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अडाणी पर ऐसे कसा अमेरिकी कानून का शिकंजा

एक मामूली साड़ी विक्रेता से दुनिया का सबसे अमीर आदमी बनने का सफर गौतम अडाणी के लिए किसी परीकथा से कम नहीं। भारत की नम्बर वन कंपनी बनने के बाद अडाणी ग्रीन एनर्जी का अमेरिका की तरफ रुख करना शायद अहंकारी अमेरिकी कारोबारियों को पसंद नहीं आया। जो बाइडन प्रशासन के इशारे पर अमेरिका की जांच एजेंसियों ने इस कंपनी की साख पर कूटनीतिक हमला किया। अब एक ऐसी कहानी सामने आई जिसने सबके होश उड़ा दिए।

दस्तक ब्यूरो

गुजरात के कभी एक साधारण से गुमनाम व्यापारी रहे गौतम अडाणी की कहानी खासी दिलचस्प है। घर-घर जाकर साड़ियां बेचने वाले अडाणी परिवार ने केवल पांच लाख रुपए से 1988 में अपना घरेलू टाइप का बिजनेस शुरू किया था। लेकिन नरेन्द्र मोदी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी किस्मत अचानक चमक उठी। और देखत देखते अडाणी दुनिया के अमीरों की लिस्ट में 15वें नंबर पर आ गए। यह ग्रुप आज भारत के सबसे बड़े समूहों में से एक है और ऊर्जा, बंदरगाह, हवाई अड्डों, कोयला व्यापार जैसे कई क्षेत्रों में काम करता है। अडाणी समूह की कम से कम सात कंपनियां भारतीय स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध हैं। अडाणी समूह कई हवाई अड्डों के साथ-साथ देश के सबसे बड़े निजी बंदरगाह गुजरात में मुंद्रा बंदरगाह को भी नियंत्रित करता है। जनवरी 2023 में इस समूह ने इजराइल के हाइफा बंदरगाह को 1.15 बिलियन डॉलर में खरीदा। अडाणी समूह पड़ोसी बांग्लादेश को बिजली की आपूर्ति करता है और ऑस्ट्रेलिया में विवादास्पद कारमाइकल कोयला खदान को संचालित करता है। 2014 में प्रधानमंत्री बनते ही नरेन्द्र मोदी ने एलान किया कि अब भारत ग्रीन एनर्जी की तरफ तेजी से आगे बढ़ेगा। और एक साल के अंदर ही मौके की नजाकत समझने वाले इस कारोबारी ने अडाणी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड (एजीईएल) नाम की एक कंपनी बना ली। अडाणी ग्रुप में रीन्यूबल एनर्जी यानी नवीकरणीय ऊर्जा एक नई कंपनी थी। बताते चलें कि नवीकरणीय ऊर्जा, सूरज के प्रकाश या हवा जैसे प्राकृतिक स्रोतों से मिलने वाली वह ऊर्जा है जो खपत की तुलना में तेजी से फिर से रीचार्ज हो जाती है। आज यह कंपनी भारत में बड़े पैमाने पर सौर और पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट बनाती और चलाती है।

ताजा विवाद अडाणी की इसी ऊर्जा कारोबार से जुड़ा है। इस कंपनी का अमेरिका से कनेक्शन उस वक्त जुड़ा जब कंपनी अमेरिकी निवेशकों के लिए ग्रीन बांड लेकर आई। जो बाइडेन के चुनाव जीतने के बाद 2019 के अंत में, एजीईएल विदेशी निवेशकों को $362.5 मिलियन मूल्य के निवेश-ग्रेड अमेरिकी डॉलर ग्रीन बांड की पेशकश करने वाली पहली भारतीय कंपनी बन गई। ये बांड 15 अक्टूबर 2019 को सिंगापुर एक्सचेंज सिक्योरिटीज ट्रेडिंग लिमिटेड (एसजीएक्स-एसटी) पर सूचीबद्ध हुआ था। और इसे 2039 में इसी तारीख को परिपक्व होना था।

