बांग्लादेश के निर्माण और उस पर अत्याचार की कहानी, क्या किया था पश्चिमी पाकिस्तान ने
देहरादून ( विवेक ओझा) : भारत बांग्लादेश संबंध इतिहास , कला और संस्कृति, भाषा और स्वतंत्रता आंदोलन के आदर्शों से प्रभावित रहे हैं । 1905 में ब्रिटिश शासन द्वारा बंगाल विभाजन के निर्णय के विरोध में भारत में स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की गई थी और सांस्कृतिक संबंधों को रवीन्द्र नाथ टैगोर की रचनाओं से एक नया आयाम मिला। माउंटबेटन प्लान के बाद जहां एक तरफ भारत पाकिस्तान के विभाजन का मार्ग खुल गया वहीं पूर्वी पाकिस्तान भी एक राजनीतिक इकाई के रूप में अस्तित्व में आया । पूर्वी पाकिस्तान की जनता बांग्ला भाषा वाली थी , जबकि पश्चिमी पाकिस्तान उर्दू भाषा की प्रधानता वाला देश था । पश्चिमी पाकिस्तान पूर्वी पाकिस्तान पर उर्दू भाषा और सुन्नी संप्रदाय के विश्वास और मान्यताएं थोपना चाहता था । इसलिए यह तय था कि किसी ना किसी समय पूर्वी पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान से अलग होने के लिए आंदोलन करेगा ।
यहां यह जानना महत्वपूर्ण है कि माउंटबेटन प्लान के तहत असम के सिलहट जिले में एक जनमत संग्रह कराने का प्रावधान किया गया था जिसके जरिए यह तय होता कि असम के सिलहट की बांग्लाभाषी जनता असम का हिस्सा बनी रहेगी अथवा पूर्वी पाकिस्तान का भाग बनेगी । 6 जुलाई , 1947 को हुए सिलहट जनमत संग्रह का फैसला पूर्वी पाकिस्तान के पक्ष में हुआ और असम ने एक समृद्ध जिले और उसके राजस्व को खो दिया । सिलहट पूर्वी पाकिस्तान ( वर्तमान बांग्लादेश ) का अंग बन गया ।
पूर्वी पाकिस्तान आर्थिक रूप से काफी सशक्त था। कपास के उत्पादन ने इसकी अर्थव्यवस्था और इस क्षेत्र को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दी थी । विदेशों से आर्थिक सहयोग और अनुदान भी पूर्वी पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान की तुलना में अधिक मिलता था , लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान ने अपनी सैन्य और धार्मिक कट्टरता के आवेश में पूर्वी पाकिस्तान के संसाधनों का ऐसा दोहन किया कि यह आर्थिक हाशिए पर चला गया ।
20 जून 1947 को बंगाल विधायी सभा ने भारत से अलग होने के पक्ष में मतदान किया और इसके बाद 7 जुलाई 1947 को सिलहट में जनमत संग्रह कराया गया और 15 अगस्त 1947 को पूर्वी पाकिस्तान एक राजनीतिक वास्तविकता के रूप में सामने आया। उस समय पाकिस्तान की आधी से अधिक आबादी उस के पूर्वी भाग यानी पूर्वी पाकिस्तान में रहती थी जो तेरह सौ मील लंबे भारतीय भू- क्षेत्र के जरिए पश्चिमी पाकिस्तान से विभाजित था । पूर्वी पाकिस्तान और भारत के मध्य उस समय सांस्कृतिक जुड़ाव विद्यमान था ।
25 फरवरी , 1948 को धिरेंद्र नाथ दत्त ने पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली में बंगाली भाषा के लिए उर्दू और अंग्रेजी जैसे ही राष्ट्रीय भाषा के दर्जे की मांग की लेकिन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने इसे अस्वीकार कर दिया । बंगाली भाषा को आधिकारिक भाषा का दर्जा देने की मांग को मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा भी इसके बाद अस्वीकार करने पर उनके खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान कर छात्रों ने पाकिस्तान की राष्ट्रीय सभा के बाहर विरोध प्रदर्शन किया और 21 फरवरी , 1952 को इन छात्र प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई गई और कई छात्रों की मृत्यु हो गई । यहां से पूर्वी पाकिस्तान में एक पृथक राष्ट्र के निर्माण की भावना और प्रबल होती गई ।
उर्दू और पंजाबी भाषी पश्चिमी पाकिस्तानियों ने पूर्वी पाकिस्तान की राष्ट्रवादी मानसिकता को समझने में असमर्थ रहे । पश्चिमी पाकिस्तान के निर्णय निर्माण कर्ताओं ने पूर्वी पाकिस्तान के जनांकिकी संरचना और निर्वाचकीय बहुमत और राजनीतिक मांगों को भी सिरे से खारिज कर दिया । पूर्वी पाकिस्तान में असंतोष और विद्रोह की मानसिकता को देखते हुए फील्ड मार्शल अयूब खान ने 1958 में पाकिस्तान में मार्शल लॉ लगा दिया ।
