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शक्तिशाली भूकंप के बाद रूस का ज्वालामुखी फटा, 450 साल बाद हुआ विस्फोट

नई दिल्ली: रूस के पूर्वी कामचटका क्षेत्र में एक ज्वालामुखी, क्रशेनिनिकोव, 450 साल में पहली बार फटा है। यह विस्फोट इस क्षेत्र में आए अब तक के सबसे शक्तिशाली भूकंपों में से एक के बाद हुआ है। स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन के ग्लोबल वोल्केनिज्म प्रोग्राम के अनुसार, 1550 में अपने अंतिम विस्फोट के बाद से यह ज्वालामुखी शांत था। अब इसमें से राख का एक विशाल गुबार निकला है, जिसकी ऊंचाई लगभग 6,000 मीटर (19,700 फीट) तक पहुंच गई है। रूसी सरकारी मीडिया द्वारा जारी तस्वीरों में यह गुबार साफ देखा जा सकता है।

रूस के आपातकालीन स्थिति मंत्रालय ने बताया कि यह राख का गुबार ज्वालामुखी से पूर्व की ओर प्रशांत महासागर की ओर फैल रहा है। इसके रास्ते में कोई भी आबादी वाला इलाका नहीं है और अभी तक किसी भी शहर में राख गिरने की कोई घटना दर्ज नहीं की गई है। मंत्रालय ने इस ज्वालामुखी को ‘नारंगी’ विमानन खतरा कोड के साथ वर्गीकृत किया है, जिसका मतलब है कि इस क्षेत्र में उडानें बाधित हो सकती हैं। यह विस्फोट यूरोप और एशिया के सबसे ऊंचे सक्रिय ज्वालामुखी, क्लुचेव्स्कॉय, के बुधवार को हुए विस्फोट के तुरंत बाद हुआ है। ग्लोबल वोल्केनिज्म प्रोग्राम के मुताबिक, क्लुचेव्स्कॉय में अक्सर विस्फोट होते रहते हैं, और साल 2000 के बाद से कम से कम 18 बार ऐसा हो चुका है।

भूकंप और सुनामी का प्रभाव

दोनों ज्वालामुखी विस्फोट बुधवार को आए अब तक के सबसे शक्तिशाली भूकंपों में से एक के बाद हुए। इस भूकंप की वजह से सुनामी की चेतावनी जारी की गई और जापान से लेकर हवाई और इक्वाडोर तक लाखों लोगों को तटीय क्षेत्रों से हटाना पडा। अधिकारियों ने बताया कि सुनामी से सबसे ज्यादा नुकसान रूस में हुआ, जहां सेवेरो-कुरिल्स्क बंदरगाह और एक मछली पकडने के कारखाने को जलमग्न कर दिया गया।

रूस के कामचटका प्रायद्वीप पर पेट्रोपावलोव्स्क के पास 8.8 तीव्रता का यह भूकंप, 2011 में जापान के तट पर आए 9.1 तीव्रता के भूकंप के बाद सबसे शक्तिशाली था, जिसमें 15,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे। वैज्ञानिकों ने बताया कि प्रशांत प्लेट की गति की वजह से रूस का सुदूर पूर्वी तट भूकंपों के प्रति बहुत संवेदनशील है। ब्रिटिश भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के रोजर मुसन ने कहा कि कामचटका भूकंपीय क्षेत्र प्रशांत अग्नि वलय के सबसे सक्रिय क्षेत्रों में से एक है, जहां प्रशांत प्लेट प्रति वर्ष लगभग 80 मिमी की गति से पश्चिम की ओर बढ रही है।

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