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H-1B वीजा की फीस में बढ़ोतरी का मामला पहुंचा Court, ट्रंप प्रशासन को लग सकता है झटका

वॉशिंगटन: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा हाल ही में H-1B वीजा फीस बढ़ाने के फैसले के खिलाफ संघीय अदालत में बड़ा कानूनी कदम उठाया गया है। ट्रंप प्रशासन ने नए H-1B वीजा आवेदन पर फीस बढ़ाकर लगभग 88 लाख रुपये कर दी थी। स्वास्थ्य सेवा से जुड़े संगठनों, धार्मिक संस्थाओं, यूनिवर्सिटी प्रोफेसरों और अन्य समूहों ने सैन फ्रांसिस्को की संघीय अदालत में मुकदमा दायर करते हुए कहा कि यह कदम नियोक्ताओं, कर्मचारियों और एजेंसियों को अफरातफरी में डाल देगा। उनका तर्क है कि H-1B प्रोग्राम अमेरिका में डॉक्टरों, शिक्षकों और इनोवेटर्स की नियुक्ति के लिए जरूरी है और यह आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देता है।

राष्ट्रपति ट्रंप ने 19 सितंबर को एक प्रोक्लेमेशन (आदेश) पर हस्ताक्षर कर नई फीस अनिवार्य की थी। उनका कहना था कि H-1B प्रोग्राम का दुरुपयोग कर अमेरिकी कर्मचारियों को सस्ते विदेशी वर्करों से बदला जा रहा है। आदेश 36 घंटे में लागू होना था, जिससे नियोक्ताओं में हड़कंप मच गया।

डेमोक्रेसी फॉरवर्ड फाउंडेशन और जस्टिस एक्शन सेंटर का कहना है कि अगर राहत नहीं मिली तो अस्पतालों से डॉक्टर, चर्च से पादरी और स्कूल-कॉलेज से टीचर्स चले जाएंगे। इससे उद्योगों को भी प्रमुख इनोवेटर्स खोने का खतरा है। संगठनों ने नई फीस को ट्रंप की “एंटी-इमिग्रेशन चाल” बताया और अदालत से इसे तुरंत रोकने की मांग की।

H-1B वीजा के विरोधियों का कहना है कि इस प्रोग्राम से अक्सर विदेशी कर्मचारी कम वेतन पर काम करने को तैयार रहते हैं, जिससे अमेरिकी टेक कर्मचारियों की सैलरी पर दबाव पड़ता है। वहीं समर्थकों का मानना है कि टेक कंपनियों, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के लिए यह प्रोग्राम बेहद अहम है।

अमेरिकन यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स संघ के अध्यक्ष टॉड वोल्फसन ने कहा कि लाखों डॉलर की फीस लगने से प्रतिभाशाली लोग अमेरिका आने से पीछे हटेंगे। यूनियन नेताओं का कहना है कि यह योजना वैज्ञानिक क्षमता और मेहनत से ज्यादा धन और संबंधों को प्राथमिकता देती है। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता एबिगेल जैक्सन ने कहा कि यह आदेश कानून के दायरे में है और इसका उद्देश्य “कंपनियों को सिस्टम का दुरुपयोग कर अमेरिकी वेतन घटाने से रोकना” है।

हर साल 65,000 H-1B वीजा जारी किए जाते हैं, जबकि 20,000 अतिरिक्त वीजा उन्नत डिग्री धारकों को मिलते हैं। यह आमतौर पर तीन से छह साल तक मान्य रहते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2024 में जारी H-1B वीजाओं में से 71% भारत और लगभग 12% चीन के नागरिकों को मिले। वर्तमान में नियोक्ता $2,000 से $5,000 तक शुल्क देते हैं, लेकिन ट्रंप के आदेश के बाद यह लागत प्रत्येक नई नियुक्ति पर 88 लाख रुपये तक पहुंच जाएगी।

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