एईसी यानी अमेरिका का सेबी
अमेरिका में ग्रीन बांड लाने के साथ ही अडाणी की यह कंपनी अमेरिकी सिक्योर्टी एंड एक्सचेज कमीशन यानी प्रतिभूति और विनिमय आयोग (एसईसी) की निगरानी में आ गई। इस घूसकांड का खुलासा करने वाली एसईसी दरअसल संयुक्त राज्य संघीय सरकार की एक स्वतंत्र एजेंसी है जो प्रतिभूति उद्योग को कंट्रोल करती है। इसे 1929 के वॉल स्ट्रीट दुर्घटना के बाद बनाया गया था। इसका मकसद बाजार में हेरफेर के खिलाफ कानून लागू करना और निवेशकों की सुरक्षा करना है। मोटे तौर पर भारत में यह काम भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड यानी सेबी करता है।

जांच में दो हिन्दुस्तानी
अडाणी और उनके सहयोगियों के खिलाफ जांच करने वालों में पांच अहम किरदार हैं जिनमें से दो भारतीय मूल के लोग भी हैं। ये दोनों सिक्योरिटी एक्सचेंज कमीशन से जुड़े हैं। इनमे एक भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक संजय वाधवा हैं जो एसईसी की इन्फोर्समेंट डिविजन के एक्टिंग डायरेक्टर हैं। बिजनेस और कानून दोनों की पढ़ाई करने वाले वाधवा ने इसी साल 11 अक्टूबर को यह जिम्मेदारी संभाली है। दूसरी भारतीय तेजल शाह हैं जो एसईसी न्यूयॉर्क ऑफिस में इन्फोर्समेंट डिवीजन की एसोसिएट रीजनल डायरेक्टर हैं। कथित रिश्वत देने की जांच तेजल शाह की देखरेख में ही हो रही है। वे 2014 से ही एसईसी से जुड़ी हैं। पिछले साल ही उन्हें एसोसिएट रीजनल डायरेक्टर नियुक्त किया गया था।

अमेरिकी कानून का शिकंजा
विदेशी भ्रष्ट आचरण ऐक्ट के तहत अमेरिकी पूंजी बाजार में उतरने वाली सभी कंपनियों को एसईसी को यह हलफनामा देना पड़ता है कि वह कानून को मानने वाली कंपनी है और कंपनी को प्रमोट करने के लिए वह किसी भी तरह के भ्रष्टाचार या रिश्वत की लेन-देन की प्रथा में यकीन नहीं रखती। अडाणी ग्रीन ने भी इसी तरह का हलफनामा एसईसी को दिया था। कंपनी को अपने निवेशकों को यह भी भरोसा दिया था कि निवेशकों की धन राशि ‘ग्रीन प्रोजेक्ट्स’ में इस्तेमाल होगी और कंपनी भ्रष्टाचार विरोधी नीतियों का पालन करेगी। लेकिन एसईसी को शिकायत मिली थी कि अडाणी ग्रीन के अधिकारी अपनी कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए रिश्वत का सहारा ले रहे हैं। जो बाइडन प्रशासन के इशारे पर एसईसी ने इन शिकायतों की जांच शुरू की जिसमें बाद में अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई भी शामिल हो गई। इन दोनों जांच एजेंसियों एसईसी और एफबीआई ने अपनी तफ्तीश में अडानी ग्रीन एनर्जी और उसकी सहयोगी कंपनी एज्योर पावर ग्लोबल लिमिटेड का इतिहास से लेकर वर्तमान तक खंखाल डाला। एज्योर पावर, बिजली उत्पादन, डेवलपर और वाणिज्यिक पैमाने के सौर बिजली संयंत्रों का संचालक है, जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। यह कंपनी अडाणी की कंपनी बनने से बहुत पहले से भारत में काम कर रही थी। इस कंपनी की स्थापना 2008 में इंद्रप्रीत वाधवा ने की थी। जांच के दौरान इस चर्चित घूसकांड का घटनाक्रम कुछ इस तरह सामने आया।

