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जहरीली खेती से मुक्ति दिला रही आईपीएम तकनीक, किसानों के लिए साबित हो रही वरदान

राहुल उपाध्याय

बहराइच : अंधाधुंध रासायनिक खाद और कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग ने कृषि वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। उनका मानना है कि यदि समय रहते इन रसायनों का उपयोग नियंत्रित नहीं किया गया तो आने वाले समय में इसके दुष्परिणाम मानव स्वास्थ्य, मिट्टी की उर्वरक क्षमता और पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकते हैं। इन्हीं चुनौतियों को देखते हुए वैज्ञानिक आईपीएम (इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट) तकनीक को किसानों के लिए सबसे सुरक्षित और लाभदायक विकल्प मानते हैं। यह तकनीक रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से होने वाले नुकसान को कम करती है और फसलों को प्राकृतिक तरीके से सुरक्षित बनाती है।

इफको की टीम ने बताया कि आईपीएम तकनीक फसलों के मित्र कीटों और प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण पर केंद्रित है। यह विधि लेडीबर्ड बीटल, परजीवी ततैया जैसे कीटों की संख्या बढ़ाकर हानिकारक कीटों को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करती है। इससे खेत का संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र बना रहता है और फसल सुरक्षित रहती है। उपनिरेक्षक विनय वर्मा ने बताया कि आईपीएम के अंतर्गत जैविक, यांत्रिक और भौतिक विधियों का प्रयोग किया जाता है। इससे कीटों का प्रकोप नियंत्रित रहता है और रासायनिक कीटनाशकों की जरूरत कम पड़ती है। फसलें सुरक्षित रहती हैं। उत्पादन लागत घटती है और किसानों को बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। विशेषज्ञों का कहना है कि समय रहते जैविक विकल्प अपनाकर किसान न केवल जहरीली खेती से बच सकते हैं। बल्कि मिट्टी और पर्यावरण को भी सुरक्षित रख सकते हैं।

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