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सऊदी अरब के राजा अस्पताल में भर्ती, हुआ लंग इन्फेक्शन

नई दिल्ली ( दस्तक ब्यूरो) : सऊदी अरब के किंग सलमान को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उनको फेफड़ों में संक्रमण के बाद अस्पताल ले जाया गया है जिसके बाद उनके कुछ मेडिकल टेस्ट अभी होने हैं। 88 वर्षीय सऊदी किंग को उनके बेटे सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और उनके खास लोग अस्पताल ले गए। इससे पहले उन्हें मई 2022 में भी हॉस्पिटलाइज किया गया था। किंग सलमान 2015 से ही राजा के रूप में गद्दी पर हैं जबकि उनके बेटे प्रिंस सलमान को 2017 में क्राउन प्रिंस बनाया गया था।

सऊदी अरब में राजतंत्र :

सऊदी अरब में कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं है क्योंकि इस देश में पूर्ण राजतंत्र लागू है। यहां पर राजपरिवार ही अपने नए उत्तराधिकारी को चुनता है जो वहां का प्रधानमंत्री और देश प्रमुख होता है। सऊदी अरब में पीढ़ी दर पीढ़ी सत्ता को आगे बढ़ाया जाता है। आसान भाषा में कहे तो सऊदी अरब में राजतंत्र है। किंग अपना उत्तराधिकारी अपने परिवार के पुरुषों में से चुनते हैं। राजशाही से अर्थ है कि सत्ता में शासक एक विशेष परिवार से ही पीढ़ी दर पीढ़ी चुना जाता है। ऐसे में देश का प्रमुख जो सिंहासन पर बैठता है, उसे सम्राट या राजा के रूप में जाना जाता है। वहीं जिस तरीके से राजा चुना जाता है और शासन चलाया जाता है उसे ही राजशाही कहते हैं। सऊदी अरब में राजतंत्र है। किंग अपना उत्तराधिकारी अपने परिवार के पुरुषों में से चुनाते हैं। किंग देश का सर्वोच्च पद होता है। साल 2017 में किंग सलमान बिन अब्दुल अजीज ने एमबीएस को क्राउन प्रिंस नियुक्त किया था।देश चलाने के लिए किंग कैबिनेट नियुक्त करते हैं। किंग रॉयल डिक्री के जरिए अपना आदेश लागू करते हैं।

सलाहकार परिषद का काम :

किंग एक सलाहकार परिषद नियुक्त करते हैं जिसे मजलिस अल शूरा कहते हैं जिसमें 150 सदस्य होते हैं। इस सलाहकार परिषद का काम किंग को सलाह देना है। हालांकि इस सलाहकार परिषद का कोई विधायी अधिकार नहीं होता है। सलाहकार परिषद का कार्यकाल 4 साल के लिए होता है। किंग सलमान ने साल 2020 में नए सलाहकार परिषद को नियुक्त किया ।

21वीं सदी में लोकतंत्र की झलक:

सऊदी अरब में लोकतंत्र का इतिहास काफी पुराना है। म्युनिसिपल लेवल पर साल 1920 में चुनाव हुए थे। लेकिन 21वीं सदी में देश में लोकतंत्र की पहली झलक साल 2005 में उस वक्त दिखी, जब म्युनिसिपल लेवल पर इलेक्शन हुए। इस चुनाव में पुरुष वोटर्स ने पुरुष उम्मीदवारों के लिए वोट किए थे।दरअसल म्युनिसिपल लेवल पर भी सलाहकार परिषद होती है। साल 2015 में सलाहकार परिषद की दो-तिहाई सीटों पर वोटिंग हुई थी, बाकी सीटों पर म्यूनिसिपल एंड रुरल अफेयर्स मिनिस्टर ने प्रतिनिधि नियुक्त किए। आपको बता दें कि सऊदी अरब में कभी भी नेशनल लेवल के प्रतिनिधियों को चुनने के लिए चुनाव नहीं होते हैं।

महिलाओं को मिला अधिकार:

साल 2011 में किंग सलमान ने शरिया के तहत जो भी अधिकार महिलाओं को मिलने चाहिए, वो देने का ऐलान किया। इसके तहत पहली साल 2015 में म्युनिसिपल इलेक्शन में महिलाओं को अधिकार दिए गए थे । पहली बार महिलाओं को वोट डालने का मौका मिला था। इसके साथ ही महिलाओं को चुनाव लड़ने की भी छूट दी गई थी। इस चुनाव में 978 महिलाएं चुनाव मैदान में उतरीं थीं ।20 महिला कैंडिडेट्स ने जीत हासिल की। हालांकि इस चुनाव में महिला उम्मीदवारों को चेहरा दिखाने वाले पोस्टर लगाने की इजाजत नहीं थी।

लोकतंत्र पर लग गई रोक :

सऊदी अरब में पहली बार महिलाओं ने वोट डाला। हालांकि म्युनिसिपल चुनावों में कई तरह के प्रतिबंध भी थे। इसके बावजूद किंग के इस कदम की दुनिया भर में तारीफ हुई लेकिन साल 2019 में लोकतंत्र पर रोक लगा दिया गया। इलेक्शन प्रक्रिया पर अनिश्चितकालीन रोक लगा दी गई। लोकतंत्र पर रोक लगाने के पीछे कोई वजह नहीं बताई गई।

सऊदी अरब में चुनाव का इतिहास:

सऊदी अरब में म्युनिसिपल इलेक्शन का इतिहास काफी पुराना है। साल 1920 में पहली बार म्युनिसिपल इलेक्शन हुआ था। मक्का, मदीना, जेद्दा, यांबू और ताइफ के हिजाज शहरों में चुनाव हुए थे। इसके अलावा राजा सऊद के शासनकाल में साल 1954 और 1962 के बीच चुनाव हुए थे।

कैसे काम करती हैं सरकार :

सरकार का कामकाज काफी हद तक अपारदर्शी है। राज्य के धन का वितरण कैसे होता है, इसपर फैसले लेने की प्रक्रिया स्पष्ट नहीं है। अधिकारियों की जवाबदेही तय करने वाला कोई सार्वजनिक तंत्र नहीं है। रक्षा बजट को सार्जवनिक जांच से बचाया जाता है। स्थानीय लेवल पर निर्वाचित प्रतिनिधि सिर्फ स्थानीय सलाहकार परिषदों में काम करते हैं। राष्ट्रीय कानूनों और नीतियों से उनका कोई मतलब नहीं होता है।

मीडिया पर सरकार का कंट्रोल :

सरकार घरेलू मीडिया को कंट्रोल करती है। पत्रकारों पर भी कई तरह के बैन लगाए जाते हैं। साल 2011 में शाही फरमान के जरिए सरकारी अधिकारियों की आलोचना को अपराध घोषित कर दिया गया। इसके उल्लंघन पर मीडिया संस्थान को बंद भी किया जा सकता है। किसी भी ब्लॉग या वेबसाइट को चलाने के लिए लाइसेंस होना जरूरी है।

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