उत्तर प्रदेशराज्यवाराणसी

संविधान दिवस पर कमिश्नरेट में जागी जिम्मेदारी की चेतना

सीपी ने अधिकारियों व कर्मचारियों को राष्ट्र की एकता, अखण्डता और संप्रभुता की रक्षा की शपथ दिलाई, प्रस्तावना के उच्चारण के साथ गूंजा लोकतांत्रिक दायित्व का संदेश; संवैधानिक मूल्यों की पुनर्पुष्टि

सुरेश गांधी

वाराणसी : संविधान दिवस, महज एक तिथि नहीं, बल्कि वह दिन जब राष्ट्र अपने समूचे अस्तित्व की जड़ों को पहचानता है। कमिश्नरेट वाराणसी के पुलिस कार्यालय में बुधवार को वही संवैधानिक चेतना जीवंत हो उठी, जब पुलिस आयुक्त मोहित अग्रवाल ने अधिकारियों व कर्मचारियों को भारतीय संविधान की प्रस्तावना और मौलिक कर्तव्यों से अवगत कराते हुए लोकतांत्रिक दायित्वों का स्मरण कराया।

इस अवसर पर उन्होंने अधिकारियों व कर्मचारियों को राष्ट्र की एकता, अखण्डता और संप्रभुता की रक्षा की शपथ दिलाई। उन्होंने याद दिलाया कि 26 नवंबर 1949 को संविधान अंगीकृत किया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू होने के साथ ही भारत एक पूर्ण गणराज्य बना। ऐसे में संविधान का पालन केवल औपचारिक दायित्व नहीं, बल्कि जनता के प्रति प्रशासनिक जवाबदेही की सबसे बड़ी कसौटी है। संविधान दिवस पर कमिश्नरेट का यह आयोजन केवल कार्यक्रम नहीं, बल्कि वह संदेश था जिसने हर मन में यह चेतना जगाई कि, संविधान को जानना, समझना और उसका पालन करना ही सच्ची राष्ट्र सेवा है।

पुलिस आयुक्त ने “हम, भारत के लोग…” का सामूहिक पाठ कराते हुए बताया कि संविधान केवल प्रावधानों का संग्रह नहीं, बल्कि वह विचार है जो भारत को एक सार्वभौमिक, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में परिभाषित करता है। उन्होंने कहा कि न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता, ये आदर्श हमारी राष्ट्रीय पहचान का आधार हैं, और प्रशासनिक व्यवस्था में इनका पालन लोकतांत्रिक चरित्र को मजबूत करता है। पुलिस आयुक्त ने कहा कि सरकारी सेवकों के लिए संविधान से बड़ा कोई मार्गदर्शक नहीं। मौलिक कर्तव्यों का समर्पित पालन ही राष्ट्रहित में वास्तविक योगदान है। उन्होंने जोर देकर कहा कि संवैधानिक मूल्यों से विचलित हुए बिना कर्तव्यों का निर्वहन ही सशक्त लोकतंत्र की नींव है।

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