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विनोबा भावे की जयंती पर उनके जीवन और कार्यों से जुड़े महत्वपूर्ण आयाम

नई दिल्ली ( दस्तक ब्यूरो) : विनोबा भाबे का व्यक्तित्व और और कार्यशैली आधुनिक भारत के इतिहास में रुचि रखने वाले किसी व्यक्ति से छिपी नही है। रेमन मैग्सेसे पुरस्कार ( 1958) प्राप्त करने वाले वे पहले अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय व्यक्ति थे। उनकी भूमिका भारत के लिए ऐसी थी कि उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था। आज उन्हीं विनोबा भावे की जयंती है। विनायक नरहरि भावे जिन्हें हम विनोबा भावे के नाम से जानते हैं, का जन्म 11 सितंबर, 1895 को गागोडे, बॉम्बे प्रेसीडेंसी (वर्तमान महाराष्ट्र) में हुआ था। वे नरहरि शंभू राव और रुक्मिणी देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे। उन पर उनकी माँ का अत्यधिक प्रभाव था, इसी कारण वह उनसे ‘गीता’ पढ़ने के लिये प्रेरित हुए। वे भारत के सबसे प्रसिद्ध समाज सुधारकों में से एक और महात्मा गांधी के एक व्यापक रूप से सम्मानित शिष्य थे।

बिनोबा भावे 1916 में महात्मा गांधी के कोचरब आश्रम गए, जो अहमदाबाद में है। इसके बाद उन्होंने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिया, लेकिन पढ़ाई जारी रखी और गीता, रामायण, कुरान, बाइबिल जैसे कई धार्मिक ग्रंथों के साथ ही राजनीति, अर्थशास्त्र जैसे कई आधुनिक सिद्धांतों का अध्ययन किया तब उनकी उम्र सिर्फ 21 साल थी। उन्होंने महात्मा गांधी की अगुवाई में, 1920 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और देशवासियों से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर, स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने की अपील की। उन्होंने गांधी जी को अपना राजनीतिक और आध्यात्मिक गुरु बना लिया था।अहिंसा व मानवाधिकारों की वकालत करने वाले विनोबा को ‘आचार्य’ की उपाधि भी मिली थी।

गांधी जी, विनोबा भावे से काफी प्रभावित थे और उन्होंने भावे को 1921 में अपने वर्धा आश्रम को संभालने की जिम्मेदारी दे दी। यहीं से उन्होंने ‘महाराष्ट्र धर्म’ नाम से एक मासिक पत्रिका भी निकाली, जो मराठी में प्रकाशित होती थी। इस पत्रिका के जरिए वह लोगों तक वेद और उपनिषद के संदेश पहुंचाते थे।

भूदान आंदोलन के सूत्रधार थे विनोबा: वर्ष 1951 में तेलंगाना के पोचमपल्ली (Pochampalli) गाँव के हरिजनों ने उनसे जीविकोपार्जन के लिये लगभग 80 एकड़ भूमि प्रदान कराने का अनुरोध किया। विनोबा ने गाँव के ज़मींदारों को इस आंदोलन में आगे आने और हरिजनों की सहायता करने के लिये कहा। उसके बाद एक ज़मींदार ने आगे बढ़कर आवश्यक भूमि प्रदान करने की पेशकश की। इस घटना ने बलिदान और अहिंसा के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया। यह भूदान (भूमि का उपहार) आंदोलन की शुरुआत थी।

यह आंदोलन 13 वर्षों तक जारी रहा और इस दौरान विनोबा भावे ने देश के विभिन्न हिस्सों (कुल 58,741 किलोमीटर की दूरी) का भ्रमण किया। वह लगभग 4.4 मिलियन एकड़ भूमि एकत्र करने में सफल रहे, जिसमें से लगभग 1.3 मिलियन को गरीब भूमिहीन किसानों के बीच वितरित किया गया। इस आंदोलन ने दुनिया भर से प्रशंसको को आकर्षित किया तथा स्वैच्छिक सामाजिक न्याय को जागृत करने हेतु इस तरह के एकमात्र प्रयोग के कारण इसकी सराहना की गई।

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