झारखण्डदस्तक-विशेषराज्य

21वीं सदी में भारत : हेमंत ने दिया राजनीति को नया मुहावरा

झारखंड की राजनीति : 24 वर्षों का सफर

झारखंड ने राजनीति में स्थापना काल से ही कई सियासी उतार-चढ़ाव देखे हैं। प्रदेश के लोगों ने 24 साल के राजनीतिक कालखंड में कई मुख्यमंत्रियों को देखा है। कई बार तो बॉलीवुड ‘थ्रिलर’ की तरह सूबे में नेतृत्व परिवर्तन हुए हैं। झारखंड के चौथी बार सीएम बनने वाले हेमंत सोरेन ने स्थायित्व का नया मुहावरा गढ़ के सूबे की राजनीति को एक नई दिशा दी। नई सदी में झारखंड की राजनीति में आए उतार- चढ़ाव का आकलन कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार उदय कुमार चौहान।

झारखंड के बारे में कहा जाता है कि यहां भाषा और राजनीति हर सौ किलोमीटर पर बदल जाती है। मसलन पश्चिम बंगाल से लगे झारखंड के इलाकों की बोली में बंगाली का मिश्रण है। उसी तरह ओडिशा से लगे हुए इलाके भी अलग मिजाज दिखता है तो बिहार से लगे हुए इलाकों पर बिहारी संस्कृति हावी रही है। आदिवासियों में भी अलग-अलग संस्कृतियां देखने को मिलती हैं। जाहिर है यहां चुनावी मुद्दे भी अलग-अलग हैं। झारखंड के बोकारो, जमशेदपुर और धनबाद को औद्योगिक क्षेत्र के रूप में जाना जाता रहा है जो इस राज्य के दूसरे हिस्सों से बिलकुल अलग हैं। राज्य विधानसभा में सिर्फ 81 सीटें हैं। यहां किसी भी दल या गठबंधन को पूर्ण बहुमत नहीं मिलना भी एक प्रमुख कारण रहा है पर अब तस्वीर बदली है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने 28 नवंबर 2024 को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने के साथ ही दो रिकॉर्ड बनाए। वह झारखंड के चौथी बार सीएम बनने वाले राज्य के पहले नेता हैं। साथ ही लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी करने वाले पहले मुख्यमंत्री बने हैं।

झारखंड राज्य का गठन पुरानी सदी के अंतिम साल यानी 15 नवंबर, 2000 को हुआ था। यह बिहार से अलग हुआ था। झारखंड के अस्तित्व में आने के बाद से राज्य के करीब ढाई दशक के राजनीतिक सफर में कई प्रयोग देखने को मिलते रहे। राजनीतिक उथल-पुथल के बीच 2014 तक झारखंड में कभी भी किसी सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया। शुरुआती दौर में झारखंड अपनी सरकारों की अस्थिरता को लेकर देशभर में चर्चा में रहता था। पर धीरे-धीरे राज्य विकास के पथ पर आगे बढ़ा और सूबे की राजनीति और यहां की जनता भी परिपक्व होती चली गई। झारखंड में पहली बार 2014 में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी। 2014 में बीजेपी ने रघुबर दास को मुख्यमंत्री बनाया और उन्होंने 2019 तक अपना कार्यकाल पूरा किया। 2019 में बीजेपी की हार हुई और झामुमो के नेतृत्व में एक बार फिर जनता ने स्थायी सरकार के लिए अपना वोट दिया और हेमंत सोरेन के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार बनी। हेमंत सोरेन ने दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली। हालांकि, चुनाव से कुछ महीने पहले उन्हें ईडी ने भूमि घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में गिरफ्तार किया, तो सोरेन को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। वह पांच महीने जेल में रहे। इस दौरान चंपाई सोरेन ने मुख्यमंत्री पद संभाला। सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद हेमंत सोरेन जेल से बाहर आए। चंपाई ने इस्तीफा दिया और हेमंत ने तीसरी बार सीएम पद की शपथ ली।

सूबे के सियासी मिजाज ने बहुत उतार-चढ़ाव देखे। झारखंड की राजनीति के शुरुआती दौर में झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल ने 25 दिसंबर 2009 को कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी से उन्होंने ही आग्रह कर अलग राज्य के लिए 15 नवंबर की तारीख तय करायी थी। उन्होंने कहा था कि 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती है, इसलिए यह दिन बेहद शुभ है। बाबूलाल पहले सीएम बने। 2002 में ही इस एनडीए सरकार के दो सहयोगी दलों जदयू व समता पार्टी के विधायकों ने बगावत कर दी। ये लोग यूपीए के साथ हो लिये। पहले स्पीकर जदयू के इंदर सिंह नामधारी को बतौर सीएम पेश किया गया। ड्रामा हुआ। यूपीए अपने विधायकों सहित एनडीए के असंतुष्टों को बस (कृष्णारथ) से बुंडू ले गया था। राजद विधायक संजय यादव चालक बने थे व स्टीफन कंडक्टर। 16 मार्च 2003 को बुंडू में ताश (जोबा मांझी के साथ) और चेस व लूडो (अन्नपूर्णा के साथ) खेला गया। एनडीए में अर्जुन मुंडा सीएम बने।