ठेका मिला पर खरीददार नहीं
2014 में नरेन्द्र मोदी की नई-नई सकार ने एलान किया वह 2022 तक देश में 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करना चाहती है, जिसमें से 100 गीगावाट बिजली सौर ऊर्जा से बनेगी। सरकार को यह काम किसी प्राइवेट प्लेयरों से कराना था। इसके लिए सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई) ने एक स्पेशल टेंडर जारी किया। टेंडर हासिल करने वाली कंपनियों को भारत में 3 गीगावाट की सौर ऊर्जा निर्माण क्षमता स्थापित करनी थी। इसके बदले एसईसीआई इन कंपनियों से 12 गीगावाट सौर ऊर्जा खरीदने का करार करती। इस टेंडर में अडाणी ग्रीन और एज्योर पॉवर ने हिस्सा लिया। इन दोनों कंपनियों को बड़ी आसानी से ठेका भी मिल गया। एज्योर पॉवर ने 1 गीगावाट निर्माण क्षमता और 4 गीगावाट ऊर्जा सप्लाई का वादा किया, जबकि अडानी ग्रीन ने 2 गीगावाट निर्माण क्षमता और 8 गीगावाट सप्लाई का प्रस्ताव दिया। 2020 में अडानी ग्रीन ने दावा किया कि यह परियोजना उन्हें 15 गीगावाट की कुल क्षमता तक पहुंचा देगी और कंपनी को 2025 तक दुनिया की सबसे बड़ी अक्षय ऊर्जा कंपनी बना देगी। लेकिन यहां एक बड़ा पेच था। एसईसीआई ने ‘लेटर ऑफ अवार्ड’ में यह साफ कर दिया था कि एसईसीआई कंपनियों से ऊर्जा खरीदने की गारंटी नहीं देता, इसके लिए संबंधित राज्य सरकारों की सहमति जरूरी है, क्योंकि ऐसी ऊर्जा का फायदा क्या जिसका कोई खरीददार न हो। जब एसईसीआई ने राज्य सरकारों और उनके बिजली वितरण निगमों से ऊर्जा खरीदने के लिए समझौता करने की कोशिश की, तो कई राज्यों ने बिजली खरीदने से इनकार कर दिया क्योंकि अडाणी ग्रीन और एज्योर पावर जिस दर पर बिजली दे रही थी, बाजार में उससे बहुत कम दरों पर ऊर्जा मुहैया थी। सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के अफसरों ने जब हाथ खड़े कर दिए तो राज्यों को बिजली खरीदने के लिए प्रेरित करने की जिम्मेदारी रसूखदार अडाणी समूह ने ले ली। अमेरिकी एजेंसियों ने पाया कि इसके लिए समूह के मुखिया गौतम अडाणी ने खुद मोर्चा संभाला।

रिश्वत का खेल
एसईसी का आरोप है कि अडाणी कंपनी के कार्यकारी निदेशक व गौतम अडाणी के भतीजे सागर अडाणी ने एज्योर पावर के अधिकारियों के साथ मिलकर यह योजना बनाई कि भारतीय राज्यों के बिजली वितरण निगमों को प्रभावित करने के लिए ‘प्रेरणा राशि’ यानी घूस दी जाए। एसईसी का आरोप है कि ओडिशा राज्य के अधिकारियों को 500 मेगावाट ऊर्जा खरीदने के लिए लाखों डॉलर की रिश्वत ऑफर की गई। वहीं, आंध्र प्रदेश के बिजली वितरण निगमों से 7,000 मेगावाट ऊर्जा खरीदने के लिए 200 मिलियन डॉलर की घूस ऑफर की गई। एसईसी का दावा है कि अडानी ग्रीन के आंतरिक रिकॉर्ड में इन रिश्वतों का पूरा विवरण दर्ज है। यह भी बताया गया कि किस राज्य को कितनी रकम ऑफर की गई और किसके जरिए। आखिरकार एसईसीआई ने ओडिशा और आंध्र प्रदेश सहित चार राज्यों के साथ ऊर्जा खरीद समझौते पर हस्ताक्षर किए। जुलाई 2021 से दिसंबर 2021 के बीच इन समझौतों के जरिए एसईसीआई ने बिजली वितरण निगमों को ऊर्जा बेचने का रास्ता साफ किया। इसके बाद एसईसीआई ने अडानी ग्रीन और एज्योर पावर के साथ ऊर्जा खरीद समझौते पर हस्ताक्षर किए।

यहां तक जो कुछ भी हुआ, वह भारत का आंतरिक मामला था। अमेरिकी एजेंसियों का इससे कोई लेना-देना नहीं कि कोई कंपनी अपने देश में कैसे टेंडर या काम हासिल करती है। लेकिन यहां चूक यह हो गई कि 2019 के अंत में अडानी ग्रीन ‘ग्रीन बॉन्ड्स’ के जरिए 750 मिलियन डॉलर जुटाने के लिए अमेरिकी पूंजी बाजार में कदम रख चुकी थी। वह कागजों में निवेशकों को यह भरोसा दिला चुकी थी कि यह विदेशी निवेश ‘ग्रीन प्रोजेक्ट्स’ में ही लगाया जाएगा और उनकी कंपनी भ्रष्टाचार विरोधी नीतियों का सख्ती से पालन करेगी। लेकिन जैसे कि एसईआई ने अपनी रिपोर्ट में लिखा ‘सच्चाई इससे अलग थी। अडाणी ग्रीन ने अपने निवेशकों से यह छिपाया कि उनकी सबसे बड़ी परियोजना मैन्युफैक्चरिंग लिंक्ड प्रोजेक्ट्स भ्रष्ट तरीकों से हासिल की गई थी।’

