विवेक ओझा

अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों और विदेश नीति को नई दिशा दे सकते हैं श्रीराम के आदर्श

दस्तक विशेष (विवेक ओझा) : भारत के इस कालखंड को सांस्कृतिक आध्यात्मिक अभ्युदय का काल माना जा रहा है। अयोध्या में श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद से मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के सार्वभौमिक महत्व का विस्तार से वर्णन होना शुरू हो चुका है। पूरी दुनिया से लोग श्रीराम की आध्यात्मिक सत्ता से परिचित होने के लिए अयोध्या की यात्रा कर रहे हैं। इसी कड़ी में इस बात पर भी विचार करना जरूरी हो जाता है कि विदेश नीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, राजनय आदि मामलों में श्रीराम और उनके जीवन और रामायण में उल्लिखित पात्रों से क्या सीखा जा सकता है। श्रीराम का महत्व महज़ अवतार लेने मात्र से नही है बल्कि उनके असाधारण चिंतन और धर्मपरायण कार्यशैली से है। यह रोचक बात है कि राम ,रामायण और रामराज में ऐसी बातों का समावेश है जो विश्व राजनीति को नई दिशा देने में समर्थ है ।

राम के विचारों में तीसरी दुनिया या ग्लोबल साउथ के देशों की एकजुटता का विचार देखा जा सकता है। राम के चरित्र में हमें शक्ति संतुलन का सिद्धांत दिखाई पड़ता है, शक्तियों के पृथक्करण के प्रति सम्मान दिखता है। जनता को मूल कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान होने की सीख दिखती है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम में हमें पहले हमला करने या शक्ति का प्रयोग न करने का आचरण दिखाई देता है। चाहे रावण हो या विशालकाय समुद्र दोनों से श्रीराम ने पहले यथोचित अनुरोध किया लेकिन अंत में दोनों को ही एक मर्यादित आक्रोश भी दिखाकर यह अहसास करा दिया कि सत्य के मार्ग पर अनुनय विनय का त्याग भी किया जा सकता है। भारत की सहिष्णु विदेश नीति में यह आचरण सदैव दिखा है। पाक प्रायोजित आतंकवाद के हर कुत्सित तरीकों के बावजूद भारत ने अपना संयम नहीं खोया लेकिन जब अनीति चरम पर पहुंच गई तो सर्जिकल स्ट्राइक से उसका जवाब भी दिया।

राम और रामराज से विश्व राजनीति में सीखने और अपनाने लायक पहली चीज है – समतामूलक समाज और विश्व के निर्माण के लिए फिक्र करना। समता और ममता रामायण की मूल सीख है । समानता का विचार दे देने मात्र से समानता नहीं आ जाती , समानता एक मानसिक अभ्यास है जिसे वर्गीय बंधुत्व के लिए तराशते रहना होता है। फिर सामने चाहे केवट आए या शबरी , हनुमान आए या सुग्रीव , लक्ष्मण आए या भरत , और सबसे बड़ी बात कौशल्या आए या कैकेई। श्रीराम को पता था समानता की गरिमा कैसे गढ़ी जाती है । श्रीराम ने व्यक्ति के गुणों और दुर्गुणों के प्रति समान भाव रखकर उसका मूल्यांकन किया । राम ने अपने से जुड़े लोगों और जो नहीं भी जुड़े थे उनके दुर्गुणों का अद्भुत मनोविश्लेषण कर परानुभूति और सहानुभूति के मानवीय रत्न को इजाद किया । बुराई को अच्छाई में तब्दील करने का प्रयास समानता के लिए जरूरी है । यही आज राष्ट्रों को सीखना है । क्या उत्तर कोरिया , पाकिस्तान , चीन जैसे कई गुमराह देशों को विश्व पटल से हटाकर समतामूलक विश्व व्यवस्था बनाने की इच्छा रखना , उचित इच्छा है , अथवा उनके सुधार के उपाय किए जाने जरूरी हैं ? चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस का कहना था कि यदि आपको प्रतिशोध के मार्ग पर जाना ही है तो आपको दो कब्रें खोदनी पड़ेंगी। श्री राम के आदर्शों पर ही भारतीय विदेश नीति के तहत वसुधैव कुटुंबकम् और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व पर बल दिया जाता है। भारतीय विदेश नीति श्रीराम के चिंतन के आधार पर ही अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे राष्ट्रों के साथ गठजोड़ रखती हैं, साथ ही मॉरीशस, सेशेल्स , फिजी को भी यथोचित सहयोग और सम्मान देती है। श्रीराम ने भी सुग्रीव, विभीषण, जामवंत के साथ गठजोड़ किए लेकिन आमजन के महत्व को नहीं भूले।

