दस्तक-विशेषविवेक ओझा

महान साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर की जयंती विशेष

नई दिल्ली ( विवेक ओझा) : आज महान हिंदी साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर की जयंती है। उनका जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय ज़िले के सिमरिया ग्राम में एक कृषक परिवार में हुआ था। रामधारी सिंह दिनकर वह व्यक्तित्व थे जिनको ‘संस्कृति के चार अध्याय’ पुस्तक के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार से और काव्य-कृति ‘उर्वशी’ के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म भूषण’ से अलंकृत किया था और उनकी स्मृति में भारत सरकार द्वारा डाक-टिकट भी जारी किया गया। रामधारी सिंह दिनकर साहित्य के वह सशक्त हस्ताक्षर हैं जिनकी कलम में दिनकर यानी सूर्य के समान चमक थी। उनकी कविताएं सिर्फ़ उनके समय का सूरज नहीं हैं बल्कि उसकी रौशनी से पीढ़ियां प्रकाशमान होती हैं।

राम धारी सिंह दिनकर का बचपन संघर्षमय रहा जहाँ स्कूल जाने के लिए पैदल चल गंगा घाट जाना होता था, फिर गंगा के पार उतर पैदल चलना पड़ता था। पटना विश्वविद्यालय से बी.ए. की परीक्षा पास करने के बाद आजीविका के लिए पहले अध्यापक बने, फिर बिहार सरकार में सब-रजिस्टार की नौकरी की। कवि दिनकर की काव्य-यात्रा की शुरुआत हाई स्कूल के दिनों से हुई जब उन्होंने रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा प्रकाशित ‘युवक’ पत्र में ‘अमिताभ’ नाम से अपनी रचनाएँ भेजनी शुरू की। 1928 में प्रकाशित ‘बारदोली-विजय’ संदेश उनका पहला काव्य-संग्रह था।

वे अँग्रेज़ सरकार के युद्ध-प्रचार विभाग में रहे और उनके ख़िलाफ़ ही कविताएँ लिखते रहे। आज़ादी के बाद मुज़फ़्फ़रपुर कॉलेज में हिंदी के विभागाध्यक्ष बनकर गए। 1952 में उन्हें राज्यसभा के लिए चुन लिया गया जहाँ दो कार्यकालों तक उन्होंने संसद सदस्य के रूप में योगदान किया। इसके उपरांत वह भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति नियुक्त किए गए और इसके एक वर्ष बाद ही भारत सरकार ने उन्हें अपना हिंदी सलाहकार नियुक्त कर पुनः दिल्ली बुला लिया।

दिनकर की प्रमुख कृतियाँ : मुक्तक-काव्य: प्रणभंग, रेणुका, हुँकार, रसवंती, द्वंद्वगीत, सामधेनी, बापू, धूप-छाँह, इतिहास के आँसू, धूप और धुआँ, मिर्च का मज़ा, नीम के पत्ते, सूरज का ब्याह, नील-कुसुम, हारे को हरिनाम सहित दो दर्जन से अधिक संग्रह।

दिनकर की कलम, आज उनकी जय बोल के अंश:

जला अस्थियाँ बारी-बारी चिटकाई जिनमें चिंगारी,

जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर लिए बिना गर्दन का मोल

कलम, आज उनकी जय बोल।

जो अगणित लघु दीप हमारे तूफानों में एक किनारे,

जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल

कलम, आज उनकी जय बोल।

पीकर जिनकी लाल शिखाएँ उगल रही सौ लपट दिशाएं,

जिनके सिंहनाद से सहमी धरती रही अभी तक डोल

कलम, आज उनकी जय बोल।

अंधा चकाचौंध का मारा क्या जाने इतिहास बेचारा,

साखी हैं उनकी महिमा के सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल

कलम, आज उनकी जय बोल

Related Articles

Back to top button