‘मिस्टर यानी न्यूमेर यूनो उर्फ गौतम आडाणी’
जांच एजेंसी एसईसी का दावा है कि गौतम अडाणी ने एज्योर पावर को सलाह दी कि वो अपनी हिस्सेदारी छिपे हुए कॉर्पोरेट ट्रांजेक्शन्स के जरिए अदा करे। इसके तहत एज्योर पावर ने अपने सबसे बड़े प्रोजेक्ट आंध्र प्रदेश में 2.3 गीगावाट पावर सप्लाई के राइट्स अडाणी ग्रीन को ट्रांसफर कर दिए। एज्योर पावर ने दिसंबर 2022 और फरवरी 2023 में एसईसीआई को पत्र लिखकर कहा कि आंध्र प्रदेश प्रोजेक्ट आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं है। लेकिन जांच एजेंसी एसईसी का कहना है यह केवल एक प्रीटेक्स्ट था ताकि एज्योर पावर यह प्रोजेक्ट अडाणी ग्रीन को ट्रांसफर कर सके। दिसंबर 2023 में अडाणी ग्रीन ने घोषणा की कि उसने एसईसीआई के साथ आंध्र प्रदेश प्रोजेक्ट के अधिकांश हिस्से के लिए पावर परचेज एग्रीमेंट साइन किया है। एसईसी का कहना है कि यह कदम एज्योर पावर की तरफ से अडाणी ग्रुप को उनकी रिश्वत की हिस्सेदारी चुकाने के लिए उठाया गया था। आरोप पत्र के मुताबिक यह दोनों कंपनियां मैसेजिंग ऐप, फोन और पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के जरिए और कभी-कभी अपने संवाद में ‘कोड नाम’ का उपयोग करके भारतीय अधिकारियों को अपने रिश्वत और प्रस्तावों पर नजर रखते थे। कई प्रतिवादियों ने गौतम अडाणी को ‘एसएजी’ ‘मिस्टर’ ‘ए’, ‘न्यूमेरो यूनो’ और ‘बड़ा आदमी’ कहा। जैन को ‘वी’, ‘सांप’ और ‘न्यूमेरो यूनो माइनस वन’ कहा जाता था।

जासूस लगे पीछे
एफबीआई ने प्रतिवादियों से मार्च 2023 में ही पूछताछ शुरू कर दी थी। अटॉर्नी रिपोर्ट में अमेरिकी एजेंसी ने पैरा 102 से पैरा 106 तक सागर आर. अडाणी से एफबीआई एजेंट की पूछताछ का ब्योरा दिया गया है। 17 मार्च, 2023 को एफबीआई ने बाकायदा तलाशी वारंट लेकर सागर अडाणी के न्यूयार्क स्थित आवास पर छापा मारा। उनके कब्जे में मौजूद सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को अपने कब्जे में ले लिया। इसमे एफबआई को ‘भारतीय सरकार के अधिकारियों को व्यावसायिक लाभ प्राप्त करने या बनाए रखने के लिए रिश्वत की पेशकश से संबंधित सबूत’ मिले। रिपार्ट के मुताबिक ‘अगले दिन गौतम अडाणी ने सागर आर. अडाणी पर निष्पादित सर्च वारंट और ग्रैंड जूरी समन के हर पन्ने की तस्वीरें खुद को ईमेल कीं।’

