फाइलेरिया रोग के तकनीकी पहलुओं से रूबरू हुए स्वास्थ्य कार्यकर्ता

रोगी हितधारक मंच के निर्माण की अवधारणा और उद्देश्य पर दी जानकारी
बाराबंकी : क्या आप जानते हैं कि फाइलेरिया (हाथीपांव) एक ऐसी बीमारी है जो एक बार हो जाए तो जीवन भर पीछा नहीं छोड़ती? यह मच्छर के ज़रिए फैलने वाला संक्रमण धीरे-धीरे शरीर के अंगों को सूजन, दर्द और विकलांगता की ओर ले जाता है। इसका कोई स्थायी इलाज नहीं है- लेकिन सही देखभाल, साफ-सफाई, व्यायाम और अन्य उपायों के माध्यम से बीमारी की गंभीरता को कम करने और विकलांगता जैसी स्थिति होने से रोक जा सकता है। यह बातें सूरतगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में आयोजित एमएमडीपी (“रुग्णता प्रबंधन एवं विकलांगता निवारण”) प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान डीसी पाथ, मोहम्मद शकील ने कही।
उन्होंने कहा- फाइलेरिया से ग्रसित व्यक्ति के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ है – लगातार देखभाल। हम मरीजों से कहते हैं कि वे हर दिन प्रभावित अंगों को साबुन और साफ पानी से धोकर अच्छी तरह सुखाएं। सूजन वाले अंग को ऊंचा रखकर आराम देना चाहिए, और लसीका तरल के प्रवाह को बेहतर करने के लिए कुछ हल्के-फुल्के व्यायाम जरूर करने चाहिए। ये व्यायाम बेहद सरल होते हैं और घर पर ही किए जा सकते हैं। अगर ये छोटी-छोटी बातें रोज़मर्रा की आदत बन जाएं, तो मरीज न केवल बीमारी के असर को कम कर सकता है, बल्कि एक सामान्य और सम्मानजनक जीवन भी जी सकता है।

उन्होंने रोगी हितधारक मंच की अवधारणा के बारे में जानकारी दी और बताया कि इस मंच का नेतृत्व सीएचओ करते हैं। इसमें फाइलेरिया रोगियों के साथ आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, कोटेदार, ग्राम प्रधान, शिक्षक, स्वयं सहायता समूह के सदस्य और स्थानीय प्रभावशाली लोग शामिल होते हैं। यह मंच न केवल मरीजों को लगातार देखभाल और मानसिक सहयोग प्रदान करता है, बल्कि समय-समय पर चिकित्सकीय सलाह भी उपलब्ध कराता है। इसके माध्यम से फाइलेरिया मरीजों को बेहतर दिनचर्या अपनाने में मदद मिलती है।
इस अवसर पर उपस्थित जिला मलेरिया अधिकारी सुजाता ठाकुर ने फाइलेरिया से बचाव पर ज़ोर देते हुए कहा -फाइलेरिया का कोई इलाज नहीं है, साल में एक बार एमडीए अभियान के दौरान फाइलेरिया से बचाव की दवाएं सेवन करने से इस रोग से बच जा सकता है। वहीं जिन्हें यह रोग हो गया है वह सभी मरीज एमएमडीपी कैम्प से सही देखभाल की जानकारी लेकर रोग को गंभीर होने से रोक सकते हैं। उन्होंने कहा “फाइलेरिया लाइलाज ज़रूर है, लेकिन अगर मरीज को देखभाल का सहारा मिले और स्वास्थ्यकर्मी साथ दें, तो जीवन कभी थमता नहीं– यह चलता रहता है, पूरे सम्मान और आत्मबल के साथ।” प्रशिक्षण में सीएचओ, एएनएम, संगिनी, फाइलेरिया मरीज, सीफार प्रतिनिधि व स्वास्थ्य विभाग से जुड़े अन्य अधिकारी बीपीएम, बीसीपीएम, एचईओ, एआरओ सहित 57 लोगों ने प्रतिभाग किया।