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साइबर अपराधियों द्वारा ‘ब्लैकमेल’ और ‘डिजिटल अरेस्ट’ की घटनाओं के खिलाफ अलर्ट जारी:

देहरादून ( विवेक ओझा) : भारत सहित समूचे विश्व में डिजिटलाइजेशन के बढ़ने के साथ ही डिजिटल स्तर पर कई चुनौतियां भी उभर रही हैं। इन्हीं चुनौतियों में से एक है डिजिटल अरेस्ट जिसके मामले हाल के समय में बढ़ते हुए पाए गए हैं। ताजा मामला लखनऊ से हैं, जहां साइबर ठगों ने पीजीआई की महिला डॉक्टर को डिजिटल अरेस्ट कर करीब तीन करोड़ रुपये चपत लगा दी। साइबर ठगों ने डॉक्टर को 7 दिनों तक डिजिटल अरेस्ट बनाकर रखा जिसके बाद महिला डॉक्टर ने इसकी शिकायत साइबर क्राइम थाने में की है। पीजीआई की महिला डॉक्टर को उसके मोबाइल नंबर पर फोन आया, जिसमें ठग ने खुद को महिला को ट्राई (TRAI)अधिकारी बताया और कहा कि आपके रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर 22 शिकायतें दर्ज कराई गई हैं। इसे जल्द ही अब बंद कर दिया जाएगा। इसी दौरान उसने कहा कि आपसे सीबीआई अफसर राहुल गुप्ता बात करेंगे और इसके लिए स्काइप ऐप डाउनलोड कर लीजिए, जिसके बाद डर से महिला ने तुरंत स्काइप ऐप डाउनलोड कर लिया। इसके बाद राहुल गुप्ता ने सीबीआई अफसर बनकर महिला से कहा कि आपका नाम नरेश गोयल मनी लांड्रिंग केस में आया है। साथ ही आपका बैंक अकाउंट भी इस्तेमाल किया गया है, जिसका पैसा वूमेन और चाइल्ड ट्रैफिकिंग के लिए यूज किया गया है। कोर्ट के पास आपके खिलाफ सबूत भी हैं, जिसमें आपने अपने फोन पर उनसे बात भी की है। इसकी भी रिकॉर्डिंग कोर्ट के पास मौजूद है। इसके अलावा राजस्थान की राजधानी जयपुर में हाल ही में महिला बैंक मैनेजर को डिजिटल अरेस्ट कर जालसाजी की गई है। पिछले कुछ दिनों में राजस्थान, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में इससे जुड़े मामले सामने आए हैं।

क्या है डिजिटल अरेस्ट:

साइबर अरेस्ट एक नया तरीका है जिसके जरिए अपराधी लोगों को बंधक बना लेते हैं। खुद को पुलिस, सीबीआई, कस्टम या अन्य किसी एजेंसी का बड़ा अधिकारी बताकर धमकी देते हैं कि उनके खिलाफ कोई गंभीर प्रकरण दर्ज है। साइबर क्राइम करने वाले लोगों के बारे में पहले ही पूरी जानकारी जुटा लेते हैं और फिर गिरफ्तार करने की धमकी देते हैं। काफी देर तक वे लोगों को ऑनलाइन बंधक बनाकर अपने काबू में रखते हैं। डर के मारे व्यक्ति वही करता है जो साइबर क्रिमनल उसे निर्देश देते हैं। यही डिजिटल अरेस्ट कहलाता है, जिसमें अपने घर में होने के बावजूद भी व्यक्ति मानसिक और डिजिटल रूप में किसी अन्य के काबू में होता है।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल पर साइबर अपराधियों द्वारा पुलिस अधिकारियों, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI), नारकोटिक्स विभाग, भारतीय रिजर्व बैंक, प्रवर्तन निदेशालय और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियां का रूप धारण कर धमकी, ब्लैकमेल, जबरन वसूली और “डिजिटल अरेस्ट” जैसी वारदातों को अंजाम देने के संबंध में बड़ी संख्या में शिकायतें दर्ज की जा रही हैं।

ये धोखेबाज आमतौर पर संभावित पीड़ित को कॉल करते हैं और कहते हैं कि पीड़ित ने कोई पार्सल भेजा है या प्राप्त किया है जिसमें अवैध सामान, ड्रग्स, नकली पासपोर्ट या कोई अन्य प्रतिबंधित वस्तु है। कभी-कभी, वे यह भी सूचित करते हैं कि पीड़ित का कोई करीबी या प्रिय व्यक्ति किसी अपराध या दुर्घटना में शामिल पाया गया है और उनकी हिरासत में है। ऐसे कथित “केस” में समझौता करने के लिए पैसे की मांग की जाती है। कुछ मामलों में, पीड़ितों को “डिजिटल अरेस्ट” का सामना करना पड़ता है और उनकी मांग पूरी न होने तक पीड़ित को स्काइप या अन्य वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफॉर्म पर धोखेबाजों के लिए उपलब्ध रहने पर मजबूर किया जाता है। ये जालसाज़ पुलिस स्टेशनों और सरकारी कार्यालयों की तर्ज पर बनाए गए स्टूडियो का उपयोग करने में माहिर होते हैं और असली दिखने के लिए वर्दी पहनते हैं।

देशभर में कई पीड़ितों ने ऐसे अपराधियों के जाल में फंस कर बड़ी मात्रा में धन गंवाया है। यह एक संगठित ऑनलाइन आर्थिक अपराध है और ऐसा माना जाता है कि इसे सीमापार आपराधिक सिंडिकेट द्वारा संचालित किया जाता है। गृह मंत्रालय के तहत भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C), देश में साइबर अपराध से निपटने से संबंधित गतिविधियों का समन्वय करता है। गृह मंत्रालय इन साइबर अपराधों से निपटने के लिए अन्य मंत्रालयों और उनकी एजेंसियों, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और अन्य संगठनों के साथ मिलकर काम कर रहा है। I4C ऐसे मामलों की पहचान और जांच के लिए राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के पुलिस अधिकारियों को इनपुट और तकनीकी सहायता भी प्रदान कर रहा है।

I4C ने माइक्रोसॉफ्ट के सहयोग से ऐसी गतिविधियों में शामिल 1,000 से अधिक स्काइप आईडी को भी ब्लॉक कर दिया है। यह धोखेबाजों द्वारा उपयोग किए जाने वाले सिम कार्ड, मोबाइल उपकरणों और म्यूल खातों को ब्लॉक करने में भी मदद कर रहा है। I4C ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘Cyberdost’ पर इन्फोग्राफिक्स और वीडियो के माध्यम से विभिन्न अलर्ट भी जारी किए हैं, जैसे कि X, फेसबुक, इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स।नागरिकों को इस प्रकार की जालसाज़ी से सावधान रहने और इनके बारे में जागरुकता फैलाने की सलाह दी जाती है। ऐसी कॉल आने पर नागरिकों को तत्काल साइबरक्राइम हेल्पलाइन नंबर 1930 या www.cybercrime.gov.in पर सहायता के लिए इसे रिपोर्ट करना चाहिए।

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