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विश्व को अपनी ओर खींच रहा असम का ‘मायंग’

तंत्र-मंत्र की शक्ति से समस्याओं का निकलता है समाधान

संजीव कलिता

‘मायंग’- माना जाता है कि इस नाम की उत्पत्ति माया (भ्रम) शब्द से हुई है। असम के मोरीगांव जिले में ब्रह्मपुत्र के तट पर स्थित मायंग एक ऐसी भूमि के रूप में प्रसिद्ध है जहां सदियों से जादूगरों का बोलबाला रहा है। सटीक रूप से कहें तो जादूगरों का बोलबाला कई दशक पहले खत्म हो गया लेकिन विरासत अभी भी जीवित है। अतीत के अविस्मरणीय संकेत आज भी मायंग के जादुई मंत्रों के एक संग्रहालय में सुरक्षित रखे गए हैं जिनमें चट्टानों पर लिखे शिलालेख, दीवारों पर उकेरे गए चित्र, हिंदू देवताओं की मूर्तियां और पांडुलिपियों में लिखे मंत्रों का खजाना शामिल है। मायंग के हर घरों में भी पीढ़ियों से ऐसे अनमोल अतीत के जादूई रहस्य पाए जाते हैं।

असम के मोरीगांव जिले के मायंग के पास ही स्थित पोबितरा वन्यजीव संग्रहालय एक सींग वाले गैंडे के लिए प्रसिद्ध है। विश्वविख्यात काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) की ही तरह यहां भी देशी-विदेशी पर्यटक एक सींग वाले गैंडा सहित अन्य वन्यजीवों को देखने हर साल आते रहते हैं। पोबितरा वन्यजीव अभयारण्य के रास्ते में मायंग से होकर गुजरने वाले पर्यटक भी अतीत के इन अवशेषों को देखने के लिए रुकते हैं। मायंग की इस ऐतिहासिक परंपरा को जीवित रखने तथा इसकेप्रचार-प्रसार के लिए निरंतर जुझ रहे डॉ. उत्पल कुमार नाथ बताते हैं कि इस समृद्ध विरासत के बारे में जानने तथा इस पर शोध करने के लिए अब धीरे-धीरे देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग आने लगे हैं। यही नहीं, मायंग में सनातनी पद्धति से झाड़-फूंक के जरिए लोगों की तमाम समस्याओं का हल भी दिया जाने लगा है। चीन और कुछ देशों को छोड़कर विश्व के विभिन्न हिस्सों खासकर यूरोपियन देशों के लोग भी अपनी निजी जिंदगी की विभिन्न समस्याओं का हल खोजने मायंग आने लगे हैं। मायंग की झाड़-फूंक का नतीजा देख वे दंग भी रह गए हैं।

मायंग के एक स्थानीय पत्रकार नजरुल इस्लाम को दिए एक साक्षात्कार में मायंग के प्रख्यात तांत्रिक (स्थानीय रूप से ‘बेज’ कहा जाता है) तथा वयोवृद्ध प्रवीण सइकिया कहते हैं कि वे खुद को बेज अथवा तांत्रिक नहीं समझते हैं। जो भी वे जानते हैं, उसे करते हैं। विभिन्न तकलीफों से परेशान लोग जब उनके पास आते हैं और जादुई उपचार का चमत्कारिक लाभ मिलने की बात करते हैं तो उन्हें अच्छा लगता है। प्रवीण सइकिया अपनी मां सेनेही सइकिया को ही अपना गुरु मानते हैं। अतीत के पन्नों को पलटते हुए प्रवीण सइकिया कहते हैं कि शायद तब मैं 22/23 साल का था। सन 1968 के उस समय मायंग के हर घर में तंत्र-मंत्र करने वाले अनेकों लोग हुआ करते थे। पिताजी, मां और मौसा जी भी तंत्र-मंत्र का काम जानते थे। उन्हीं से मंत्रों को सुन-सुनकर मैंने भी इस विद्या को सीख लिया।

