विवेक ओझाहिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश में आर्थिक संकट का जिम्मेदार कौन: आपदा, कर्ज या फ्रीबीज

देहरादून ( विवेक ओझा) : हिमाचल प्रदेश एक गंभीर आर्थिक संकट से घिर गया है। यह संकट सरकारी कर्मचारियों को समय पर वेतन न भुगतान करने से जुड़ा है। वेतन के साथ ही पेंशन का भी समय पर भुगतान नही किया जा सका है। सितंबर माह के 4 दिन गुजर जाने के बाद भी हिमाचल प्रदेश के 2 लाख से ज्यादा सरकारी कर्मचारियो की सैलरी नहीं आई और ऐसा पहली बार हुआ है कि सरकारी कर्मचारियो को महीने की शुरुआत में सैलरी नहीं मिली है। ऐसा माना जा रहा है कि हिमाचल सरकार अपने सरकारी कर्मचारियों को 10 सितंबर तक ही सैलरी खातों में क्रेडिट कर पाएगी । ऐसा इसलिए है कि सरकार के पास वेतन भुगतान के लिए पैसा नही बचा है और अब राज्य सरकार अन्य वैकल्पिक इंतजाम में लगी है कि इस आर्थिक चुनौती से बाहर निकले क्योंकि पूरे देश में हिमाचल प्रदेश की इस अवांछनीय स्थिति की चर्चा हो रही है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि राज्य सरकार का खजाना खाली हो गया और वह बेबस होकर संसाधनो के इंतजाम हो जाने का इंतजार कर रही है। सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या राज्य सरकार की आय, जीडीपी, ऋण लेने की क्षमता सब कुछ कैसे डावाडोल हो गई। हिमाचल सरकार द्वारा सितंबर माह की सैलरी के भुगतान न करने के चलते हजारों कर्मचारियों की बैंक लोन की ईएमआई लैप्स हो गई है और इससे उन्हें बैंक डिफाल्टर घोषित कर देगा और उनके सिविल स्कोर पर असर पड़ सकता है।

सरकारी कर्मचारी इसको लेकर चिंतित हैं। शिमला में वन विभाग के एक कर्मचारी ने सोशल मीडिया पर अपने खाते का स्क्रिन शॉट शेयर करते हुए लिखा है कि पहली बार ऐसा हुआ है कि उनका खाता जीरो हो गया है। उन्होंने लिखा कि हर महीने की एक तारीख को मेरे जीवन का सबसे पहला अनुभव है , खाते में 40000 रुपये थे लेकिन बैंक की आईएमआई 45000 है। बैंक ने 40000 होल्ड कर दिए और आज खाते में पहली बार वेतन नहीं आया। उनके खाते में अब बैलेस जीरो हो गया है।

क्या वजह है समय पर सैलरी न दे पाने की : वैसे तो हिमाचल प्रदेश सरकार प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन में लगे पैसे और केंद्र से वित्तीय सहायता आदि न मिलने को अपने आर्थिक संकट की मूल वजह बता रही है लेकिन यदि हिमाचल की आर्थिक स्थिति, उसके राजनीतिक मंसूबों की तह में जाए तो पता लगता है कि राजनीतिक वादों को निभाने के लिए किए गए खर्चों ने हिमाचल की आर्थिकी की कमर तोड़ कर रख दी है। 2022 के चुनाव में सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस ने कई बड़े वादे किए थे। सरकार में आने के बाद इन वादों पर बेतहाशा खर्च किया गया और अभी भी किया जा रहा है। हिमाचल सरकार के बजट का 40 फीसदी तो सैलरी और पेंशन देने में ही चला जाता है। लगभग 20 फीसदी कर्ज और ब्याज चुकाने में खर्च हो जाता है। कर्मचारियों और पेंशनर्स का सरकार पर 10 करोड़ रुपए बकाया है। वहीं विपक्षी खेमे का कहना है कि आपदा के साथ-साथ ओल्ड पेंशन स्कीम, 350 यूनिट मुफ्त बिजली योजना, कर्ज की लिमिट ज्यादा होना, ओवर ड्राफ्ट लिमिट का भी इस्तेमाल कर लेना और महिलाओं के लिए 1500 रुपए प्रतिमाह की योजना चलाने का असर सरकार के बजट पर पड़ा है। इसलिए हिमाचल प्रदेश इस समय सिर्फ प्राकृतिक ही नहीं आर्थिक आपदा का भी सामना कर रहा है।

