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चुनावी मौसम में उकसावे की राजनीति : यूपी को चाहिए चौकन्नी नजर

बदलते राजनीतिक मौसम में योगी आदित्यनाथ और उनकी प्रशासनिक टीम को वही कर दिखाना होगा जिसके लिए वे पहचाने जाते हैं. चौबीसों घंटे सतर्क रहना, हर अफ़वाह की जड़ तक पहुंचना और किसी भी साजिश को जन्म लेने से पहले ही खत्म करना। मतलब साफ है यूपी की शांति केवल कानून की सख्ती से नहीं, बल्कि समय रहते उठाए गए इन ठोस कदमों से सुरक्षित रह सकती है। यही वह संदेश है जो इस संवेदनशील दौर में सरकार, प्रशासन और जनता तीनों को आत्मसात करना चाहिए। यूपी ने अतीत में कई बार साबित किया है कि समय रहते की गई कार्रवाई बड़े संकट को टाल सकती है। बारावफ़ात जुलूसों को लेकर उपजे हालात फिर यही कह रहे हैं, “सतर्क रहना ही सबसे बड़ी सुरक्षा है।” सरकार को चाहिए कि जिला और राज्य स्तर पर खुफ़िया, पुलिस और नागरिक समाज की साझी रणनीति तुरंत लागू करे। आस्था के उत्सव को उन्माद बनने से रोकना प्रशासन का ही नहीं, समाज के हर वर्ग का दायित्व है. आस्था को उन्माद में बदलने से किसी को लाभ नहीं, नुकसान सबका है। ताक़त का असली मतलब कानून मानते हुए समाज में भरोसा और भाईचारा बढ़ाना है।

सुरेश गांधी

बिहार चुनाव के मद्देनज़र देशभर में राजनीतिक गर्मी बढ़ना स्वाभाविक है, पर यह किसी भी तरह साम्प्रदायिक तनाव या हिंसा में न बदले, यह सुनिश्चित करना सरकार और समाज दोनों का कर्तव्य है। खासकर इसकी आवश्यकता तब और बढ़ जाती है जब यूपी के कई जिलों में बारावफ़ात के अवसर पर “आई लव मोहम्मद” पोस्टर और अचानक निकले जुलूसों से लोगों में भय का माहौल नजर आने लगा हो. कानपुर से शुरू हुई हलचल अब उन्नाव, बरेली, लखनऊ, महाराजगंज, भदोही और वाराणसी तक गूंज रही है। वाराणसी के दालमंडी और जैतपुरा जैसे इलाक़ों में भी युवाओं ने जुलूस निकालने का प्रयास किया, जिसे प्रशासन ने तुरंत रोका।

घटनाएं भले ही स्थानीय स्तर पर दिख रही हों, लेकिन उनका फैलाव प्रदेश-भर में तेज़ है, और यही सरकार व पुलिस-प्रशासन के लिए चेतावनी की घंटी है। हालांकि समय रहते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सुरक्षा एजेंसियों को चौकन्ना कर दिया है। खुफ़िया तंत्र को पूरी तरह अलर्ट मूड में रखा हैं। प्रशासन हर ऐतिहाती कदम उठा रहा है, फिर भी सतर्कता बनाएं रखना है, और हर भड़काऊ गतिविधि पर तुरंत रोक लगानी ही होगी. सतर्कता ही वह कवच है जो चुनावी मौसम की गर्मी को समाज की शांति पर असर डालने से रोक सकता है। यही संदेश जनता, सरकार और राजनीतिक दलों, सभी के लिए समय की मांग है।

यहां जिक्र करना जरुरी है कि बिहार चुनाव की आहट के साथ देश का राजनीतिक तापमान बढ़ रहा है। सोशल मीडिया पर उकसावे भरे संदेश, कुछ राजनीतिक मंचों से आए असंयमित वक्तव्य और कई शहरों में अचानक भीड़ इकट्ठा होने की घटनाएं उत्तर प्रदेश जैसे विशाल और संवेदनशील राज्य के लिए चेतावनी हैं। या यूं कहे कई जिलों में हाल के दिनों में कुछ धार्मिक अवसरों पर अचानक भीड़ जुटने और बिना अनुमति जुलूस निकालने जैसी घटनाएं प्रशासन के लिए संकेतक हैं। ये घटनाएं भले ही अलग-अलग शहरों में हुई प्रतीत हों, पर उनका पैटर्न एक जैसा है, सोशल मीडिया पर तेजी से फैलती अपीलें, युवाओं का उत्साह और बिना सूचना के सार्वजनिक प्रदर्शन। ऐसे में सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को समय रहते सतर्क रहना और हर पहलू की गहन जांच करना अनिवार्य है। यह अलग बात है कि देश के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों में शुमार योगी आदित्यनाथ और उनका प्रशासनिक तंत्र पहले भी कानून-व्यवस्था संभालने के लिए जाना जाता है, लेकिन बदलते हालात में चौबीसों घंटे अलर्ट मोड ही राज्य की शांति का सबसे बड़ा सहारा है। क्यों कि अल्प समय में कई शहरों में एक जैसी घटनाएं दिखीं, बड़ा संदेश देती हैं, यह महज़ संयोग नहीं हो सकता।