हाल ही में गुवाहाटी में इस पत्रकार के साथ हुई एक भेंट के दौरान जादुई देश मायंग से जुड़ी ऐसी कई वाकयों के बारे में श्री सइकिया ने हमें बताया जिसे सुन हम दंग रह गए। बकौल श्री सइकिया, हमारे चाचा-चाची के औलाद नहीं थे। बच्चा पैदा होने के पांचवे दिन में ही मर जाते थे। एक दिन मां ने मुझसे कहा, चाचा की ओर से कोई संतान नहीं है। तुम तंत्र-मंत्र से कुछ करने की कोशिश क्यों नहीं करते? फिर मैंने झाड़-फूंक करना शुरू किया और अंतत: चाचा-चाची को संतान सुख प्राप्त हुआ। पहली बार में मिली इस सफलता से मैं भी बहुत खुश हुआ। उसके बाद मौसा के परिवार में भी तंत्र-मंत्र के जरिए एक संतान लाने में मेरी भूमिका रही। अब भी वैसे दंपत्ति मेरे पास आते रहते हैं। मैं रुपए-पैसे के लिए यह सब नहीं करता हूं। लेकिन लोग खुश होकर कुछ दे जाते हैं सम्मान के तौर पर। मैंने अब तक इसे अपना पेशा नहीं बनाया है। श्री सइकिया के अनुसार उनके घर में रोज 30 से 100 लोग पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, तमिलनाडु, केरल, गुजरात, पंजाब हरियाणा, झारखंड, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई आदि से लोग आते हैं। विदेशों में अभी तक स्कॉटलैंड, अमेरिका, घाना, आस्ट्रेलिया, कनाडा, थाईलैंड, इंग्लैंड, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान आदि से भी लोग अपनी विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए आ चुकेहैं और परिणाम का लाभ मिलने के बाद दोबारा उनसे मिलने और आभार प्रकट करने भी आए हैं। वे कहते हैं- गलत मंत्रों के प्रभाव से पीड़ित काफी लोग मेरे पास आते हैं। घरेलू, पारिवारिक समस्या, व्यापार, नौकरी, विभिन्न रोग आदि से निजात पाने के लिए लोग आते हैं।

मौजूदा हिमंत सरकार के शासन में पहली बार के लिए विगत 18 जुलाई को आयोजित मायंग इंद्रजाल जादू महोत्सव का आयोजन किया गया। सूबे के मुख्यमंत्री डॉ.शर्मा कहते हैं कि उनके सरकार का लक्ष्य मायंग को सांस्कृतिक पर्यटन केकेन्द्र के रूप में विकसित करना है। देश में पहली बार के लिए मायंग में आयोजित जादू महोत्सव को सफल बनाने में मोरीगांव जिला आयुक्त देवाशीष शर्मा की कड़ी मेहनत वाकई रंग लाई और प्राचीन तंत्र-मंत्र का देश कहे जाने वाले मायंग के बारे में इस आयोजन के जरिए देश-विदेश के लोगों को भी जानकारी मिली।

वर्तमान युग में जहां लोग आधुनिक चिकित्सा विज्ञान से थक-हारकर तंत्र-मंत्र की शक्ति पर शायद इसलिए विश्वास बढ़ने लगा है क्योंकि तंत्र विद्या के जरिए उन्हें लाभ मिल रहा है। यहां कुछ पांडुलिपियों को रखने के लिए एक संग्रहालय बनाया गया है। हालांकि इन्हें सावधानी से संरक्षित किया जा रहा है, लेकिन कई और भी हैं जिन पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है। मायंग के लगभग हर घर को अपने पूर्वजों से जादू के बारे में ग्रंथ विरासत में मिले हैं। इनमें से कई पांडुलिपियां पिछले कुछ सालों में चुरा ली गई हैं, कुछ अन्य को मायंग के लोगों ने खुद ही नष्ट कर दिया है ताकि वे गलत हाथों में न पड़ जाए। असम सरकार को आगे आकर इन ऐतिहासिक ग्रंथों को और नुकसान से बचाने की जरूरत है। मायंग के ऐतिहासिक विरासत को जीवित रखने के प्रयास के तहत 18 अगस्त को मोरीगांव जिला प्रशासन और मायंग के स्थानीय लोगों के संयुक्त प्रयास से मायंग इंद्रजाल जादु महोत्सव का आयोजन किया गया जहां देश-विदेश के लोग आए। तंत्र-मंत्रों के जरिए समस्याओं का समाधान देने वाला ऐतिहासिक मायंग पूरे विश्व के लोगों को अपनी ओर खींच रहा है। शायद इसलिए मुख्यमंत्री ने भी इसे धार्मिक-सांस्कृतिक पर्यटन केन्द्र के रूप में गढ़ने की बात कही है।

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