लैटिन अमेरिकी देशों के साथ संबंधों को मजबूती देगी केंद्र सरकार
नई दिल्ली ( विवेक ओझा) : हाल ही में लैटिन अमेरिकी देश चिली के विदेश मंत्री ने कहा है कि अब समय आ गया है जब भारत को चिली में तांबे और लिथियम भंडारों में निवेश के लिए अधिक सक्रिय होकर आगे आना चाहिए। चिली के विदेश मंत्री अल्बर्टो वान क्लावेरेन ने भारत और लैटिन अमेरिका संबंधों को नए सिरे से ऊर्जा देने का आवाहन किया है। उन्होंने चिली में भारत के लिए आमों और औषधियों के निर्यात के संबंध में निवेश अवसरों की संभावना पर खुल कर बात की। निश्चित रूप से भारत लैटिन अमेरिका संबंध मजबूत होने से भारत का ट्रेड और अधिक डायवर्सिफाई होगा। कुछ मामलों में कुछ खास देशों पर अति निर्भरता में कमी आयेगी। भारत भी चिली के इस मत से इत्तेफ़ाक रखता है कि लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों के साथ भारत को अपने ट्रेड को डायवर्सिफाई करने की जरूरत है । इससे नए व्यवसायिक साझेदार भी भारत को मिलेंगे। इसी नजरिए से इस साल अगस्त माह में विदेश और वस्त्र राज्य मंत्री पबित्रा मार्गेरिटा ने डोमिनिक रिपब्लिक, ग्वाटेमाला , अल साल्वाडोर , पनामा और त्रिनिदाद-टोबैगो ( की आधिकारिक यात्रा की थी और बतौर राज्य मंत्री यह उनकी पहली विदेश यात्रा थी।
भारत लैटिन अमेरिका आर्थिक संबंध:
भारत – लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों के बीच वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार 2027 तक 100 बिलियन डॉलर का होना चाहिए । यह कहना है भारत के विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर का। 2022-2023 में दोनों क्षेत्रों के बीच व्यापार 50 बिलियन डॉलर का था और भारत का ब्राजील को किया गया निर्यात 10 बिलियन डॉलर था जो कि जापान को भारत द्वारा किए गए निर्यात से दुगना था। भारत को यदि अपनी विदेश व्यापार नीति के तहत अपने व्यापार को अधिक विविधतामूलक बनाना है तो उसे नए क्षेत्र के बाजारों को ढूढना होगा और उन बाजारों की मांग के हिसाब से उत्पादों का निर्यात करने की नीति बनानी होगी। हाल के समय में लैटिन अमेरिकी देशों ने भारत से वंदे भारत ट्रेनों को लेने में रुचि दिखाई है। इसमें चिली, अर्जेंटीना, ब्राजील जैसे देश शामिल हैं। केंद्र सरकार भी इसी अनुरूप लक्ष्य तय करते दिखी है।
इंडियन रेलवे 2025-26 तक यूरोप, दक्षिण अमेरिकी देशों में वंदे भारत ट्रेनों का प्रमुख निर्यातक बनने की दिशा में काम भी कर रही है। इसके साथ ही भारत लैटिन अमेरिकी दक्षिण अमेरिकी देशों अर्जेंटीना और चिली के साथ लिथियम आपूर्ति के लिए समझौतों में भी लगी है। ये दोनों लैटिन अमेरिकी देश लिथियम के लगभग 30 से 35 प्रतिशत वैश्विक आपूर्ति के लिए जिम्मेदार हैं। चिली में वैश्विक लिथियम भंडारों का 11प्रतिशत है । इसे संदर्भ में रखते हुए भारत सरकार व्हाइट गोल्ड कहे जाने वाले लिथियम की प्राप्ति के लिए लैटिन अमेरिकी देशों के साथ संबंधों को मजबूत कर रही है।
भारत लैटिन अमेरिकी देश संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
1960 के दशक से भारत ने लैटिन अमेरिकी देशों के साथ अंतर्संपर्क शुरू किए थे। शीत युद्ध की राजनीति भारत के विश्व के कई क्षेत्रों से देर से जुड़ने की वजह बनी थी लेकिन भारत 1950 के दशक से ही एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में एशिया अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों के अधिकारों और आत्म निर्धारण के अधिकारों का समर्थन करता आया है । भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1961 में मैक्सिको की यात्रा की थी । मेक्सियो पहला लैटिन अमेरिकी देश था जिसने भारत की स्वतंत्रता के बाद