चुनावी मौसम में बढ़ती उकसावे की राजनीति
बिहार में मतदान तिथियों की घोषणा का इंतजार और उससे पहले राजनीतिक बयानबाज़ी की गर्मी। कुछ जनसभाओं में नेताओं द्वारा असंयमित भाषा और सोशल मीडिया पर वायरल क्लिप्स से आमजन में तनाव का खतरा। ऐसी स्थितियों में पड़ोसी और देश के सबसे बड़े राज्य यूपी पर स्वाभाविक रूप से सबकी निगाह। भला क्यों नहीं 25 करोड़ की आबादी, सबसे अधिक संसदीय सीटें और धार्मिक-सांस्कृतिक विविधता। बिहार से भौगोलिक निकटता और सामाजिक रिश्तों के कारण यहां माहौल भड़काने की कोशिशें तेज़ हो सकती हैं। अतीत ने दिखाया है कि चुनावी मौसम में बाहरी तत्व अफ़वाह और उकसावे का सहारा लेकर प्रदेश की शांति भंग करने का प्रयास कर सकते हैं। ऐसे में सरकार यदि अभी से अपनी आंख, कान और नाक पूरी तरह खुले रखे, तो न केवल प्रदेश की सुरक्षा सुनिश्चित होगी बल्कि शांति और सद्भाव की वह मिसाल कायम होगी जिसकी आज पूरे देश को ज़रूरत है।

योगी सरकार से अपेक्षा : बहुस्तरीय सतर्कता

  1. खुफ़िया तंत्र की सक्रियता : सोशल मीडिया की चौकसी, अफ़वाह फैलाने वाले ग्रुप्स पर नज़र। ज़िला व राज्य स्तर पर रियल टाइम सूचना साझा करने की मजबूत व्यवस्था।
  2. प्रशासनिक समन्वय : हर जिले में शांति समिति की नियमित बैठकें, स्थानीय नेताओं और नागरिक समाज को भरोसे में लेना। संवेदनशील इलाक़ों में तैनाती और कानून का सख्त पालन।
  3. कानूनी कार्रवाई में तेजी : भड़काऊ भाषण या फर्जी वीडियो फैलाने वालों पर तुरंत मुकदमा और गिरफ्तारी। अदालतों में फास्ट-ट्रैक सुनवाई ताकि डर का असर तुरंत दिखे।

मुख्यमंत्री की छवि और ज़िम्मेदारी
योगी आदित्यनाथ को जनता “कठोर लेकिन न्यायपूर्ण” प्रशासन के लिए पहचानती है। यह छवि केवल कानून लागू करने से नहीं, बल्कि समय रहते खतरों को भांपकर रोकने से बनी है। “ज़ीरो टॉलरेंस” की नीति अब डिजिटल युग के अनुरूप और मजबूत करनी होगी। चुनावी मौसम में उकसावे और अफ़वाहों का जवाब तेज़ और सटीक कार्रवाई से देना ही उनकी नेतृत्व शैली का स्वाभाविक विस्तार होगा।

राजनीति से ऊपर शांति की प्राथमिकता
सत्ता या विपक्ष, किसी भी दल को भड़काऊ भाषणों से लाभ नहीं होना चाहिए। मुख्यमंत्री को सभी दलों के साथ सर्वदलीय संवाद की पहल करनी चाहिए ताकि स्पष्ट संदेश जाए : कानून-व्यवस्था से समझौता किसी कीमत पर नहीं होगा।

मीडिया और नागरिक समाज की भूमिका
जिम्मेदार पत्रकारिता अफ़वाहों को रोक सकती है। नागरिक संगठनों और युवाओं को शांति और सौहार्द बनाए रखने में साझेदार बनाया जाए। पत्रकारिता का कर्तव्य है कि सनसनी से दूर रहकर तथ्यों पर आधारित जानकारी दे। नारे, अफ़वाह या अधूरी क्लिप्स से आग भड़क सकती है। ज़िम्मेदार रिपोर्टिंग प्रशासन को मदद पहुंचा सकती है, उलटा दबाव नहीं।