धर्म और नीति के मार्ग पर चलने वाला रामराज्य और उसका सुशासन यह सिखाता है कि आज नियम और प्रतिमान आधारित विश्व व्यवस्था को सम्मान देना होगा । संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे अन्य वैश्विक संस्थाओं के नियमों , प्रस्तावों की धज्जियां ना उड़ाने का आचरण चीन , उत्तर कोरिया , पाकिस्तान और कई अवसरों पर अमेरिका जैसे देश रामराज के आदर्शों से सीख सकते हैं । हालांकि ना चीन राम के आदर्शों को देख रहा है और ना ही अमेरिका और पाकिस्तान और जाहिर सी बात है इन देशों को ये भी पता नहीं होगा कि ये श्रीराम के जीवन और उनकी शासन प्रणाली राम राज से कुछ सीख भी सकते हैं । भारत श्रीराम के नैतिक बलों दुर्गुण निवारक मानता है। इसलिए आज भारत में यह कहा जा रहा है कि समस्त मानवता का कल्याण राम के आदर्शों में निहित है। रामायण और रामराज्य के आदर्श सार्वभौमिक अदृश्य अपेक्षाएं हैं , और हैं भी तो हम वसुधैव कुटुंबकम् का सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय विचार देने वाले देश । –

रामायण और रामराज एक बड़ी चीज जो सिखाती है वह यह है कि वाटर कैन बी थिकर दैन ब्लड । इससे भिन्न हम लोगों ने पारिवारिक रिश्तों में यह सुना है कि खून पानी से गाढ़ा होता है । माना रक्त संबंध सबसे ऊंची और दायित्व आग्रही चीज है , लेकिन ब्लड अगर दूषित हो ( रावण और उसकी समस्त सेना के दुराग्रह को देख सकते हैं ) तो निर्मल जल को प्रवाहित होने का हक है । विभीषण को घर का भेदी और देशद्रोही का तमगा पूरे देश में बड़े फक्र से उपयोग में लाया जाता है जो उचित नहीं है। चार पांच वयस्क बेटों के पिता रावण ने अपनी वासना के अधीन सीता का हरण किया , वो द्रोह था , या इसकी आलोचना कर सत के मार्ग पर रावण और उसकी आसुरी शक्तियों के साथ ना देने का विभीषण का निर्णय द्रोह था।

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में आज इस बात को सीखने की जरूरत है कि वो कौन से सद्भावकारी देश हैं तटस्थ होकर बिना द्वेषपूर्ण राजनीति के वैश्विक शांति और सुरक्षा में अपनी भूमिका निभा सकते हैं। इस्लामिक सहयोग संगठन के सदस्य देश गलत उद्देश्य को भी पूरा करने के लिए 57 देशों के बीच कट्टर इस्लामिक भाईचारे को बढ़ावा देने से बाज नहीं आते भले ही वैश्विक सुरक्षा की बलि चढ़ जाए। धर्म का आचरण मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी किया था वो भी बुराईयों के अंत के लिए। बुराईयों को बढ़ावा देने के लिए एकजुटता कहीं से भी औचित्यपूर्ण नहीं है। बात चाहे अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, इस्लामिक जेहाद को खत्म करने का हो या आतंकियों और आतंकी संगठनों को वैश्विक संगठनों की मीटिंग्स में बचाने का , देशों के मध्य एक सकारात्मक सर्वसम्मति बननी जरूरी है।

विश्व राजनीति की बात करें विभीषण उन देशों की श्रेणी को दर्शा सकता है जो वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए खतरा बने हुए अपने बंधु बांधव देशों की अनीति में उसका साथ ना दें । क्या हम चीन और अमेरिका सहयोग मुक्त पाकिस्तान , चीन सहयोग मुक्त उत्तर कोरिया , अमेरिका सहयोग मुक्त इजरायल जैसी स्थिति देख सकते हैं । अनुचित उद्देश्यों में साथ ना देने का धर्म रामायण से सीखना जरूरी हो गया है ।रामायण के भरत का चरित्र वर्तमान में गांधी के ट्रस्टिशीप के सिद्धांत को मजबूती देता है । भरत वो इंसान थे जिन्होंने इस बात को गहरा अर्थ दिया कि शासन और सत्ता के अधिकार में वैधता और हकदारी के सिद्धांत का पालन होना चाहिए । आज राष्ट्रों को भी यह समझना होगा कि जो हक लोकतांत्रिक सरकारों का है , उसे अधिनायकवादी या सैन्य शासन की भेंट नहीं चढ़ाया जाना चाहिए । मालदीव के भूतपूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद का वैध हक तो याद ही होगा जिसे सत्तालोलुप शक्तियों ने कितनी अमानवीय तरीके से कुचला था । श्रीलंका के महिंदा राजपक्षे की सत्ता लोलुपता की आदतें भी किसी से छुपी नहीं हैं जिसके चलते श्रीलंका आर्थिक रूप से बर्बादी की राह पर चला गया था।

राम, रामराज और रामायण दिखाता है कि पशु पक्षियों के सहयोग को भी धर्म की विजय में श्रेष्ठ भूमिका दी गई है । आज संयुक्त राष्ट्र संघ के 17 सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने की कोशिश राष्ट्रों को निः स्वार्थ भाव से करनी चाहिए । ये 17 लक्ष्य इतने शानदार हैं कि इनको सही तरीके से पूरा करने में लग जाने पर एक नई ही दुनिया सामने आएगी । प्रकृति , पर्यावरण , पारिस्थितिकी और जैव विविधता अनेक व्याधियों से मुक्त हो जाएगी । यही रामराज होगा।

