
जहां छत्रपति शिवाजी का आशीर्वाद, वहीं शुरू हुआ ‘अन्नपूर्णा अन्नक्षेत्र’
बिन्दु माधव मंदिर में कार्तिक मास महोत्सव का शुभारंभ, शरद पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक होंगे दिव्य आयोजन
–सुरेश गांधी
वाराणसी : काशी, जिसे स्वयं भगवान शिव की नगरी कहा गया है, जहां धर्म और कर्म दोनों का संगम होता है, वहीं आज एक और पवित्र परंपरा जुड़ गई — सेवा की। पंचगंगा घाट स्थित बिन्दु माधव मंदिर, जिसे छत्रपति शिवाजी महाराज ने स्वयं स्थापित कराया था, आज श्रद्धा, भक्ति और मानवता की भावना से आलोकित हो उठा। यहां बिन्दु माधव देवस्थान ट्रस्ट द्वारा आयोजित दिव्य कार्तिक मास महोत्सव का भव्य शुभारंभ शरद पूर्णिमा (7 अक्टूबर) से हुआ, जो कार्तिक पूर्णिमा (5 नवम्बर) तक चलेगा।
अन्नदान को सर्वोच्च दान माना गया है : डॉ. नीलकंठ तिवारी
इस पावन अवसर पर शहर दक्षिणी विधायक एवं पूर्व मंत्री डॉ. नीलकंठ तिवारी ने दीप प्रज्ज्वलन कर “बिन्दु माधव अन्नपूर्णा अन्नक्षेत्र” का उद्घाटन किया और स्वयं अपने हाथों से श्रद्धालुओं को भोजन परोसा — जैसे काशी की परंपरा ही साकार हो उठी हो, जहां ‘अतिथि देवो भवः’ केवल वाक्य नहीं, बल्कि जीवन-चर्या है। इस मौके पर डॉ. नीलकंठ तिवारी ने कहा अन्नदान को सर्वश्रेष्ठ दान कहा गया है। काशी की यह विशेषता है कि यहां कोई भूखा नहीं सोता। यह नगरी अध्यात्म के साथ-साथ आतिथ्य की भी प्रतीक है। यहां पहले अतिथि को भोजन कराया जाता है, उसके बाद स्वयं भोजन किया जाता है।उन्होंने कहा कि बिन्दु माधव देवस्थान ट्रस्ट द्वारा आरंभ किया गया यह अन्नक्षेत्र वास्तव में सेवा को साधना के रूप में स्थापित करने वाला कार्य है। डॉ. तिवारी ने इसे “अद्भुत और प्रेरणादायी पहल” बताया, जो आने वाले समय में हजारों तीर्थयात्रियों, साधु-संतों और काशी में वैदिक अध्ययन के लिए आने वाले विद्यार्थियों को पोषण और आत्मीयता दोनों का संबल प्रदान करेगी।
छत्रपति शिवाजी की स्थायी विरासत
बिन्दु माधव मंदिर की स्थापना मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा की गई थी। जब औरंगजेब के काल में काशी के प्राचीन मंदिरों को तोड़ा गया, तब शिवाजी ने धर्म और स्वाभिमान की रक्षा के लिए यह मंदिर स्थापित कराया। यह मंदिर केवल ईश्वर आराधना का केंद्र नहीं, बल्कि हिंदवी स्वराज्य की सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक रहा है। यह वही स्थान है जहां मराठा सेना के सैनिक काशी आकर पूजा करते थे, जहां श्रद्धा के साथ सेवा का भाव भी था। आज उसी परंपरा को पुनर्जीवित करते हुए अन्नदान की धारा फिर प्रवाहित हुई है। बिन्दु माधव अन्नक्षेत्र इस बात का जीवंत प्रमाण है कि शिवाजी महाराज की धर्म-सुरक्षा और लोकसेवा की भावना आज भी जीवित है।

अन्नक्षेत्र– सेवा का नया तीर्थ : मुरलीधर