अर्जुन मुंडा की सरकार चलती रही। फिर 2005 में झारखंड का पहला चुनाव हुआ। स्थिति स्पष्ट नहीं थी। फिर भी तत्कालीन राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने शिबू सोरेन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। शिबू सोरेन के पास बहुमत नहीं था। एनडीए ने अपने विधायकों की दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में परेड (17 मार्च 05) करा दी। मामला सुप्रीम कोर्ट भी गया। कोर्ट के आदेश पर यूपीए को बहुमत साबित करने के लिए कहा गया। कमलेश सिंह और जोबा माझी ने यूपीए को धोखा दे दिया। 10 दिन मुख्यमंत्री रहे शिबू सोरेन ने विधानसभा में बहुमत साबित करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया।

अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में बनी झारखंड सरकार
तीसरी राज्य सरकार बनने से पूर्व राष्ट्रीय जनतांत्रित गठबंधन ने इस डर से कि उनके विधायक पलटी न मार दें, उन्हें जयपुर की सैर करायी थी। उस यात्रा में विधायक लगभग नजरबंद थे। विधायकों को अपने पास रखने के लिए हर तरह के उपाय किये गये। देशभर में राजनीति की इस झारखंडी शैली की आलोचना हुई थी। उस समय काफी राजनीति हुई थी। राज्य में पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला था। अंतत: राज्य में फिर से अर्जुन मुंडा की सरकार बनी, जिसे सरकार चलाने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

इसी मुंडा सरकार में मधु कोड़ा भी मंत्री थे। कोड़ा को सीएम अर्जुन मुंडा व गृहमंत्री सुदेश महतो की कार्यशैली नापसंद थी। इसी बीच कोड़ा दिल्ली गये। यूपीए से मन की बात कही। तीन निर्दलीय विधायकों एनोस, कमलेश व हरिनारायण को पाले में लिया। एनोस व हरिनारायण तो दिल्ली पहुंचे, लेकिन कमलेश जमशेदपुर में धरा गये। बाद में कोड़ा सहित तीनों ने सरकार से इस्तीफा दे दिया। यूपीए के विधायकों को सैर करायी गयी। सभी विशेष विमान से रांची पहुंचे। अर्जुन मुंडा ने भी इस्तीफा (14 सितंबर 2006) सौंप दिया। कोड़ा के नेतृत्व में सरकार बनी।

कोड़ा सरकार चलती रही। इधर शिबू सोरेन केन्द्र में कांग्रेस की सरकार को बचाने के इनाम में सीएम का पद चाहते थे। कोड़ा सरकार के दो साल होने से एक माह पहले ही उन्होंने मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोंक दिया। कांग्रेस व राजद को शिबू के सामने झुकना पड़ा। तब कोड़ा ने बेमन से सीएम की कुर्सी छोड़ दी। शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बन गये। सभी निर्दलीय विधायकों को भी मंत्री बनाया गया। इधर, चार माह बाद ही शिबू सोरेन तमाड़ उपचुनाव हार गये। 19 जनवरी 2009 को पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा। राज्यपाल थे सैयद सिब्ते रजी। झारखंड का पहला राष्ट्रपति शासन काल रजी के बाद राज्यपाल के. शंकरनारायणन के कारण यादगार बन गया। उन्होंने बेहतर कार्य किये। इसी बीच 2009 का चुनाव हुआ। 23 दिसंबर 09 को जब परिणाम की घोषणा हुई, तो राज्य की जनता फिर खुद को ठगा महसूस करने लगी। विधानसभा फिर त्रिशंकु हो गयी थी। फिर से जोड़-तोड़ का खेल शुरू हो गया। आजसू के सहयोग से राज्य में भाजपा-झामुमो की सरकार बनी। लोकसभा के सांसद शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बने। सरकार चल रही थी। शिबू को किसी सीट से विस चुनाव लड़ना था। इसी बीच शिबू ने लोकसभा में कटमोशन के दौरान यूपीए को वोट दे दिया। इधर, झारखंड में शिबू सरकार के सहयोगी दल भाजपा को नागवार गुजरा। समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद एक जून 10 को दोबारा राष्ट्रपति शासन लगा। तीन माह बाद भाजपा व झामुमो फिर एक मंच पर आये। झामुमो के अनुसार 18-18 माह सरकार में रहने की शर्त पर सरकार बनी। पहले भाजपा को मौका मिला। अर्जुन मुंडा आठवें सीएम बने। फिर अपनी बारी को लेकर झामुमो ने सरकार गिरा दी।

