
पितृपक्ष के समापन पर 21 को सूर्य ग्रहण से दुर्लभ संयोग
श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण से करें पितरों को विदा
–महंत विशाल गौड़
लखनऊ : रविवार, 7 दिसंबर चंन्द्र ग्रहण से शुरू हुआ पितृपक्ष का समापन सूर्य ग्रहण से 21 तारीख को होगा। ऐसा दुर्लभ संयोग एक शताब्दी बाद हुआ है। कोतवालेश्वर महादेव मंदिर के महंत विशाल गौड़ का कहना है कि पितृपक्ष में दूसरा ग्रहण दुर्लभ संयोग है। श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण से पितरों को विदा करें। ज्योतिष गणना के अनुसार सर्व पितृ अमावस्या यानी 21 सितंबर को साल का दूसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण लगेगा। यह ग्रहण भारत में बिल्कुल नहीं दिखाई देगा। इसके लिए सूतक भी मान्य नहीं होगा। सूर्य ग्रहण देर रात 10 बजकर 59 मिनट पर शुरू होगा जो भारत में सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाएगा। महंत ने कहा पितृपक्ष में पितरों के निमित्त श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण किये जाते हैं। पीपल के पेड़ पर जल और काले तिल चढ़ाएं, घर के दक्षिण दिशा में पितरों की तस्वीर लगाकर उनका सम्मान करें तथा नियमित रूप से शिवलिंग पर जल और काले तिल चढ़ाएं। पितरों के नाम पर भोजन और दान-दक्षिणा करें और पितृ स्तोत्र का पाठ कर विदा करें। श्राद्ध पक्ष को भावना-प्रधान के साथ क्रिया-प्रधान भी माना जाता है। मन में पितरों को याद करना और उनके लिए भक्ति भाव रखना अलग है, लेकिन उसके साथ कर्म करना भी अति आवश्यक है, इसलिए पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने से ही पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
अपने पितरों को याद करते हुए उनकी पसंद का भोजन बनाकर उनको भोग लगायें, उनके नाम से दान करें और ब्राह्मणों को भोजन करायें। सूर्य ग्रहण में सूतक काल में बिना विघ्न के पितरों का श्राद्ध कर हम अपने जीवन में खुशहाली ला सकते हैं। ऐसा ग्रंथों में कहा गया है कि अगर हमारे पितृ प्रसन्न रहेंगे तो वह भगवान से हमारी उन्नति और समृद्धि की कामना करते हैं जिसका लाभ निश्चित ही इसी लोक में मिलता है। महंत ने बताया कि पितृपक्ष के दौरान 15 दिनों तक पितृ पृथ्वी पर आते हैं। पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। सही से श्राद्ध न करने से पितरों की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती हे। पितृपक्ष में किया गया दान ही सर्वश्रेष्ठ दान माना गया है। इस दौरान पूजा-पाठ करना और पितरों का स्मरण करना भी शुभ होता है। श्राद्ध पक्ष को भावना-प्रधान के साथ क्रिया-प्रधान भी माना जाता है। मन में पितरों को याद करना और उनके लिए भक्ति भाव रखना उसके साथ अच्छा कर्म करना भी आवश्यक है। इसलिए पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने से ही पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पितृपक्ष के अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या है, यह पितृपक्ष का समापन दिवस है। इस दिन साल का आखिरी ग्रहण भी लगने वाला है। यह ग्रहण चूंकि भारत में नहीं दिखाई देगा, इसलिए जो लोग सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध कर्म करेंगे, उन्हें किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा। पितरों को जल देने से पहले सूर्य देव को पूर्व दिशा में अक्षत और रोली मिलाकर जल दें। फिर जल में जौ मिलाकर उत्तर दिशा की ओर सप्तऋषियों को जल दें। ऋषियों को जल देते समय जनेउ कंठी में धारण करना चाहिए। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख करके तिल के साथ अपने पितरों को जल दें। महंत विशाल गौड़ ने बताया पितृ पक्ष में मंदिर जा सकते हैं और कई धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा करना अच्छा माना जाता है। पितृपक्ष में अपने आराध्य की पूजा करनी चाहिए और पितरों के नाम से मंदिर में कुछ भेंट भी कर सकते हैं। पितृ लोग पितृपक्ष के दौरान धरती पर वास करते हैं, ऐसे में इस दौरान पितरों की पूजा करना बेहद कल्याणकारी हो सकता है।