ट्रस्ट के अध्यक्ष आचार्य मुरलीधर पटवर्धन ने बताया कि मंदिर में प्रतिदिन देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु और तीर्थयात्री दर्शन के लिए आते हैं। कई बार बाहर से आने वाले यात्रियों को भोजन की कठिनाई का सामना करना पड़ता था। उन्होंने कहा भगवान बिन्दुमाधव की कृपा और छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रेरणा से आज वह दिन आ ही गया, जब हम सभी के सहयोग से निशुल्क अन्नक्षेत्र आरंभ हो सका। यह कार्य केवल सेवा नहीं, बल्कि ईश्वर की भक्ति का विस्तार है। उन्होंने बताया कि इस अन्नक्षेत्र से बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के साथ-साथ सन्यासी, ब्रह्मचारी और वे छात्र जो वैदिक शिक्षा के लिए काशी आते हैं, उन्हें निःशुल्क भोजन की सुविधा प्राप्त होगी। उनका कहना था कि अन्नक्षेत्र से भिक्षा नहीं, बल्कि आशीर्वाद वितरित होगा।
कार्तिक मास: पुण्य, साधना और प्रकाश का पर्व
काशी में कार्तिक मास का विशेष महत्व है। कार्तिके स्नानदानं च, व्रतानां च फलं लभेत्। यानी कार्तिक मास में किया गया स्नान, दान, व्रत और पूजा हजारों गुना फलदायी होता है। यही कारण है कि पंचगंगा घाट, जहां बिन्दु माधव मंदिर स्थित है, इस मास में भक्तों से भर जाता है। भोर में आरती, दिन में कथा-कीर्तन और संध्या में दीपदान — सब मिलकर एक जीवंत आध्यात्मिक वातावरण बनाते हैं। इस बार कार्तिक मास के दौरान प्रतिदिन मंदिर में प्रातः 4 बजे मंगला (काकड़ा) आरती, 4:30 बजे मक्खन आरती, 5 बजे श्रीखंड-मलाई आरती, और 8 बजे विशेष श्रृंगार संपन्न होगा। संध्या के समय गंगा आरती, भजन संध्या, शास्त्रीय संगीत प्रस्तुतियां और सांस्कृतिक आयोजन भी होंगे, जिनसे कार्तिक मास महोत्सव एक सांस्कृतिक उत्सव का रूप ले लेगा।
पंचगंगा घाट की पवित्रता और बिन्दु माधव का वैभव
पंचगंगा घाट का नाम पांच पवित्र नदियों — गंगा, यमुना, सरस्वती, किरन और धूतपापा — के संगम के प्रतीक के रूप में लिया गया है। कहा जाता है कि यही वह स्थान है जहां भगवान विष्णु ने स्वयं माधव रूप में अवतार लेकर तप किया था। बिन्दु माधव मंदिर उसी स्थल पर स्थित है। काशी खंड में इस स्थान की महिमा का वर्णन मिलता है. बिन्दुतीर्थं समासाद्य मुक्तो भवति मानवः। अर्थात, बिन्दुतीर्थ (बिन्दु माधव) का दर्शन और स्नान मनुष्य को समस्त पापों से मुक्त करता है। इतिहास में यह स्थान धर्म, भक्ति और सेवा — तीनों धाराओं का संगम रहा है। आज इस परंपरा में ‘अन्नदान’ का समावेश काशी के जीवंत धर्म का परिचायक है।
काशी की पहचान– पहले अतिथि, फिर स्वयं
बिन्दु माधव मंदिर में प्रारंभ हुआ अन्नक्षेत्र केवल भोजन वितरण का केंद्र नहीं, बल्कि एक विचार है — ‘अन्न ही ब्रह्म है’। काशी की परंपरा रही है कि यहां आने वाला कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं लौटता। चाहे साधु हो या सैलानी, वैदिक छात्र हो या विदेशी पर्यटक — सबको यहां भोजन और स्नेह मिलता है। काशी की आत्मा अध्यात्म के साथ-साथ आतिथ्य में बसती है। यहां पहले अतिथि को भोजन कराया जाता है, उसके बाद स्वयं भोजन करते हैं। यह अन्नक्षेत्र उसी परंपरा की पुनर्स्थापना है। यहां सेवा का भाव केवल कर्म नहीं, बल्कि साधना है — जहां रोटी भी प्रसाद बन जाती है।

