकर बर्मा के अंदरूनी इलाकों तक फैला हुआ था। सक्षम प्रशासकों और बहादुर योद्धाओं के रूप में पहचाने जाने वाले आहोम राजवंश का असम में स्थायी सांस्कृतिक आकर्षण है। राज्य के जाने-माने इतिहासकार अरूप कुमार दत्त के अनुसार आहोम उस समय का प्रतिनिधित्व करते हैं जब असमिया जाति एकजुट थी और मुगलों जैसी विदेशी, दुर्जेय ताकत से लड़ने में सक्षम थी। भाजपा की राष्ट्रवादी बयानबाजी के मजबूत होने के साथ यह और भी प्रासंगिक हो गया है।