स्थिति इतनी दयनीय है कि राज्य के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और मंत्रिमंडल के सदस्यों ने भी 2 महीने तक अपने वेतन-भत्ते नहीं लेने का ऐलान किया है। हिमाचल प्रदेश सरकार के खाते में फिलहाल, इतना पैसा नहीं है कि सरकारी कर्मचारियों को सैलरी दी जा सके।

राज्य सरकार के ऊपर 86,000 करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है। केंद्र ने राजस्व घाटा अनुदान और लोन लिमिट में कटौती की है। वित्त वर्ष में रिवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में 1800 करोड़ की कटौती की गई है और अगले साल यह रकम 3000 करोड़ रुपए हो जाएगी। वहीं हिमाचल में ओल्ड पेंशन योजना की वजह से एनपीएस कंट्रीब्यूशन के बदले मिलने वाला 2000 करोड़ लोन नहीं मिला है। दिसंबर 2024 तक राज्य सरकार के पास 6200 करोड़ की लोन लिमिट थी लेकिन इसमें 3900 करोड़ रुपये लिया जा चुका है और अब सिर्फ 2300 करोड़ लोन लिमिट बची है। अगस्त माह के लिए 1000 करोड़ लोन नोटिफाई किया था, लेकिन 500 करोड़ ही वित्त विभाग ने लिया था। अगले 4 महीने भी इसी तरह रहेंगे, ऐसे में अब सैलरी की तारीख आगे बढ़ सकती है। गौरतलब है कि हिमाचल में प्रति नागरिक औसत कर्ज 1 लाख 19 हजार रुपए है, जोकि अरुणाचल के बाद देश में सबसे ज्यादा है। सरकार के बजट का ज्यादातर हिस्सा, सैलरी-पेंशन और कर्ज अदायगी पर खर्च हो जाता है यानी 58 हजार 444 करोड़ में से 42 हजार करोड़ से ज्यादा इसी मद में खर्च होते हैं वहीं सरकार पर कर्मचारियों और पेंशन भोगियों का 10 हजार करोड़ से ज्यादा का बकाया है।

कर्ज की वजह मुफ्त की रेवड़ियां बांटना तो नही: भारत में कई राज्य सरकारों को फ्रीबीज यानी मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की आदत लग गई है। उन्हें ये तरीका चुनाव जीतने के लिए सबसे सरल लगता है लेकिन इससे राज्य सरकार पर पड़ने वाले वित्तीय बोझ पर ध्यान न देने के कारण स्थिति और खस्ताहाल हो जाती है। हिमाचल में यह विशेष रूप से देखा गया है। मुफ्त की योजनाएं जैसे 350 यूनिट मुफ्त बिजली के फ्रीबीज से राज्य पर 18000 करोड़ के बोझ का अनुमान है। महिलाओं को 1500 रुपए हर महीने मदद देने से भी सरकारी खजाने पर खासा बोझ पड़ा है। इसका ये मतलब नही है कि महिलाओं को वित्तीय सहायता नही देनी है बल्कि राजनीतिक मंसूबों को पूरा करने के लिए कभी भी बिना जरूरत के भी ऐसी वित्तीय बोझ वाली योजनाएं भी नहीं शुरू कर देनी चाहिए। हिमाचल में जीएसटी रिइंबर्समेंट बंद हो चुका है, वाटर सेस को कोर्ट असंवैधानिक बता चुका है इससे भी करीब 4000 करोड़ की आमदनी बंद हो गई, तो वहीं आपदा भी एक वजह है। हिमाचल में करीब ढाई साल पहले आई कांग्रेस सरकार लगातार कर्ज में डूब रही है। इस तरह हिमाचल के आर्थिक संकट की वजह सरकार की तरफ से बांटी जा रही फ्रीबीज को जिम्मेदार माना जा रहा है। ढाई साल पहले हुए विधानसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस ने मुफ्त की कई योजनाओं का वादा किया था।