रामायण के कई पात्र समय समय पर एक बेहतर परामर्शदाता और समस्या समाधान के लिए एक मध्यस्थ की भूमिका निभाने को व्यग्र दिखे हैं । विभीषण के अलावा इनमें त्रिजटा , मंदोदरी और जामवंत शामिल थे । आज विश्व राजनीति में निष्ठुर और उग्र स्वभाव के आचरण करने वाले देशों को इन्हीं रामायण पात्र रूपी देशों और संस्थाओं की जरूरत है। सोचिए कि यदि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस , इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट , परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बीट्रेशन सही तरीके से काम कर पाएं तो कितनी बेहतर विश्व न्याय प्रणाली सामने आएगी। इससे भिन्न वस्तुस्थिति यह है कि इन संस्थाओं को महाशक्तियां धमकाती रहती हैं , इनकी सदस्यता त्यागने की आतुरता दिखाती हैं । इनके निर्णयों को सिरे से खारिज करने के लिए तैयार रहती हैं। नीति विरोध ना मारिय दूता , रामायण कूटनीतिक संबंधों को एक नई दिशा देता है । लंका में हनुमान और अंगद के प्राणों के अंत के प्रयास को अवरुद्ध करने के लिए नीति और कूटनीति का हवाला दिया गया । आज दो राष्ट्रों में जैसे ही कुछ खटास आती है तो उसका खामियाजा प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से राजनयिकों को भी झेलना पड़ता है । पाकिस्तान , खाड़ी देशों और अमेरिका जैसे देश को राजनयिक शुचिता का अनुपालन रामायण से सीखना चाहिए । ब्राज़ील के राष्ट्रपति ने तो हनुमान की शक्ति का स्मरण भी कोविड महामारी के दौरान कर लिया था ।

रामायण बताती है जब हनुमान ने लंका में सोचा कि लंका निशिचर निकर निवासा , ईहा कहां सज्जन कर बासा । तो उस सज्जन के रूप में विभीषण की पहचान उन्होंने की । यानी सत्याग्रही , धर्माग्रही , सदाग्रही कहीं भी पाया जा सकता है और अगर वह किसी दुर्गुण से भरे क्षेत्र में पाया जाता है , तो उसका अस्तित्व निश्चित रूप से एक बड़े मकसद के लिए होता है । आज विश्व राजनीति में कई देश हैं जिन्हें लाइक माइंडेड बनते हुए कॉमन गोल को प्राप्त करने के लिए रामायण की सीख का अनुपालन करना चाहिए। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम आज दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों सहित दुनिया के अन्य देशों के साथ भारत के सांस्कृतिक संबंधों के आधार हैं । रामायण सर्किट जैसे पहल भारत और नेपाल जैसे देशों के बीच सांस्कृतिक आध्यात्मिक संबंधों को मजबूती दे रहे हैं। रामायण सर्किट के तहत देश के उन स्थानों को आपस में जोड़ा जाना है, जहां भगवान श्रीराम द्वारा भ्रमण किये जाने की मान्यता है। रामायण सर्किट में अब तक देश के नौ राज्यों के 15 स्थानों की पहचान की गयी है। इस योजना के तहत इन सभी शहरों को रेल, सड़क और हवाई यात्रा के माध्यम से आपस में जोड़ा जा रहा है। रामायण सर्किट भारत और नेपाल की बहुत प्रतीक्षित योजना है, नेपाल यात्रा के दौरान में पीएम मोदी ने तत्कालीन नेपाली पीएम को इसका सुझाव दिया था। इसके बाद से ही रामायण सर्किट योजना के प्रयास शुरू हुए थे। 2018 में नेपाल यात्रा के दौरान पीएम मोदी ने जनकपुर स्थित जानकी मंदिर में जाकर पूजा अर्चना भी की थी। बौद्ध सर्किट के बाद नेपाल और भारत का यह बहुप्रतीक्षित प्रोजेक्ट माना जा रहा है। नेपाल की रामायण सर्किट योजना भारत में प्रस्तावित योजना का अगला चरण है, इसके तहत नेपाल के जनकपुर को अयोध्या से जोड़ा जाना है, ताकि वहां के पर्यटक यहां आ सके और यहां के पर्यटक जनकपुर जा सकें। ओवरऑल रामायण सर्किट प्रोजेक्ट को देखें तो इसमें नेपाल के 2 और भारत के 15 स्थान हैं। ये वे इलाके हैं जहां प्रभु श्री राम के कदम पड़े थे। यह रामायण सर्किट कई राज्यों और शहरों से होकर गुजरेगा। यूपी के अयोध्या से लेकर श्रृंगवेरपुर, चित्रकूट, बक्सर, दरभंगा, सीतामढ़ी समेत कर्नाटक का किष्किंधा, तमिलनाडु का रामेश्वरम् समेत कई जिले इसका हिस्सा हैं।

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