8 सीक्रेट, सोनी चौरसिया ने कैसे बनाया इतना बड़ा वर्ल्ड रिकॉर्ड?
सोनी के साथ 20 से अधिक लोगों ने इस अवधि को जागते हुए बिताया। अंतत: आंखों पर पानी के छींटे मार-मार कर बिना थकान के वह त्रिचूर के हेमलता कमंडलु के विश्व रिकॉर्ड को तोड़ने में कामयाब हुईं। इस दौरान उन्होंने योग-प्राणायाम का भरपूर सहारा लिया। खानपान में तरल पदार्थों की संतुलित मात्रा और जड़ी-बूटियों के जरिए उसकी मांसपेशियों में न खिंचाव आने दिया गया न चेहरे पर तनाव।
पिछली गलतियों से सबक लेकर इस बार सोनी चौरसिया ने चिकित्सकों और योग गुरुओं की मदद से बड़ी कामयाबी हासिल की। उन्हे मंच पर लगातार खड़ा रखने में अहम भूमिका निभाने वालों में से एक डॉं. नीरज खन्ना ने बड़ी सावधानी और नए प्रयोगों के साथ उन्हें कामयाबी की मंजिल तक पहुंचाने में योगदान दिया। विश्व रिकॉर्ड कायम होने के बाद नीरज ने अपने अनुभव साझा किए।
मंच पर लगातार चार घंटे नृत्य के बाद जब सोनी गिनीज बुक के नियमों के अनुसार ठहराव लेती थीं। 41.8 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले मौसम में उन्हें फिट रख पाना बड़ी चुनौती थी। बावजूद इसके डॉ. नीरज ने सोनी की चिकित्सा और सेहत का ध्यान रखने की जिम्मेदारी संभाली। नीरज बताते हैं कि उनकी मांसपेशियों में जब दर्द होता था तब पता चल जाता था कि पानी और नमक की कमी होने लगी है। तीन चिकित्सकों की टीम बनाई गई थी। डॉ. अजिताभ कुमार, डॉ. अरुण सिंह, डॉ. एसएस सोनी इसमें शामिल थे। सोनी की नाड़ी, ब्लड प्रेशर और शुगर की नियमित जांच की जा रही थी।
नींद न आने देने के लिए दो प्रयोग किए गए। गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड का जो नियम है उसका अक्षरश: पालन करते हुए हर चार घंटे पर 20 मिनट का रेस्ट लिया गया। पिछली बार वह आठ-10 घंटे नृत्य कर के आखिरी क्षणों के लिए समय बचा रही थी, जो कारगर साबित नहीं हुई। इस ब्रेक के दौरान इसकी फिजियोथिरेपी, साइकोलाजिकल मोटिवेशन को शीर्षासन और योग निद्रा के सहारे पूरा किया गया। साइकोलॉजिकल मोटिवेशन के द्वारा उसे उसके संकल्प की लगातार याद दिलाई जा रही थी।
शीर्षासन से एकाग्रचित्तता, स्मरण शक्ति और लक्ष्य के प्रति दृढ़ निश्चितता प्राप्त की गई। योग निद्रा के द्वारा अल्पावधि में शरीर को विश्राम प्रदान करके मस्तिष्क की चैतन्यता बरकरार रखी जा रही थी। पूरे मेडिकल चेकअप के दौरान इस बात का विशेष ख्याल रखा जा रहा था कि मौसम की मार न पड़ने पाए और बिटिया को डिहाईड्रेटेड न होने से बचाए रखा जाए। नमक की शरीर में कमी होने पाए। यह सावधानी काम आ गई।
गुनगुने पानी में नींबू, शहद मिलाकर भोर में साढ़े चार से पांच बजे के बीच में ही उन्हें पहली खुराक के तौर पर दे दिया जाता था। उसके बाद हर चार घंटे के ब्रेक पर चने के सत्तू का घोल बनाकर गुड़ के साथ दिया जाता था। इतना ही नहीं टमाटर, गाजर, चुकंदर, अनार को पीस कर जूस बनाकर दिन के 11 बजे और फिर शाम पांच से छह बजे के बीच पिलाया जाता था।
इस दौरान सोनी के चेहरे के भावों को लगातार पढ़ा जा रहा था, ताकि शारीरिक क्षमता में आने वाली किसी भी कमी को फौरन दूर किया जा सके। डायटिशियन गोल्डी अरोड़ा बताती हैं कि पनीर टिक्का दिन के 11 बजे फिर शाम को पांच से छह बजे के बीच दिया जाता था। दूध में साबूतदाना चीनी के साथ मिलाकर पतली खीर के रूप में दिन में 12 बजे पिलाने का नियम था। चेहरा अगर उतरा हुआ दिखता था तो तत्काल साबुतदाना में चीनी मिलाकर देते थे। नमक की कमी होने पर नमकीन दलिया पिलाई जाती थी।