
देहरादून: जलवायु परिवर्तन का असर केवल आम इंसानों पर ही नहीं बल्कि उन जीवों पर भी पड़ा है जिन्हें मनुष्य का पूर्वज माना जाता है. यही दावा किया है हिमालयी क्षेत्र में फील्ड रिसर्च कर रहे वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जीयोलॉजी के वैज्ञानिकों ने. हाल ही में संस्थान की रिसर्च में सामने आया है कि जम्मू-कश्मीर के उधमपुर जिले के रामनगर क्षेत्र में गिब्बन ऐप यानी लेसर ऐप का जीवाश्म पाया गया है.
गिब्बन या लेसर ऐप लंगूर की एक विशेष प्रजाति है, जो बिना पूंछ के होती है और वैज्ञानिक इन्हें मनुष्यों के पूर्वजों से जोड़कर देखते हैं. दिलचस्प बात यह है कि भारत में इससे पहले कभी भी गिब्बन ऐप का कोई जीवाश्म नहीं मिला था. इस लिहाज से रामनगर में मिली यह खोज अत्यंत महत्वपूर्ण है और मानव विकास की कड़ी को समझने में नई दिशा प्रदान कर सकती है.
वाडिया इंस्टिट्यूट की रिसर्च में यह भी सामने आया है कि गिब्बन ऐप की प्रजाति भारत के रास्ते चीन तक फैली थी. फिलहाल यह प्रजाति उत्तरी भारत से विलुप्त मानी जाती है. लेकिन जीवाश्म इस बात का पुख्ता सबूत हैं कि कभी यहां इनका अस्तित्व रहा है. पंजाब विश्वविद्यालय और अमेरिका के वैज्ञानिकों के सहयोग से किए गए इस शोध ने मानव विकास के शुरुआती इतिहास की समझ को और गहरा किया है.
विशेषज्ञों का कहना है कि यह खोज इस बात की पुष्टि करती है कि लेसर ऐप का अफ्रीका से एशिया की ओर प्रवास लगभग एक ही समय में हुआ था. इससे यह संकेत मिलता है कि मानव जैसी प्रजातियों का विकास और उनका भौगोलिक फैलाव उस दौर में तेजी से हुआ. शोधकर्ताओं का मानना है कि इस रिसर्च से मानव संरचना और विकास की प्रक्रिया में नई जानकारियां जुड़ेंगी.
वाडिया इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिक एन. प्रेमजीत सिंह का कहना है कि समय के साथ जलवायु में आए बदलाव, खासकर शुष्क परिस्थितियों के कारण गिब्बन ऐप की यह प्रजाति धीरे-धीरे भारत से समाप्त हो गई. विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सिर्फ एक जीवाश्म की खोज नहीं है, बल्कि यह इस बात का प्रमाण है कि जलवायु परिवर्तन किस तरह प्रजातियों के अस्तित्व पर गहरा असर डालता है.