जांच के बाद एसईसी ने नतीजा निकाला कि ग्रीन एनर्जी के गौतम अडाणी और सागर अडाणी ने भारत में एक बड़ी सौर ऊर्जा परियोजना का ठेका पाने के लिए भारतीय राज्य सरकार के अधिकारियों को भारी रिश्वत ऑफर की। इस मामले में एक और कंपनी एज्योर पावर ग्लोबल लिमिटेड भी शामिल थी, जिसने इस रिश्वत का हिस्सा देने पर सहमति जताई थी। एसईसी का दावा है कि गौतम अडाणी और सागर अडाणी ने एज्योर पॉवर से रिश्वत की रकम वसूलने में भी भूमिका निभाई। बीते दिनों एसईसी ने अडाणी ग्रीन के खिलाफ चार्जशीट भी ईस्टर्न डिस्ट्रिक्ट ऑफ न्यूयॉर्क कोर्ट में दाखिल कर दी। ईस्टर्न डिस्ट्रिक्ट ऑफ न्यूयॉर्क के अटॉर्नी ब्रियोन पीस ने कहा, ‘मेरा कार्यालय अंतरराष्ट्रीय बाजार से भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके अलावा निवेशकों को उन लोगों से बचाना है, जो हमारे वित्तीय बाजारों की विश्वसनीयता की कीमत पर ख़ुद को अमीर बनाना चाहते हैं।’

रिश्वत के आरोपों में घिरीं गैर भाजपाई सरकारें

वर्तमान में अडाणी ग्रीन एनर्जी भारत के 11 राज्यों उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना में 46 परिचालन परियोजनाओं सहित 5,290 मेगावाट पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा संयंत्रों का प्रबंधन करती है। यह बिजली सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई) के जरिए इन्हीं राज्यों को बेची जानी थी। अटार्नी की रिपोर्ट के मुताबिक अडाणी समूह ने 2021-2023 के बीच राज्य बिजली वितरण कंपनियों के साथ अनुबंध हासिल करने के लिए 265 मिलियन अमेरिकी डॉलर की रिश्वत दी। गौतम अडानी पर जिन राज्यों में कान्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए अधिकारियों को रिश्वत देने का आरोप लगा है उनमें छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु में कांग्रेस और उसकी सहयोगी डीएमके, आंध्र प्रदेश में वाईएसआरसीपी (जगन मोहन रेड्डी), ओडिशा में बीजेडी यानी नवीन पटनायक की सरकारें थीं। दस्तावेजों में जम्मू-कश्मीर का भी जिक्र है, जहां उपराज्यपाल का शासन था।

सोलर एनर्जी सप्लाई करने का कान्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए इन राज्यों के सरकारी अधिकारियों को को रिश्वत ऑफर की गई। आरोपों के मुताबिक, अडाणी ने समझौतों को आगे बढ़ाने के लिए 2021 में कई मौकों पर आंध्र प्रदेश में ‘फॉरेन ऑफिसियल#1’ के साथ व्यक्तिगत रूप से बातचीत की। अडाणी ने 2021 में 7 अगस्त, 12 सितंबर और 20 नवंबर को इस अधिकारी से मुलाकात की। इसके बाद, आंध्र प्रदेश की बिजली वितरण कंपनियों ने एसईसीआई के साथ एक पावर सेल एग्रीमेंट साइन किया, जिसके तहत 7 गीगावॉट सोलर एनर्जी खरीदने पर सहमति व्यक्त की गई। जुलाई 2021 से फरवरी 2022 के बीच अन्य राज्यों ओडिशा, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु ने भी अडानी ग्रुप से सोलर एनर्जी खरीदने के लिए डील साइन करने का फैसला किया। अमेरिकी प्रॉसिक्यूटर ने आरोप लगाया है कि इस रिश्वत स्कैंडल को गुप्त रखने के लिए मीटिंग के दौरान कोड नेम का इस्तेमाल किया गया। अमेरिक रिश्वत घोटले में कथित घूसखोर राज्यों के नाम उजागर होने के बाद तत्कालीन सरकारों के नेता बैकफुट पर आ गए हैं। सब कह रहे हैं कि उनका सौदा सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया से हुआ था, अडाणी की कंपनी से नहीं।

आंध्र प्रदेश : क्या कहना है जगन का
आरोपों पर जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआरसीपी ने जारी बयान में कहा कि 7,000 मेगावाट सोलर एनर्जी खरीद को आंध्र प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने 11 नवंबर, 2021 को मंजूरी दी थी। आयोग की मंजूरी के बाद, एर्ससीआई और आंध्र प्रदेश की बिजली वितरण कंपनियों के बीच 1 दिसंबर, 2021 को पावर सेल एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए गए। इसके लिए केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग ने भी मंजूरी दी थी। यह बताना जरूरी है कि एसईसीआई भारत सरकार का उद्यम है।

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