सरकार बनने पर इन वादों को पूरा किया, जिसने कर्जा और बढ़ा दिया। हिमाचल सरकार को और झटका तब लगा जब केंद्र सरकार ने कर्ज लेने की सीमा को और कम कर दिया। पहले हिमाचल सरकार अपनी जीडीपी का 5 फीसदी तक कर्ज ले सकती थी, लेकिन अब 3.5 फीसदी तक ही कर्ज ले सकती है, यानी, पहले राज्य सरकार 14,500 करोड़ रुपये तक उधार ले सकती थी, लेकिन अब 9 हजार करोड़ रुपये ही ले सकती है। आरबीआई की रिपोर्ट बताती है कि हिमाचल पर पांच साल में 30 हजार करोड़ रुपये का कर्ज बढ़ा है। अभी 86 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है जो लगातार बढ़ ही रहा है। हिमाचल में हर व्यक्ति पर 1.17 लाख रुपये का कर्ज हैउधर, पूरे मामले पर जमकर सियासत भी हो रही है। हिमाचल विधानसभा के सत्र के दौरान सीएम सुक्खू ने इस वित्तीय संकट के लिए पूर्व की भाजपा सरकार को दोषी ठहराया है और कहा कि उन्होंने मुफ्त की योजनाएं शुरू की और इसका खामियाजा अब भुगतना पड़ रहा है। भाजपा नेता और पूर्व सीएम जयराम ठाकुर ने भी सरकार को इस मसले पर घेरते हुए कहा कि मुख्यमंत्री प्रदेश के कर्मचारियों को बताएं कि कब तक कर्मचारियों का वेतन उनके खाते में आएगा । अब ये लग रहा है कि केंद्र सरकार से राजस्व घाटा अनुदान के 490 करोड़ रुपए मिलने के बाद ही वेतन और पेंशन का भुगतान होगा। हालांकि बिजली बोर्ड के कर्मचारियों और पेंशनरों को वेतन व पेंशन दे दी गई है।

क्या है हिमाचल सरकार के पास विकल्प : हिमाचल प्रदेश सरकार के पास अपने सरकारी कर्मचारियों को सैलरी देने का पहला विकल्प है कि लोन लिमिट पूरी खर्च कर दी जाए, लेकिन ये विकल्प सरकार इस्तेमाल नहीं करना चाहेगी क्योंकि आपातकाल में इसकी जरूरत पड़ सकती है। दूसरा विकल्प है, ओवरड्राफ्ट अकाउंट से पैसे दे दिए जाएं, लेकिन उसमें इतने पैसे नहीं हैं। तीसरा विकल्प, 5 सितंबर तक केंद्र से मिलने वाला रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट जो 6 हजार करोड़ से ज्यादा है, तो सरकार इसमें से सैलरी दे सकती है। गौरतलब है कि राज्यों के घटते राजस्व में इजाफे के लिए एन.के. सिंह की अगुआई वाले 15वें वित्त आयोग ने राज्यों को संपत्ति कर में धीरे-धीरे बढ़ोतरी, पानी जैसी विभिन्न सरकारी सेवाओं का शुल्क नियमित तौर पर बढ़ाने के साथ शराब पर उत्पाद कर बढ़ाने और स्थानीय निकायों तथा खाता-बही में सुधार करने की सलाह दी है। जबकि आरबीआई के पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव ने मीडिया में एक लेख में लिखा था, ‘चाहे निजी कंपनी हो या सरकार, आदर्श तो यही है कि किसी कर्ज का भुगतान भविष्य में राजस्व पैदा करके खुद करना चाहिए। दूसरी तरफ, अगर कर्ज की रकम मौजूदा खपत में खर्च की जाती है और भविष्य की वृद्धि पर कोई असर नहीं होता, तो हम कर्ज भुगतान का बोझ अपने बच्चों पर डाल रहे हैं। इससे बड़ा पाप और कुछ हो नहीं सकता।