बदलती परंपरा, बदलती चुनौतिया
बारावफ़ात यानी ईद-ए-मिलादुन्नबी सदियों से आस्था और श्रद्धा का पर्व रहा है। पारंपरिक मिलाद, गरीबों को दान, मस्जिदों में सामूहिक दुआ इसकी पहचान रहे हैं। लेकिन स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के दौर में उत्सव का स्वरूप बदल रहा है। “ट्रेंड” बनाने की होड़, वायरल पोस्टर और लाइव प्रसारण का आकर्षण कई बार कानून-व्यवस्था को चुनौती देने लगता है।

सोशल मीडिया का असर
कानपुर की एक घटना का वीडियो चंद घंटों में पूरे प्रदेश में फैल गया। इंस्टाग्राम और शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म पर “आई लव मोहम्मद” हैशटैग के साथ हज़ारों पोस्ट दिखाई देने लगे। नतीजा : युवाओं में उत्साह के साथ-साथ समूह में शक्ति प्रदर्शन की भावना भी जाग उठी। यह दिखाता है कि किसी भी धार्मिक आयोजन में डिजिटल प्लेटफॉर्म कितनी तेजी से जनभावनाओं को भड़का या दिशा दे सकते हैं।

प्रशासन की सख्ती और सबक
कई जिलों में पुलिस ने त्वरित कार्रवाई कर अनधिकृत जुलूस रोके, धारा 144 लागू की और शांति समिति की बैठकें कीं। वाराणसी में समय रहते कदम न उठाए जाते तो संकरी गलियों और भीड़भाड़ वाले इलाकों में स्थिति बिगड़ सकती थी। यह प्रशासनिक सतर्कता सराहनीय है, लेकिन यह भी संकेत है कि यदि तैयारी देर से होती तो नुकसान बड़ा हो सकता था।

राज्य-स्तरीय रणनीति की ज़रूरत
घटनाएं अब केवल जिला-स्तरीय नहीं रहीं। जब एक ही पैटर्न कई शहरों में दिख रहा है, तो यह प्रदेश-व्यापी समन्वय की मांग करता है। खुफ़िया निगरानी : सोशल मीडिया मॉनिटरिंग को और तेज़ करने की ज़रूरत है। समन्वय तंत्र : ज़िले-ज़िले के पुलिस प्रमुख और खुफ़िया इकाइयां एक साझा रियल-टाइम प्लेटफ़ॉर्म पर जुड़ी हों। धार्मिक नेतृत्व से संवाद : इमामों और समाजसेवियों को भरोसे में लेकर स्पष्ट संदेश, आस्था का सम्मान, पर कानून का उल्लंघन नहीं।

राजनीति से परे सुरक्षा
किसी भी घटना को चुनावी चश्मे से देखना खतरनाक है। धार्मिक भावना को राजनीतिक लाभ के लिए भुनाने की प्रवृत्ति रोकना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना जुलूसों को नियंत्रित करना। सरकार को चाहिए कि इस मसले पर सभी दलों को साथ लेकर एक साझा शांति-अपील जारी करे।

असली खतरा : भड़काने वाले
इतिहास गवाह है कि किसी भी बड़े उपद्रव की जड़ में चंद लोग ही होते हैं, जो भीड़ की भावनाओं को भड़काकर हालात बिगाड़ते हैं। ये लोग अक्सर परदे के पीछे रहते हैं, कभी धार्मिक उत्साह का सहारा लेते हैं, तो कभी राजनीतिक फायदे का। सरकार के लिए सबसे ज़रूरी है कि ऐसे भड़काने वालों की पहचान की जाए और उन्हें कानूनी दायरे में लाया जाए। ऐसी घटनाओं को रोकने में खुफ़िया एजेंसियों की समय पर मिली जानकारी ही सबसे कारगर हथियार है।

प्रशासन की प्राथमिकताएं

  1. पूर्वानुमान आधारित सुरक्षा : हर बड़े धार्मिक कार्यक्रम से पहले संभावित हॉटस्पॉट इलाकों का जोखिम आकलन।
  2. शांति समिति बैठकें : नागरिक समाज, धर्मगुरु, स्थानीय संगठनों से संवाद कर शांति का संदेश।
  3. कानून का सख्त पालनः बिना अनुमति किसी भी जुलूस या सभा पर त्वरित कार्रवाई।

राजनीति से ऊपर उठकर निर्णय
अक्सर ऐसी घटनाओं का राजनीतिक रंग चढ़ जाता है। लेकिन कानून-व्यवस्था केवल प्रशासनिक विषय है, इसमें किसी भी दल या विचारधारा की नहीं, बल्कि जनता की सुरक्षा की चिंता सर्वोपरि होनी चाहिए। सभी राजनीतिक दलों को चाहिए कि ऐसे समय बयानबाज़ी से बचें और सरकार की रोकथाम कोशिशों में सहयोग दें।

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