दस्तक-विशेषराष्ट्रीय

ओपीएस की जगह यूपीएस विकल्प

जितेन्द्र शुक्ला

लोकसभा चुनाव रहे हों या फिर किसी राज्य के विधानसभा चुनाव, पुरानी पेन्शन स्कीम यानि ओपीएस की मांग हर चुनाव में उठी। इस ओपीएस को लेकर केन्द्रीय और राज्य कर्मचारी दोनों ही लम्बे समय से आंदोलन चला रहे हैं। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को जिन सीटों का नुकसान हुआ, उसका एक प्रमुख कारण ओपीएस भी रहा। इससे सीख लेते हुए केन्द्र सरकार ने अपने कर्मचारियों यानि केन्द्रीय कर्मचारियों के लिए ओपीएस के स्थान पर यूपीएस यानि यूनिफाइड पेंशन स्कीम का ऐलान किया। सरकार के इस निर्णय से केंद्र सरकार के 23 लाख कर्मचारियों को फायदा मिलेगा। यह स्कीम अगले साल एक अप्रैल से लागू होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपीएस को मंज़ूरी मिलने के बाद इसे कर्मचारियों की गरिमा और आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने वाली योजना करार दिया। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘देश की प्रगति के लिए कठिन परिश्रम करने वाले सभी कर्मचारियों पर हमें गर्व है। यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) इन कर्मचारियों की गरिमा और आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने वाली है। यह कदम उनके कल्याण और सुरक्षित भविष्य के लिए हमारी सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।’ इस स्कीम की घोषणा के साथ ही केन्द्र सरकार की ओर से यह भी कहा गया कि यदि राज्य सरकारें इसे अपने कर्मचारियों के लिए लागू करना चाहती हैं तो कर सकती हैं। केन्द्र की इस स्कीम को सबसे पहले महाराष्ट्र सरकार ने हाथोंहाथ लिया। वहीं यूपी सहित कई राज्यों की सरकारें इस स्कीम का अध्ययन अपने सूबे की आवश्यकताओं के अनुरूप करा रही हैं। लेकिन वहीं कर्मचारी संगठनों को यह स्कीम नहीं भायी है और उन्होंने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है।

केन्द्र सरकार ने यूपीएस को पांच मुख्य हिस्सों में बांटा है। पहला हिस्सा-कम से कम 50 फीसदी निश्चित पेंशन का है। इसके पीछे सरकार ने तर्क दिया है कि कर्मचारियों की एक मांग थी कि उन्हें एक निश्चित रकम पेंशन के रूप में चाहिए। यह रकम रिटारयमेंट के ठीक पहले के 12 महीनों के औसत मूल वेतन का 50 फीसदी होगी। इसके लिए शर्त यह है कि कर्मचारी ने 25 साल की सेवा पूरी की हो। इससे कम वक्त (10 साल से अधिक और 25 साल से कम) तक सेवा की है तो रकम भी उसी हिसाब से होगी। स्कीम के दूसरे हिस्से के तहत निश्चित फेमिली पेंशन मिलेगी। यानि किसी कर्मचारी की सेवा में रहते हुए मृत्यु होने की स्थिति में परिवार (पत्नी) को 60 फीसदी पेंशन के रूप में मिलेगा। वहीं तीसरी यह व्यवस्था की गयी है कि कर्मचारी को न्यूनतम निश्चित पेंशन मिले। इसका अर्थ यह है कि 10 साल तक की न्यूनतम सेवा की स्थिति में कर्मचारी को कम से कम 10 हजार रुपये प्रति माह पेंशन के रूप में दिए जाएंगे। वहीं स्कीम का चौथे हिस्से के तहत महंगाई के हिसाब से व्यवस्था करने की बात कही गयी है। कर्मचारी और फेमिली पेंशन को महंगाई के साथ जोड़ा जाएगा। इसका लाभ सभी तरह की पेंशन में मिलेगा यानी कर्मचारियों की पेंशन में महंगाई इंडेक्शेसन को शामिल किया जाएगा। ये महंगाई राहत ऑल इंडिया कंज्यूमर प्राइजेस फॉर इंडस्ट्रियल वर्कर्स के इंडेक्स पर आधारित है। यह व्यवस्था मौजूदा समय में सेवारत कर्मचारियों के लिए है। नयी स्कीम में ग्रेच्युटी के अलावा नौकरी छोड़ने पर एकमुश्त रकम दिए जाने की व्यवस्था की गयी है। इसकी गणना कर्मचारियों के हर छह महीने की सेवा पर मूल वेतन और महंगाई भत्ते के दसवें हिस्से के रूप में होगी। इस रकम से कर्मचारियों की निश्चित पेंशन पर कोई असर नहीं होगा।

दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी ने वित्त सचिव डॉ. सोमनाथन के नेतृत्व में इस मामले पर विचार करने के लिए एक कमेटी बनाई थी। कमेटी ने लगभग सभी राज्यों, लेबर संगठनों के साथ बात की, साथ ही दुनिया के दूसरे देशों में मौजूद सिस्टम को समझा। इस पूरी प्रक्रिया के बाद कमेटी ने यूनिफाइड पेंशन स्कीम की सिफारिश की, जिसे सरकार ने मंज़ूरी दे दी। सरकार ने दावा किया है कि इस स्कीम का भार कर्मचारियों पर नहीं पड़ेगा यानी कर्मचारियों पर इसका भार नहीं पड़ेगा। सरकार का कहना है कि पहले कर्मचारी इसके लिए 10 फीसदी का अंशदान करते थे और केंद्र सरकार भी इसके लिए 10 फीसदी का अंशदान करती थी। 2019 में सरकार ने सरकारी योगदान को 14 फीसदी कर दिया था। अब सरकार के अंशदान को बढ़ाकर 18.5 फीसदी कर दिया है। इसके साथ ही सरकार ने यह भी कहा है कि कर्मचारियों के पास एनपीएस या यूपीएस में रहने का विकल्प होगा। कहा गया है कि यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) और राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) का एक हाइब्रिड मॉडल है। यूपीएस का उद्देश्य कर्मचारियों को बेहतर पेंशन लाभ प्रदान करना है। फिलहाल केंद्र सरकार का फोकस केंद्रीय कर्मचारियों पर यूपीएस को लागू करने पर है। पेंशन योजनाएं राज्य सरकारों का विषय हैं। इसलिए, राज्य सरकारें अपनी पेंशन योजनाओं को लागू करने के लिए स्वतंत्र हैं। एक ओर केन्द्र सरकार यूपीएस को कर्मचारियों के लिए ऐतिहासिक कदम बता रही है तो वहीं दूसरी तरफ केंद्रीय कर्मचारी संगठनों ने नई पेंशन स्कीम यूपीएस पर गहरी नाराजगी जाहिर की है।

कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारियों का कहना है कि यह सरकार ने कर्मचारी वर्ग के साथ छल किया है। किसी भी सूरत में यूपीएस मंजूर नहीं होगा। ऐसे में कर्मचारी संगठन ‘पुरानी पेंशन बहाली’ को लेकर नए सिरे से आन्दोलन की तैयारी में जुट गए हैं। केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्यों के कर्मचारी संगठन, जो ओपीएस के लिए आंदोलन कर रहे थे, वे जल्द ही अपनी आगामी रणनीति का खुलासा करेंगे। पुरानी पेंशन बहाली के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाने वाले ‘नेशनल मिशन फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम भारत’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. मंजीर्त ंसह पटेल का कहना है कि सरकार ने यूपीएस लाकर कर्मचारियों के साथ छल किया है। यूपीएस में सरकार ने अपने कंट्रीब्यूशन, जो अभी तक 14 प्रतिशत था, उसे बढ़ाकर 18.5 प्रतिशत कर दिया है। उनका कहना है कि हमारी मांग रिटायरमेंट पर 50 प्रतिशत बेसिक सेलरी और डीए अलाउंस के बराबर की थी, न कि कंट्रीब्यूशन घटाने या उसे बढ़ाने की। उनके मुताबिक कर्मचारियों की दूसरी डिमांड यह रही है कि हमारा पैसा, रिटायरमेंट पर बिल्कुल जीपीएफ की तरह ही हमें वापस कर दिया जाए। सरकार, नई व्यवस्था ‘यूपीएस’ में वह सारा पैसा ले लेगी। यानी कर्मचारियों का 10 प्रतिशत भी और खुद का 18.5 परसेंट भी। पटेल कहते हैं, हमें अपने वाले कंट्रीब्यूशन में से केवल आखिरी के 6 महीने की सैलरी जितनी बनेगी, सरकार उतना हमें वापस कर देगी। ऐसी स्थिति में तो यूपीएस की बजाए, एनपीएस ज्यादा बढ़िया होगा। हमारा आंदोलन ओपीएस के लिए था, सरकार ने पुरानी पेंशन जैसा कोई भी प्रावधान यूपीएस में शामिल नहीं किया है, इसलिए कर्मचारी अपना आंदोलन जारी रखेंगे।

केंद्रीय कर्मियों के एक बड़े संगठन ‘कॉन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लाइज एंड वर्कर्स’ के महासचिव एसबी यादव का साफ कहना है कि सरकारी कर्मचारियों को ओपीएस ही चाहिए। यूपीएस, किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगे। सरकार की इस नई स्कीम को लेकर कान्फेडरेशन, जल्द ही बैठक करेगा। उसमें आगामी रणनीति की घोषणा की जाएगी। यह क्लीयर है कि कर्मचारियों को ओपीएस के अलावा कुछ मंज़ूर नहीं। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) ने प्रधानमंत्री मोदी और जेसीएम के प्रतिनिधियों की बैठक का बहिष्कार किया था। वजह, सरकार ने ओपीएस को लेकर कोई भी सकारात्मक बयान नहीं दिया का। सरकार अपनी बात पर ही अड़ी रही। नतीजा, सरकार ने ओपीएस पर आंदोलन करने वाले कर्मचारी संगठनों की राय लिए बिना ही यूपीएस को लागू करने की बात कह दी। अब दोबारा से आंदोलन शुरू होगा। वहीं, नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं अटेवा के प्रदेशाध्यक्ष विजय कुमार बन्धु का कहना है कि यदि सरकार एनपीएस से यूपीएस का विकल्प दे सकती है तो फिर ओपीएस का विकल्प देने में सरकार को क्या दिक्कत है। यदि यूपीएस में बेसिक का 50 प्रतिशत दे सकते हैं तो ओपीएस में भी 50 प्रतिशत ही तो देना होता है। नाम बदलने से काम नहीं बदलता। यह जितनी भी योजनाएं लाई जा रही हैं, सभी स्कीम हैं, तभी तो रोज बदलना पड़ रहा है। अभी तक एनपीएस की तारीफ की जा रही थी। अब यूपीएस की, जबकि सच यह कि ओपीएस ही सामाजिक सुरक्षा का कवच है। बुढ़ापे की लाठी है। देश के करोड़ों कर्मचारी ओपीएस की ही मांग कर रहे हैं।

Related Articles

Back to top button