धर्म और सेवा का समन्वय
बिन्दु माधव देवस्थान ट्रस्ट ने बताया कि कार्तिक मास के अवसर पर धार्मिक आयोजनों के साथ-साथ अनेक सामाजिक उपक्रम भी किए जाएंगे — जैसे स्वच्छता अभियान, पौधरोपण, वैदिक छात्र सहायता कार्यक्रम और माता अन्नपूर्णा के नाम पर अन्न वितरण। इस अवसर पर ट्रस्ट के सदस्य गणेश पाठक, अच्युत पटवर्धन, विनोद राव पाठक, संतोष सोलापुरकर, कनकलता मिश्र, स्वप्निल पाठक, बबलू सेठ, दिनेश श्रीवास्तव, संजय ब्रह्मे, नलिन नयन मिश्र, नरेंद्र पांडेय आदि उपस्थित रहे। गणेश पाठक ने कार्यक्रम का संचालन किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन अच्युत पटवर्धन ने किया।
काशी में सेवा की परंपरा अबाध है
काशी में सदियों से सेवा के अनेक रूप देखने को मिलते हैं। यहां अन्नक्षेत्र, धर्मशालाएं, पौषधालय और प्याऊ सेवा की संस्कृति के प्रतीक हैं। महर्षि पतंजलि से लेकर संत तुलसीदास तक, सबने सेवा को भक्ति का आधार बताया है। बिन्दु माधव अन्नक्षेत्र उसी परंपरा का आधुनिक रूप है — जहां श्रद्धा और संवेदना मिलकर धर्म का सजीव स्वरूप बनती हैं।
सेवा ही साधना, दान ही धर्म
काशी में एक कहावत है — “जो अन्न देता है, वही आनंद पाता है।” यही भावना इस अन्नक्षेत्र के केंद्र में है। यहां भोजन करना केवल पेट भरने का कार्य नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रसाद को ग्रहण करना है। बिन्दु माधव मंदिर में आरंभ हुआ यह अभियान आने वाले वर्षों में न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि मानवीय दृष्टि से भी मिसाल बनेगा। यहां सेवा का स्वरूप “दान” से “दायित्व” की ओर बढ़ता है — जहां हर थाली में भक्ति है, और हर ग्रास में करुणा।
शिवाजी महाराज की प्रेरणा: धर्म से राष्ट्र तक
छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन इस विचार पर आधारित था कि धर्म केवल पूजा नहीं, बल्कि जनकल्याण का माध्यम है। उन्होंने जहां-जहां मंदिर स्थापित किए, वहां सेवा की धारा भी प्रवाहित की। बिन्दु माधव मंदिर भी उसी विचारधारा का विस्तार है — जहां आरती की लौ और अन्नदान की थाली, दोनों एक ही संदेश देते हैं — “धर्म वही है जो दूसरों के कल्याण में है।” अन्नक्षेत्र की स्थापना इस विचार का मूर्त रूप है। यह केवल एक रसोई नहीं, बल्कि एक तीर्थ है — सेवा का तीर्थ, करुणा का तीर्थ।
काशी में कहा जाता है — “यहां भगवान स्वयं भिक्षा मांगते हैं, और भक्त अन्न बांटता है।” बिन्दु माधव मंदिर में आरंभ हुआ अन्नक्षेत्र उसी रहस्य का पुनः स्मरण है। गंगा की लहरों के बीच, दीपों की पंक्तियों में, और भक्तों की सेवा में — काशी का आत्मा बोल उठती है — “अन्नं ब्रह्मेति व्यजानात्।” (अन्न ही ब्रह्म है।) आज जब श्रद्धा और सेवा एक साथ जुड़ती हैं, तो काशी केवल एक शहर नहीं रह जाती, वह जीवित धर्म का प्रतीक बन जाती है — जहां हर थाली में ईश्वर बसते हैं, और हर अन्नकण में अन्नपूर्णा मुस्कराती हैं।