मां कुष्मांडा के तेज से है दसों दिशाओं में उजाला
एजेन्सी/ इस बार नवरात्रि के तीसरे दिन नवदुर्गा के चौथे स्वरूप की उपासना की जा रही है. ज्योतिष के जानकारों की मानें तो देवी के इस स्वरूप की उपासना से इंसान जीवन के तमाम कष्टों से मुक्त हो सकता है. विशेषकर कुंडली के बुध से जुड़ी परेशानियां मां कुष्मांडा दूर करती हैं. आइए जानते हैं कि देवी के इस भव्य स्वरूप की महिमा क्या है…..
कुष्मांडा देवी कौन हैं?
ये नवदुर्गा का चौथा स्वरुप हैं. अपनी हल्की हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा. ये अनाहत चक्र को नियंत्रित करती हैं. मां की आठ भुजाएं हैं इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहते हैं. संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं और मां कुष्मांडा को कुम्हड़ा विशेष रूप से प्रिय है. ज्योतिष में मां कुष्मांडा का संबंध बुध ग्रह से है.
क्या है देवी कुष्मांडा की पूजा विधि?
– हरे कपड़े पहनकर मां कुष्मांडा का पूजन करें.
– पूजन के दौरान मां को हरी इलाइची, सौंफ और कुम्हड़ा अर्पित करें.
– इसके बाद उनके मुख्य मंत्र ‘ॐ कुष्मांडा देव्यै नमः’ का 108 बार जाप करें.
– चाहें तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं.
मां कुष्मांडा का विशेष प्रसाद क्या है?
ज्योतिष के जानकारों की मानें तो मां को उनका उनका प्रिय भोग अर्पित करने से मां कुष्मांडा बहुत प्रसन्न होती हैं….
– मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाएं.
– इसके बाद प्रसाद को किसी ब्राह्मण को दान कर दें और खुद भी खाएं.
– इससे बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय क्षमता भी अच्छी हो जाएगी.