उसे मान्यता देते हुए 1950 में ही कूटनीतिक संबंधों की स्थापना की थी । मेक्सिको की गेहूं की प्रजाति सोनोरा ने भारत की हरित क्रांति में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई थी । इंदिरा गांधी की 1968 में आठ लेटिन अमेरिकी देशों जिनमें मुख्य रूप में ब्राजील , चिली , उरूग्वे , अर्जेंटीना, कोलंबिया और वेनेजुएला शामिल थे , की लंबी यात्रा उस क्षेत्र के साथ भारतीय राजनय का उत्कृष्ट उच्च बिंदु है । अक्टूबर , 1968 में भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वेनेजुएला की यात्रा की थी । दोनों देशों ने आपसी संबंधों को मजबूती प्रदान करने का फैसला किया। इस क्षेत्र में बाद में हुई कुछेक प्रधान मंत्री स्तरीय यात्राएं प्रमुखत: बहुपक्षीय कार्यक्रमों के लिए हुई हैं। हाल के दशक में भारतीय राष्ट्रपतियों और उप राष्ट्रपतियों द्वारा लैटिन अमरीका की कुछ यात्राएं की गई हैं। चिली, वेनेजुएला और क्यूबा के तीन विदेश मंत्रियों, जो ‘कम्यूनिटी ऑफ लैटिन अमेरिकन एंड कैरीबियन स्टेट्स (सेलेक)’ के प्रतिनिधि हैं की अगस्त 2012 में भारत के विदेश मंत्री से मुलाकात हुई थी। संयुक्त घोषणा से इस पैन-रीजनल संगठन, जो सभी तैंतीस देशों को एक ही छत्र के अंतर्गत लाता है, के साथ भारत के संबंधों की नई शुरूआत हुई । इसी क्रम में भारत को डायनामिक पेसिफिक अलायंस, जिसमें मैक्सिको, कोलंबिया, पेरू और चिली शामिल हैं, के ऑब्जर्वर सदस्य का दर्जा भी प्राप्त हुआ ।
लैटिन अमेरिकी क्षेत्र का महत्व :
लैटिन अमेरिका क्षेत्र की सामूहिक अथवा संयुक्त जीडीपी 4.9 ट्रिलियन डॉलर है और विश्व की 600 मिलियन आबादी इस क्षेत्र में रहती है। संयुक्त राष्ट्र के लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई आर्थिक आयोग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 में लैटिन अमेरिका ने 224.57 बिलियन डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित किया था जो विश्व के किसी भी क्षेत्र में सर्वाधिक था। 2022 में लैटिन अमेरिका में होने वाली एफडीआई में 55.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। इसमें ब्राजील , मेक्सिको और चिली की प्रमुख भूमिका रही। ब्राजील ने अकेले 41 प्रतिशत एफडीआई आकर्षित किया जबकि मेक्सिको और चिली ने क्रमशः 17 प्रतिशत और 9 प्रतिशत एफडीआई आकर्षित किया। लैटिन अमेरिका आर्थिक रूप से गतिशील क्षेत्र है इस क्षेत्र में राजनीतिक स्थिरता, लोकतांत्रिक संरचनाओं के प्रसार , सक्रिय उद्यमी वर्ग और युवाओं की संख्या के चलते यह आर्थिक रूप से एक लाभकारी क्षेत्र है दक्षिण अमेरिका की आधी से अधिक आबादी 30 वर्ष से कम आयु की है जो कार्यशील जनसंख्या की स्थिति को दर्शाता है। एलएसी क्षेत्र के कई देश कृषि उत्पादन का बड़ा केन्द्र है और उनके पास निर्यात के लिए अतिरिक्त कृषि उत्पाद उपलब्ध है। उन्होंने कहा यहीं वजह है कि इस क्षेत्र को ग्लोबल ब्रेड बास्केट कहा जाता है। भारतीय कम्पनियां एलएसी क्षेत्र के देशों के साथ दाल-दलहन और खाद्यान्नों की खेती के लिए संयुक्त उपक्रम लगा सकती हैं । भारतीय कम्पनियां यहां कृषि उत्पादों की बर्बादी रोकने के लिए भंडारण क्षेत्र में भी निवेश कर सकती हैं । डेयरी फार्मिंग ,बीजों और दलहनों की खेती के क्षेत्र में भी भारतीय कंपनियां बेहतर तौर तरीको को साझा कर सकती हैं और मिलकर अनुसंधान कार्य कर सकती हैं।
लैटिन अमेरिका और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार :
एलएसी ( लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देश) क्षेत्र में 43 देश शामिल हैं। इनमें ब्राजील, अर्जेटीना, पेरु, चिली, कोलम्बिया, इक्वाडोर, ग्वाटेमाला, वेनेजुएला, पनामा और क्यूबा भारत के महत्वपूर्ण आर्थिक और व्यापारिक साझेदार है। 2014-15 के दौरान भारत और एलएसी देशों के बीच कुल 38.48 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ, जो कि 2015-16 में 25.22 अरब डॉलर और 2016-17 में 24.52 अरब डॉलर रहा और 2017-18 में 29.33 अरब डॉलर हो गया था। कच्चे तेल की कीमतों में बड़े पैमाने पर हुए उतार-चढ़ाव के कारण द्विपक्षीय व्यापार पर असर पड़ा।2022-2023 में दोनों क्षेत्रों के बीच व्यापार 50 बिलियन डॉलर का था और भारत का ब्राजील को किया गया निर्यात 10 बिलियन डॉलर था। भारत दक्षिण अमेरिकी देशों के संगठन मर्कोसुर के साथ वरीयता मूलक व्यापार समझौता और साथ ही मुक्त व्यापार समझौते की संभावना को भी पिछले कुछ समय से तलाश रहा है। उल्लेखनीय है कि भारत का लैटिन अमेरिकी देश चिली के साथ वरीयतामूलक व्यापार समझौता हो चुका है जिसे मजबूती देने की जरूरत है । भारत लैटिन अमरीका के साथ रिश्तों को सशक्त करने के लिए दृढ़ संकल्पित है और ग्वाटेमाला को मध्य अमेरिका में प्रवेश द्वार के लिए सर्वाधिक जनसंख्या और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में देखता है। भारत ने ग्वाटेमाला को अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में जुड़ने के लिए आमंत्रित किया है। ग्वाटेमाला ने वर्ष 2021-22 के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की भारत की सदस्यता का समर्थन किया है और भारत वर्ष 2031-32 के लिए ग्वाटेमाला की सदस्यता के लिए सहयोग करेगा। वर्ष 2018 में भारतीय उपराष्ट्रपति द्वारा ग्वाटेमाला, पनामा और पेरू की यात्रा की गई जिसे लैटिन अमेरिका के साथ मजबूत संबंध बनाने की कड़ी के रूप में देखा गया। भारत सरकार द्वारा इस यात्रा को इस महत्वपूर्ण क्षेत्र के साथ ‘सम्पर्कों में उच्च स्तर की कमी’ को पूरा करने के प्रयास के रूप में वर्णित किया गया था।
ब्राजील (लैटिन अमेरिका और कैरिबियन) क्षेत्र में भारत के सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदारों में से एक है, दोनों देशों के बीच 2022 में द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 15.2 बिलियन डालर हो गया । चिली लैटिन अमेरिकी क्षेत्र में भारत का पांचवा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। चिली से आयात में तांबे का 85 प्रतिशत से अधिक योगदान हैं। हमें व्यापार को और मजबूत बनाने के लिए अपने व्यापार में विविधता लानी चाहिए। द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए चिली ने पहले ही घोषणा की है कि वह वैध अमेरिकी वीजा रखने वाले भारतीय नागरिकों को वीजा मुक्त प्रवेश की अनुमति देगा। सूचना प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की क्षमता और ताकत के कारण भारतीय आईटी कंपनियां लैटिन अमेरिका और कैरीबियाई क्षेत्र में भी संयुक्त उपक्रम लगा रही हैं।
फार्मा क्षेत्र में बनाने होंगे और मजबूत संबंध:
फार्मा क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा में आगे रहने के कारण भारत से लैटिन अमेरिका और कैरीबियाई देशों को होने वाले निर्यात में दवाओं का बड़ा स्थान है। इन देशों के आयात में भारत से निर्यात होने वाली दवाइयों का हिस्सा तीन प्रतिशत से ज्यादा है। भारत की कुछ फार्मा कंपनियों ने लैटिन अमेरिका और कैरीबियाई देशों में अपनी उत्पादन इकाइयां भी स्थापित कर रखी हैं। स्थानीय क्षेत्रों में दवाओं की आपूर्ति के अलावा यह कंपनियां क्षेत्र से बाहर अमेरिका और अन्य देशों को भी दवाओं का निर्यात करती हैं। इससे एलएसी देशों में कम लागत वाली स्वास्थ्य सेवाओं को प्रोत्साहन मिल रहा है। इन क्षेत्रों से अन्य देशों को जेनेरिक दवाओं निर्यात बढ़ रहा है।