अन्तर्राष्ट्रीय

नविंदर, जिन्होंने बेडरूम से 300 करोड़ रुपए कमाए

एजेन्सी/  navinder-sarao_landscape_1458988662पश्चिमी लंदन में मौजूद हाउंस्लो के अपने माता-पिता के घर से शेयर बाजार में कारोबार करने वाले नविन्दर सराओ को 2010 में बाज़ार में गड़बड़ी करने का दोषी पाया गया है। आरोप है कि इस कारण अमरीकी डाओ जोंस सूचकांक एक हज़ार अंकों तक गिर गया था। अमेरिका में नविंदर सराओ पर 22 अलग-अलग आरोप लगे हैं। इनमें धोखाधड़ी और स्पूफ‌िंग शामिल हैं। स्पूफ‌िंग का मतलब है इस मंशा से खरीद-फरोख्त करना कि सौदा होने से पहले ही लेनदेन रद्द कर दिया जाए। हालांकि नविंदर सराओ इन आरोपों से इनकार करते हैं। एक पल के लिए अगर उनके दोषी या निर्दोष होने की बात छोड़ भी दें तो भी उन्होंने जो किया वह ताज्जुब में डालने वाला है।

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अपने माता-पिता के घर के कंप्यूटर से 37 साल के सराओ ने शिकागो एक्सचेंज में कारोबार किया, जहां वह कभी गए ही नहीं थे। इस तरह पांच साल में उन्होंने 30 मिलियन पाउंड से ज़्यादा कमा लिए।
ठहरिए, नविंदर शिकागो मर्केंटाइल एक्सचेंज में ऑपरेट कर रहे थे, जो पूरी तरह कंप्यूटराइज़्ड बाज़ार है और जहां किसी इंसान के लिए बहुत कम मौके होते हैं। आला दर्जे के ट्रेडिंग प्रोग्राम यहां तेजी से क़ीमतों का उतार-चढ़ाव पकड़ लेते हैं और अमूमन इंसानी सुस्त कारोबार से आगे रहते हैं।

एक इंसान एक्सचेंज में पब्लिश होने के कम से कम आधे सेकेंड बाद ही स्क्रीन पर खरीदारी को दर्ज देख पाता है। बाज़ार उठाना बड़ी बात है, इसलिए जितनी जल्दी आप ख़रीद सकते हैं उतना पैसा कमा सकते हैं। चूंकि आपका मुक़ाबला कंप्यूटरों से है, इसलिए जब तक आप खरीदने के लिए बाय का बटन दबाते हैं देर हो चुकी होती है। आपके दिमाग़ को देखने के बाद फ़ैसला लेने में आधे सेकेंड का वक़्त लगा वहीं कंप्यूटर ने इसे कुछ मिलिसेकेंड्स में पूरा कर दिया। कारोबारियों ने इसे तेजी से खरीदा, इसकी कीमत बढ़ी और आप पैसा कमाने का मौका गंवा बैठे। शिकागो में ये प्रतिस्पर्धा इतनी तेज़ है उसमें ख़रीद-फ़रोख़्त के लिए कारोबारियों में महज़ मिलिसेकेंड्स का फर्क होता है।

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शायद नविंदर और उनसे पहले लोगों ने जो किया वह था हाई फ्रीक्वेंसी कारोबार के कारण बाज़ार में मची घबराहट। चूंकि ज़्यादातर हाई फ्रीक्वेंसी कारोबारियों के पास एक जैसे सॉफ़्टवेयर होते हैं, जो बड़े पैमाने पर ख़रीद का आदेश पहचानकर बाज़ार के चलन पर काम करते हैं, तो सभी कारोबारी कमोबेश एक सा ही क़दम उठाते हैं, बिल्कुल भेड़ों की तरह। एफ़बीआई जांचकर्ताओं के मुताबिक़ सराओ ने इस सॉफ़्टवेयर यानी एक कारोबारी एल्गोरिद्म को इसके लिए संशोधित किया। उनके मुताबिक़ इसे तेज़ रफ़्तार से इस्तेमाल करके वह बड़ी तादाद में शेयर बेच रहा था, जो कभी कभी एक ही दिन में हज़ारों-करोड़ों डॉलर के होते थे। मगर उन्हें आगे ले जाने में उनकी दिलचस्पी नहीं थी। इसके बजाय वह कंप्यूटराइज़्ड कारोबारियों को ये यक़ीन दिलाने में कामयाब रहते थे कि बिक्री के ऑर्डर, ख़रीद के ऑर्डर से कहीं ज़्यादा हैं और बाज़ार नीचे गिरने वाला है। नतीजा ये कि कंप्यूटराइज़्ड कारोबारी नुक़सान से बचने के लिए अपने शेयर बेचने लगते थे। पर लगातार शेयर बिक्री से बाज़ार में क़ीमत घटने लगती थीं।

