विवेक ओझा

टू प्लस टू डायलाग के जरिए मजबूत होते भारत जापान द्विपक्षीय संबंध

देहरादून ( विवेक ओझा) : भारत और जापान के बीच मजबूत सामरिक, आर्थिक, प्रतिरक्षा संबंध हैं और दोनों देशों द्वारा द्विपक्षीय संबंधों को नए सिरे से मजबूती देना दोनों ही देशों की जरूरत है। इसलिए भारत और जापान के बीच हाल ही में नई दिल्ली में टू प्लस टू डायलाग का आयोजन किया गया जिसमें भारत और जापान के रक्षा मंत्रियों और विदेश मंत्रियों ने महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की। जापान की तरफ से रक्षा मंत्री मिनोरू किहारा तथा विदेश मंत्री योको कामिकावा ने इस वार्ता में भाग लिया। यह भारत और जापान के बीच तीसरा टू प्लस टू डायलाग था। इस साल दोनों देशों के ग्लोबल स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप के 10 साल भी पूरे हुए हैं। इससे पहले दोनों देशों ने सितंबर 2022 में टोक्यो में टू प्लस टू डायलाग किया था। तीसरे टू प्लस टू डायलाग में दोनों देशों ने फ्री एंड ओपन इंडो पैसिफिक पर विशेष ध्यान केंद्रित किया।

चीन जिस तरह से पूर्वी चीन सागर में जापान के द्वीप पर अपना दावा करता है ऐसे दावों के खिलाफ़ वैश्विक माहौल बनाने के लिए जापान को भारत का साथ चाहिए। वहीं दोनों देशों के हित साउथ चाइना सी से भी जुड़े हैं। दोनों देश आतंकवाद के खात्मे के लिए मिल जुल कर कार्य करने के प्रति प्रतिबद्ध है। इस कड़ी में भारत जापान के बीच धर्म गार्जियन, वीर गार्जियन, शिन्यू मैत्री जैसे संयुक्त सैन्य और वायु सैन्य अभ्यासों का आयोजन किया जा रहा है। क्वाड और मालाबार अभ्यास जैसे मंचों पर सहयोग को और बढ़ाने पर भी चर्चा दोनों देशों ने की है।

विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने कहा कि बैठक में रक्षा और सुरक्षा के संबंध में सार्थक दृष्टिकोण साझा किये गए। उन्‍होंने कहा कि पिछले दो वर्षों में भारत और जापान से जुडे क्षेत्रीय और वैश्विक परिदृश्‍य काफी कुछ एक दूसरे से जुडे हैं। उन्‍होंने कहा कि उथल पुथल भरे मौजूदा वैश्विक हालात में दोनों देशों के लिए विश्वसनीय साझेदारों की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि टू प्‍लस टू मंत्रिस्‍तरीय वार्ता दोनों देशों के बीच सहयोग बढाने का एक सुअवसर रही। उन्‍होंने इस अवसर पर जापान के फुकुओका में जल्‍द ही भारतीय वाणिज्‍य दूतावास खोले जाने की घोषणा की। उल्लेखनीय है कि भारत के रक्षा सचिव और जापान के उप रक्षा मंत्री के बीच रक्षा नीति वार्ता (डीपीडी) भी अप्रैल 2023 में आयोजित की गई थी।

भारत जापान द्विपक्षीय संबंधों का अवलोकन:

भारत और जापान के मध्य ऐतिहासिक , सांस्कृतिक और सभ्यताओं के संपर्क के स्तर पर मजबूत संबंध रहे हैं । बौद्ध धर्म दर्शन ने दोनों देशों के संबंधों को पारंपरिक रूप में एक नई ही दिशा दी। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान कई भारतीय बुद्धिजीवियों जैसे विवेकानंद , रविन्द्र नाथ टैगोर , सुभाष चन्द्र बोस और न्यायाधीश राधा विनोद पाल आदि द्वारा जापान से किए गए अंतर्संपर्कों के फलस्वरूप दोनों देशों के संबंधों में प्रगति हुई । द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत जापान को मित्र राष्ट्रों के समक्ष आत्मसमर्पण करना पड़ा जिसके बाद उसकी अर्थव्यवस्था पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा ।

वर्ष 1949 में भारतीय प्रधानमंत्री ने जापान के टोक्यो चिड़ियाघर को एक हाथी उपहारस्वरूप दिया गया । ऐसा करके भारत जापान के पर्यटन को प्रतीकात्मक रूप से बढ़ावा देना चाहता था । इसी क्रम में वर्ष 1952 में भारत और जापान के कूटनीतिक संबंध स्थापित किए गए। वर्ष 1958 से जापान ने भारत को अपनी येन मुद्रा में ऋण देना शुरू किया था। जापान ने भारत को आधिकारिक विकास सहायता ( अपनी जीडीपी का एक निश्चित भाग सहायता के रूप में ) भी देना शुरू किया । भारत जापान के आधिकारिक विकास सहायता का सबसे बड़ा प्राप्त कर्ता देश है।

