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टल सकती है आरएसएस की करीबी तुलसी गबार्ड की नियुक्ति

अमेरिकी सिनेटर सेन बैरासो ने कहा ” कागजी कार्रवाई की समस्या” के कारण रुकी हुई है तुलसी गबार्ड की पुष्टिकरण सुनवाई रुकी हुई है

दस्तक डेस्क: आरएसएस से नजदीकी और सीरिया के तानाशाह से उनके रिश्ते, अमेरिका की नवनियुक्त राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड के लिए मुसीबत बन सकते हैं। अमेरिका की पहली हिंदू सीनेट तुलसी गबार्ड की नियुक्ति कागजी कार्यवाही में फंस गई है। ऐसे में 20 जनवरी को जब नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी नई बनाई टीम के साथ अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लें तो हो सकता है उनके साथ तुलसी गबार्ड शामिल न हों।

अमेरिका में किसी अहम पद पर नियुक्ति से पहले एक लंबी चौड़ी कागजी कार्यवाही होती है। नियुक्त होने वाले की व्यक्ति की बाकायदा Government Ethics Office जांच करता है। इसके अलावा उस व्यक्ति को अमेरिकी संसद की सीनेट इंटेलिजेंस कमेटी के सामने पेश होकर उनके सवालों के जवाब देने होते हैं। इस सुनवाई और कमेटी की हरी झंडी के बाद ही फाइल अमेरीकी संसद यानी सीनेट के पास जाती है और सीनेट के confirmation के बाद ही संवैधानिक पदों पर उस व्यक्ति की नियुक्ति होती है।

अमेरीकी सीनेटर जॉन बैरासो ने खुलासा किया है कि राष्ट्रीय खुफिया निदेशक के लिए नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चुनी गई तुलसी गबार्ड के confirmation की सुनवाई सरकारी नैतिकता कार्यालय में “कागजी कार्रवाई की समस्या” के कारण रुकी हुई है। हो सकता है अब ये सुनवाई अगले हफ्ते के लिए टल जाए। रिपब्लिकन के सांसद जॉन बैरासो पार्टी के सचेतक हैं। व्हिप के रूप में उन्हें तुलसी की इस नियुक्ति के लिए रिपब्लिकन सांसदों वोट जुटाने हैं। तुलसी डेमोक्रेट पार्टी से आईं हैं इसलिए रिपब्लिकन सांसद उन्हें शक की नजर से देखते हैं।

हिंदू सांसद तुलसी के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और आरएसएस से करीबी रिश्ते हैं। उन्हें चुनाव जिताने के लिए फंड जुटाने का काम आरएसएस लॉबी करती रही है। अमेरिका में उन्हें उनके विरोधी आरएसएस की राजकुमारी के नाम से चिढ़ाते हैं। हाथों में ‘तुलसी प्रिसेज ऑफ द आरएसएस’ की तख्‍ती लेकर उनके खिलाफ कई प्रदर्शन भी हो चुके हैं। लेकिन आरएसएस से नजदीकी य उससे फंडिंग लेना कोई बड़ी बात नहीं है। अमेरीकी चुनावों में यह आम है। तुलसी की असली मुसीबत उनका इतिहास है जिसमे सीरिया के तानाशाह राष्ट्रपति बशर अल-असद से उनके संबंध शामिल हैं।

दरअसल 2011 में सीरिया में तानाशाह राष्ट्रपति बशर अल-असद के खिलाफ जबरदस्त विरोध हुआ था जो बाद में विद्रोह में बदल गया। राष्ट्रपति बशर अल-असद ने इस शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों पर बेरहमी से दमन किया। तत्कालीन अमेरीकी सरकार ने जब इस दमन का विरोध किया तो तुलसी गबार्ड ने सीरियाई युद्ध में अमेरिकी हस्तक्षेप पर गहरा एतराज जताया था। तब उन्होंने पूर्व डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन की आलोचना भी की थी। गबार्ड ने सीएनएन को 2017 में सीरिया की अपनी एक गुप्त यात्रा के दौरान अल-असद से मुलकात का खुलासा भी किया था। उन्होंने सीएनएन से कहा, “सीरियाई लोगों को स्वयं अपना भविष्य तय करने दीजिए, न कि संयुक्त राज्य अमेरिका या किसी विदेशी देश को।” इसे लेकर रिपब्लिकन सांसदों की नाराजगी अभी खत्म नहीं हुई है।

तुलसी पर यह भी आरोप है कि वह रूसी राष्‍ट्रपति पुतिन की अमेरिकी एजेंट हैं। याद कीजिए रूस ने 24 फरवरी, 2022 को यूक्रेन पर बड़े पैमाने पर आक्रमण शुरू कर दिया था। इसके ठीक तीन दिन बाद तुलसी गबार्ड ने अपने एक्स अकाउंट पर एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें अमेरिका, रूस और यूक्रेन से “भू-राजनीति को अलग रखने” की बात कही। तुलसी ने अपनी सरकार को यह स्वीकार करने का आग्रह किया गया कि यूक्रेन नाटो जैसे सैन्य गठबंधनों का सदस्य बने बिना “एक तटस्थ देश रहेगा।” रूस शुरू से यही चाहता था। ये युद्ध छिड़ा ही इसी सवाल पर था। इस बयान के साथ ही तुलसी विवादों मे आ गईं।

अब Government Ethics Office ये जांच कर रहा है कि तुलसी के इन विचारों के पीछे उनकी क्या मंशा थी? आरएसएस, रूस या सीरिया से उनके रिश्ते किस तरह के हैं? बैरासो ने एक इंटरव्यू में कहा- वह खुद तुलसी गबार्ड के पक्के समर्थक हैं और गबार्ड के confirmation के लिए उनके पास सांसदों के पर्याप्त वोट हैं। इसलिए चिंता की कोई बात नही है। तुलसी, अमेरिका को सुरक्षित रखने के लिए सही व्यक्ति हैं।

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