एफबीआई के मुताबिक़ इस बीच सराओ कीमतें घटने का इंतज़ार करते हुए ख़ुद ख़रीददारी करने लगते थे और कम क़ीमत में ख़रीद करके बिक्री का ऑर्डर रद्द कर देते थे। जब तक बाज़ार समझता कि बिक्री का ऑर्डर जा चुका है, क़ीमतें वापस बढ़ जाती थीं। और फिर सराओ ऊंची क़ीमत पर उसे बेचकर भारी मुनाफ़ा कमा लेते थे। ये मुनाफ़ा बेशक कम होता था पर अगर यह हर घंटे कई बार दोहराया जाता तो कुल मुनाफ़ा काफ़ी हो सकता था। एफबीआई के मुताबिक़ यह मांग नकली होती थी ताकि बाज़ार को ठगा जा सके। अमरीकी क़ानून में स्पूफ़िंग गुनाह है। एफ़बीआई ने सराओ पर न सिर्फ़ बाज़ार में हेराफेरी करने के लिए शेयरों की झूठी ख़रीद-फ़रोख़्त का आरोप लगाया बल्कि उन पर 6 मई 2010 को बाज़ार क्रैश कराने का भी आरोप जड़ा। उस दिन कुछ ही मिनट में डाओ जोंस का सूचकांक 700 अंक नीचे लुढ़क गया था। इससे अमरीकी शेयरों को 800 बिलियन डॉलर का नुक़सान हुआ। हालांकि बाज़ार जल्द ही संभल भी गया था। एफबीआई का दावा है कि इसके लिए कुछ हद तक सराओ की गतिविधियां ही ज़िम्मेदार थीं।

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सराओ के वकील जेम्स लुविस ने एफ़बीआई के दावे खारिज़ करते हुए उन लोगों के तर्क की ओर इशारा किया जो मानते हैं कि 2010 फ्लैश क्रैश के लिए सराओ ज़िम्मेदार नहीं हो सकते। उल्टे उन्होंने इसके लिए वाडेल एंड रीड नाम की अमरीकी हेज फंड कंपनी को ज़िम्मेदार ठहराया जिसने भारी संख्या में बिक्री के ऑर्डर दिए थे। अमेरिकी नियामक द कमोडिटीज़ एंड फ़्यूचर्स ट्रेडिंग कमीशन भी इसी नतीजे पर पहुँची थी। सराओ के वकीलों ने अमरीकी अधिकारियों पर क़ानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग का आरोप लगाया है। अमेरिका के साथ ब्रिटिश प्रत्यर्पण संधि के मुताबिक़ अभियुक्त को ब्रिटेन से तभी प्रत्यर्पित किया जा सकता है, जब उन पर लगा इल्ज़ाम ब्रिटिश क़ानून में भी अपराध माना जाए। मगर, ब्रिटेन में स्पूफ़िंग अपराध नहीं है।

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सराओ के वकीलों ने उन्हें कोई सार्वजनिक बयान देने से मना किया है इसलिए सराओ के व्यक्तित्व के बारे में कोई जानकारी नहीं है। स्कूल में सराओ को होनहार और तेज़ छात्र माना जाता था। वकीलों के मुताबिक़ सराओ को आस्पेर्जर सिंड्रोम है जिसमें पीड़ित व्यक्ति सामाजिक तौर पर ज़्यादा नहीं जुड़ पाता। 2010 में सराओ ने कैरिबियाई द्वीप नेविस में एक डेयरी कंपनी खोली थी, जिसे इस काम से ज़्यादा कोई मतलब नहीं था। इसकी भी जानकारी है कि सराओ ने अपना बेडरूम छोड़े बिना 30 मिलियन पाउंड कमाए थे। हालांकि वह कोई दिखावे की ज़िंदगी नहीं जीते थे। लेकिन ये बातें उन्हें गुनाहगार साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। नविन्दर सराओ को पिछले साल अप्रैल से अगस्त तक क़ैद में रखा गया था क्योंकि वह अमरीकी ज़मानत की शर्तें पूरी नहीं कर पाए थे। नाराज़ सराओ ने कोर्ट में विरोध करते हुए पूछा कि ऐसा कैसे होने दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया था कि उन्हें अपने काम में अच्छा होने के लिए सज़ा दी जा रही है।

 
 

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