नई दिल्ली: मंगलवार को गैरसैंण में उत्तराखंड विधानसभा का मानसून सत्र शुरू हो गया। 19 अगस्त से 22 अगस्त तक चलने वाले इस सत्र में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने की तैयारी में हैं। सरकार ने उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2016 और उत्तराखंड गैर-सरकारी अरबी व फारसी मदरसा मान्यता नियम, 2019 को 1 जुलाई 2026 से निरस्त करने का फैसला लिया है। इस विधेयक के पेश किए जाने पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी बहस और टकराव की संभावना है।
खास बात यह है कि मदरसा एक्ट के निरस्त होने से एक जुलाई 2026 से उत्तराखंड में मदरसा शिक्षा बोर्ड का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। इसकी जगह अब एक उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण का गठन किया जाएगा। जिसे न केवल अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा और अनुदान देने का अधिकार होगा बल्कि वह अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता भी तय करेगा। पिछले दिनों लिया गया धामी कैबिनेट का ये एक ऐतिहासिक फैसला है, जो समान नागरिक संहिता व नकल कानून की तरह देश के अन्य राज्यों के लिए बनेगा मिसाल बनेगा। कांग्रेस सरकार के जमाने से चले आ रहे मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम समाप्त करने को कांग्रेस नेता अल्पसंख्सक मामलों में सरकार का हस्तक्षेप मान रहे हैं। इसे लेकर सदन में हंगामा होना तय बताया जा रहा है।

उत्तराखंड में अभी तक मुस्लिम समुदाय से जुड़े शिक्षण संस्थानों को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलता था। मगर नए विधेयक में सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी धर्म से जुड़े शिक्षण संस्थानों को भी अल्पसंख्यक का दर्जा मिल सकेगा। सरकार का दावा है कि विधेयक के कानून बनने से अल्पसंख्यक समुदाय के संस्थानों के मान्यता देने की प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी। समुदाय के संवैधानिक अधिकारों के साथ-साथ शिक्षा की गुणवत्ता भी सुधरेगी।
नए कानून के बन जाने से किसी भी संस्थान को ट्रस्ट अधिनियम, कंपनी अधिनियम या सोसाइटी अधिनियम के तहत रजिस्ट्रेशन कराने के बाद ही मान्यता मिलेगी। विधयेक में यह भी प्रवाधान है कि अगर संस्थान में पारदर्शिता की कमी, धार्मिक और सामाजिक सद्भाव के खिलाफ क्रिया-कलाप या वित्तीय कुप्रबंधन मिलता है तो सरकार उसकी मान्यता को रद्द कर सकती है। उत्तराखंड सरकार के मुताबिक विधेयक के पास होने के बाद मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों में गुरुमुखी और पाली भाषा की पढ़ाई भी होगी। इसके अलावा 1 जुलाई 2026 से उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम- 2016 और उत्तराखंड गैर-सरकारी अरबी एवं फारसी मदरसा मान्यता नियम- 2019 से निरस्त माने जाएंगे। सरकार ने साफ किया है कि नया विधेयक अगर पास होता है तो यह कानून अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन में दखल नहीं देगा। सिर्फ शिक्षा की गुणवत्ता पर फोकस होगा।