सोरेन की सियासत
अर्जुन मुंडा के इस्तीफा देने के बाद किसी दल ने सरकार बनाने का दावा नहीं किया। इस कारण राज्य में 18 जनवरी 2013 को राष्ट्रपति शासन लग गया। 18 जुलाई को राष्ट्रपति शासन के छह माह पूरे होने वाले थे। जनवरी माह में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने स्थिति का जायजा लेने के लिए बैठक की। शकील अहमद ने पार्टी विधायकों के साथ बैठक की। जुलाई के दूसरे सप्ताह में सबने हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री बनाना तय किया। पहली बार 13 जुलाई 2013 को हेमंत के हाथ में सरकार की बागडोर गयी। वर्ष 2014 में दिसंबर के तीसरे सप्ताह में हुए चुनाव के बाद एनडीए बहुमत के करीब पहुंच गयी थी। पहली बार गैर आदिवासी मुख्यमंत्री की बात होने लगी थी। रघुवर दास पर सबकी निगाह टिकी थी। एनडीए की जीत के बाद दिल्ली में हुई बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रघुवर दास को मुख्यमंत्री बनाये जाने का प्रस्ताव रखा गया था। 28 दिसंबर 2014 को रघुवर दास ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व वाले झाविमो के आधा दर्जन विधायक भाजपा में शामिल हो गये। दास 2019 तक सीएम रहे। वर्ष 2019 के अंत में हुए विधानसभा चुनाव में झामुमो को 30 सीट मिली। 18 सीट कांग्रेस तथा एक-एक सीट माले और राजद को मिली।

निर्दलीय सरयू राय ने भी सरकार का समर्थन किया। इसके बाद 29 दिसंबर 2019 में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बहुमत की सरकार बनी। सरकार 31 जनवरी 2024 तक चली। इसी दिन सीएम हेमंत सोरेन से ईडी ने पूछताछ की। इसी क्रम में सीएम ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद चंपाई को सीएम बनने का मौका मिला। दो दिनों तक राज्य में असमंजस्य की स्थिति रही। मुख्यमंत्री कौन बनेगा, इसको लेकर चर्चाएं होती रहीं। बाद में इंडिया गठबंधन ने संयुक्त रूप से झामुमो के वरिष्ठ नेता चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया। चंपाई सोरेन ने दो फरवरी 2024 को सीएम पद की शपथ ली। जून माह के अंतिम सप्ताह में जेल से बाहर आने के बाद हेमंत सोरेन ने चंपाई सोरेन को इस्तीफा देने के लिए कहा। इसे लेकर कई तरह की चर्चा होती रही। चंपाई सोरेन ने भारी दबाव के बीच मुख्यमंत्री पद से अपना इस्तीफा दे दिया।

धमाकेदार वापसी
3 जुलाई 2024 को चंपाई सोरेन ने राज्य सरकार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और चार जुलाई को हेमंत सोरेन ने तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने के कुछ माह बाद ही चंपाई सोरेन ने हेमंत सोरेन पर कई आरोप लगाये और भाजपा के साथ हो लिये। इसके बाद काफी उथल-पुथल का दौर रहा और झारखंड की राजनीति में काफी गहमा-गहमी रही। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सीएम रहते काफी चुनौतियों और दबाव का सामना करना पड़ा। चुनाव के बाद नई सरकार के प्रमुख के रूप में हेमंत सोरेन ने 28 नवंबर, 2024 को चौथी बार और राज्य के 14वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और दो रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज कर लिए। इससे पहले झारखंड में कोई सरकार लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए सत्ता में नहीं आ सकी थी। वहीं, हेमंत सोरेन ने चौथी बार सीएम पद की शपथ लेकर अपने पिता शिबू सोरेन और बीजेपी नेता अर्जुन मुंडा के तीन बार मुख्यमंत्री रहने के रिकॉर्ड को तोड़ दिया। झारखंड की राजनीति में एक तरह से नये युग की शुरुआत है जब न सिर्फ पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है बल्कि किसी सरकार पर जनता ने दोबारा विश्वास जताया है और 56 सीटें दी हैं।

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