आरबीआई राज्यों के ऋण जाल पर दे चुका है चेतावनी: जून 2022 में आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में श्रीलंका के आर्थिक संकट का उदाहरण देते हुए सुझाव दिया है कि राज्य सरकारों को अपने कर्ज में स्थिरता लाने की जरूरत है, क्योंकि कई राज्यों के हालात अच्छे संकेत नहीं हैं। आरबीआई का सुझाव है कि सरकारों को गैर-जरूरी जगहों पर पैसा खर्च करने से बचना चाहिए और अपने कर्ज में स्थिरता लानी चाहिए। इसके अलावा बिजली कंपनियों को घाटे से उबारने की जरूरत है। इसमें सुझाव दिया गया है कि सरकारों को पूंजीगत निवेश करना चाहिए, ताकि आने वाले समय में इससे कमाई हो सके। हिमाचल जैसे अन्य राज्यो के आर्थिक संकट के लिए फ्रीबीज कहां तक जिम्मेदार: हाल के समय में देखा गया है कि राज्य सरकारों पर कर्जा लगातार बढ़ता जा रहा है। सरकारें सब्सिडी के नाम पर फ्रीबीज पर बेतहाशा खर्च कर रही हैं। आरबीआई की एक रिपोर्ट बताती है कि राज्य सरकारों का सब्सिडी पर खर्च लगातार बढ़ रहा है। राज्य सरकारों ने सब्सिडी पर कुल खर्च का 11.2% खर्च किया था, जबकि 2021-22 में 12.9% खर्च किया था। जून 2022 में ‘स्टेट फाइनेंसेसः अ रिस्क एनालिसिस’ नाम से आई आरबीआई की इस रिपोर्ट में कहा गया था कि अब राज्य सरकारें सब्सिडी की बजाय मुफ्त ही दे रही हैं। सरकारें ऐसी जगह खर्च कर रही हैं, जहां से कोई कमाई नहीं हो रही है। आरबीआई के मुताबिक, 2018-19 में सभी राज्य सरकारों ने सब्सिडी पर 1.87 लाख करोड़ रुपये खर्च किए थे। ये खर्च 2022-23 में बढ़कर 3 लाख करोड़ रुपये के पार चला गया था। इसी तरह से मार्च 2019 तक सभी राज्य सरकारों पर 47.86 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था, जो मार्च 2024 तक बढ़कर 75 लाख करोड़ से ज्यादा हो गया। मार्च 2025 तक ये कर्ज और बढ़कर 83 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा होने का अनुमान है। पिछले साल आरबीआई ने चेतावनी दी थी कि गैर-जरूरी चीजों पर खर्च करने से राज्यों की आर्थिक स्थिति बिगड़ सकती है. इस रिपोर्ट में आरबीआई ने चेताया था कि अरुणाचल प्रदेश, बिहार, गोवा, हिमाचल, केरल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान और पश्चिम बंगाल पर आर्थिक खतरा मंडरा रहा है। आरबीआई का कहना है कि कुछ राज्य ऐसे हैं, जिनका कर्ज 2026-27 तक सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 30% से ज्यादा हो सकता है। इनमें पंजाब की हालत सबसे खराब होगी। उस समय तक पंजाब सरकार पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 45% से ज्यादा कर्ज हो सकता है, वहीं, राजस्थान, केरल और पश्चिम बंगाल का कर्ज सकल राज्य घरेलू उत्पाद के 35% तक होने की संभावना है। ज्यादा कर्ज होने से पैसा सही जगह पर खर्च नहीं हो पाता। सरकारें ऐसे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट पर पैसा खर्च नहीं कर पाती, जिससे भविष्य में आमदनी हो सके। उदाहरण के लिए पंजाब अपने कुल खर्च का 22 फीसदी से ज्यादा ब्याज चुकाने में खर्च कर देता है। हिमाचल का भी 20 फीसदी खर्च ब्याज और कर्ज चुकाने में चला जाता है। इससे कैपिटल एक्सपेंडिचर में कमी आ जाती है। इसलिए तार्किक रूप से सोचते हुए खर्चों का उचित प्रबंधन समय की मांग है। बेतहाशा ऋण लेने की जरूरत नही है और जो भी ऋण लिए जाए उनका प्रयोग करते समय इस बात का ध्यान भी रखा जाना जरूरी है कि उससे नई परिसंपत्तियों का सृजन हो।

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