भारत जापान राजनीतिक , कूटनीतिक और सामरिक संबंध :वर्ष 2000 में भारत और जापान के बीच ग्लोबल पार्टनरशिप स्थापित किया गया । वैश्विक मुद्दों पर सहयोग और साझेपन के साथ कार्य करने की इस भारतीय जापानी कार्य संस्कृति की शुरुआत भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई और जापानी प्रधानमंत्री योशिरो मोरी ने किया था। वर्ष 2006 में दोनों देशों के संबंधों को एक कदम आगे ले जाते हुए ” वैश्विक और सामरिक साझेदारी ” में बदल दिया गया । 2014 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जापान यात्रा के दौरान दोनों देश इस बात पर सहमत हुए कि उनके बीच “विशेष सामरिक और वैश्विक साझेदारी ” केंद्रित संबंध रहे ।

2015 में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा एक्ट ईस्ट पॉलिसी की शुरुआत की गई जिसका उद्देश्य एशिया प्रशांत क्षेत्र में शांति , स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देना था । इस पॉलिसी में दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ सहयोग के अलावा एशिया पैसिफिक के अन्य देशों के साथ सहयोग , समन्वय पर बल दिया गया । इस पॉलिसी के एक अपरिहार्य हिस्से के रूप में भारत ने जापान की पहचान की और यही कारण है कि वर्ष 2015 में दोनों देशों ने “जापान भारत विजन 2025 विशेष सामरिक और वैश्विक साझेदारी ” की घोषणा की जिसका मुख्य उद्देश्य हिन्द प्रशांत क्षेत्र और विश्व में शांति और समृद्धि के लिए काम करना है ।

2016 में जापानी प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि भारत जापान संबंध का नया युग शुरू हो चुका है । आपसी संबंधों को मजबूती देने के इन क्रमिक प्रयासों के पिछे दोनों देशों के साझे और व्यक्तिगत हित दोनों ही छिपे हुए हैं । इसमें सबसे बड़ा कारण एशिया को एक ध्रुवीय अर्थव्यवस्था की चाह रखने वाले चीन को प्रतिसंतुलित करने की जरूरत है। भारत की मजबूत नौसैनिक शक्ति को देखते हुए जापान का भारत की तरफ रुझान होना स्वाभाविक भी है । आज भारत दुनिया भर के देशों के साथ संयुक्त नौसैनिक , सैन्य और वायु सेना अभ्यास के जरिए महाशक्तियों को भरोसा दिलाने में सफल हुआ है कि समुद्री सुरक्षा , समुद्री व्यापार में भारत की भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता । हाल के समय में रूस द्वारा भारत के साथ मिलकर दक्षिण चीन सागर में एक वैकल्पिक समुद्री व्यापारिक मार्ग खोलने की बात इस बात का प्रमाण है ।

अमेरिका की विश्व राजनीति में चौतरफा चुनौतियों के झेलने और उससे उत्पन्न शक्ति शून्यता को भारत एक बड़ी क्षेत्रीय एशियाई देश के रूप में कुछ हद तक भरने की क्षमता रखता है । जापान को ऐसा लगता है और यह महत्तवपूर्ण बात है कि जापान अभी तक अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश पर ही रणनीतिक महत्व के मामलों पर विश्वास कर पाया है । भारत भी उसके लिए एक अति विश्वसनीय मित्र है । जापान को इस बात का भी भरोसा है कि भारत दक्षिण पूर्वी एशिया में सुरक्षा प्रदाता की भूमिका निभा सकता है और वास्तव में भारत ने फिलीपींस और चीन के विवाद में फिलीपींस का साथ देकर , वियतनाम के अधिकारों की बात कर , म्यांमार में विकासात्मक गतिविधियों पर बल देकर इस बात को सिद्ध भी किया है। 2012 में जापान ने पहली बार इंडियन ओशन नेवल सिम्पोजियम में भाग लिया और हिंद महासागर की सुरक्षा के प्रति अधिक संवेदनशील हुआ । इसके बाद भारत जापान ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के बीच मालाबार संयुक्त नौसैनिक अभ्यास के जरिए प्रतिरक्षा संबंधों को बढ़ावा मिला।

जापान एक मात्र विदेशी शक्ति है जिसे भारत के संवेदनशील उत्तर पूर्वी क्षेत्र में अवसंरचनात्मक विकास की परियोजनाओं को चलाने की मंजूरी मिली है। इसके लिए 2017 में भारत और जापान ने मिलकर एक्ट ईस्ट फोरम का गठन किया है जिसका मुख्य उद्देश्य जापान द्वारा उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों में अवसंरचनात्मक विकास के लिए निवेश को बढ़ावा देना है।

भारत और जापान ने चीन के मोतियों की लड़ी की नीति के जवाब में एशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर की शुरुआत का फैसला 2019 में किया था जो भारत और जापान की एक महत्वाकांक्षी सामुद्रिक अंतरसंपर्क पहल है ।

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