पूर्वी पाकिस्तान पर पूर्ण नियंत्रण की मंशा को पश्चिमी पाकिस्तान ने बनाए रखा और 1969 में जनरल याहया खान ने अयूब खान का स्थान लिया । याहया खान ने पाकिस्तान में चुनावों की घोषणा कर दी ।
6 दिसंबर , 1970 को चुनाव कराए गए । पूर्वी पाकिस्तान की 162 सीटों में से 160 सीटों पर अवामी लीग के नेता शेख़ मुजीबुर्र रहमान ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की जबकि पश्चिमी पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो ने 138 सीटों में से 81 सीटों पर जीत दर्ज की । मुजीब के पास सदन में पूर्ण बहुमत था जिससे वो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन सकें लेकिन पाकिस्तान सेना समर्थित भुट्टो ने दावा किया कि वह पूरे पाकिस्तान के एकमेव प्रतिनिधि हैं । मुजीब ने अपने राजनीतिक अधिकारों के लिए वार्ताएं कीं लेकिन वार्ता असफल रही ।
जनरल याहया खान ने सैन्य शक्ति के आधार पर मुजीब की मांगों को प्रभावहीन करने का निर्णय किया । 1 मार्च , 1971 को याहया खान ने पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया । पश्चिमी पाकिस्तान की मंशा को भांपते हुए मुजीब ने 3 मार्च को हड़ताल करने की घोषणा कर दी।
इसके बाद सैकड़ों लोग मारे गए । 25 मार्च को अवामी लीग के कैडर पूर्वी पाकिस्तान की गलियों में उतर आए और याहया खान ने सैन्य दमन का रास्ता अपनाते हुए पूर्वी पाकिस्तान में ऑपरेशन सर्चलाइट चलाया । पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की निर्मम हत्याएं की गईं , महिलाओं का बलात्कार किया गया , और मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन पश्चिमी पाकिस्तान द्वारा किया गया। 3 लाख से अधिक लोग मारे गए । लगभग 10 मिलियन पूर्वी पाकिस्तानी शरणार्थी भाग कर भारत अा गए । इस मानवतावादी संकट की घड़ी में भारत ने पूर्वी पाकिस्तान को सहायता देने का निर्णय लिया ।
भारत ने अवामी लीग को समर्थन देने की घोषणा की और पूर्वी पाकिस्तान सीमा को खोल दिया , वहीं भारत के सीमा सुरक्षा बल ने भी सीमित स्तर पर पूर्वी पाकिस्तान के आजादी के आंदोलन में मदद दी।भारतीय नेतृत्व ने पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप ना करने का निर्णय किया लेकिन अपनी संलग्नता को बनाए रखने का निर्णय किया । भारतीय सेना के पूर्वी कमांड ने पूर्वी पाकिस्तान के अभियानों के लिए जिम्मेदारी संभाली और भारत ने मदद के लिए ऑपरेशन जैकपॉट की शुरुआत की जिसके तहत पाकिस्तानी सेना से युद्ध में लगे हुए पूर्वी पाकिस्तान के स्वतंत्रता सेनानियों की फौज मुक्तिवाहिनी सेना को भर्ती , प्रशिक्षण , वित्त सहायता और हथियार उपलब्ध कराने और अन्य आवश्यक रसद और उपकरण तथा परामर्श देने का कार्य भारतीय सेना द्वारा किया गया।
भारत ने बांग्लादेश के निर्माण के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक अभियान भी किए । एक तरफ जहां अमेरिका ने इस परिस्थिति में बंगाल की खाड़ी में यूएसएस एंटरप्राइज की तैनाती की वहीं भारत के समर्थक देश सोवियत संघ ने भी इससे निपटने के लिए युद्धक विमान भेजे ।
अंततः 16 दिसंबर, 1971 को भारत समर्थित मुक्तिवाहिनी सेना ने ढाका पर नियंत्रण स्थापित कर लिया और पूर्वी पाकिस्तान से बांग्लादेश नामक नया राष्ट्र अस्तित्व में आ गया। बांग्लादेश को एक पृथक और स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देने वाला भारत विश्व का पहला देश था और 1971 में भारत के सहयोग से बांग्लादेश के अस्तित्व में आने के बाद भारत ने उसी वर्ष उससे अपने कूटनीतिक संबंधों को स्थापित किया । दोनों देशों के संबंध सामरिक साझेदारी के भी ऊपर के माने जाते हैं।